रविवार, 14 अगस्त 2022

तिरंगे की निश्चिंतता

    तिरंगा इन दिनों प्रफुल्लित हो मुस्कुरा रहा है। मुस्कुराए भी क्यों न आखिरकार उसे हर घर तिरंगा अभियान के अंतर्गत देश के चप्पे - चप्पे में लहराने का सुखद आनंद जो प्राप्त होने जा रहा है। जहां अधिकांश देशवासी तिरंगे को प्रसन्नता पूर्वक अपने - अपने घरों में फहराने की योजना बना रहे हैं, वहीं कुछ देशवासी विवशता व अनिच्छा का अपने मन-मस्तिष्क में घालमेल कर तिरंगा न फहराने की जुगत भिड़ा रहे हैं। इन दिनों जिस ओर भी दृष्टि दौड़ाओ वहां तिरंगा ही दिखाई दे रहा है। सड़कों पर वाहन चालकों से किसी न किसी प्रकार धन ऐंठने वालों ने भी आजकल तिरंगे की शरण ले ली है। उनके द्वारा भावनाओं का व्यापार कर वाहन चालकों को औने-पौने दामों में तिरंगे सौंपे जा रहे हैं। दुकानों पर बिकने को आतुर तिरंगे बाजारों की शोभा बढ़ा रहे हैं और साथ ही साथ कई बेचारों का जी कोयले की भांति जला रहे हैं। तिरंगा इन दिनों व्यस्त होने का एक माध्यम भी बन गया है। सरकारी कार्यालयों में छोटे - बड़े कर्मचारी तिरंगे के संसार में व्यस्त हैं। बड़े कार्यालयों से छोटे कार्यालयों में धड़ाधड़ तिरंगों की खेप भिजवाई जा रही है। आदेशानुसार छोटे कार्यालयों से कर्मचारियों की घर पर लहराते तिरंगे के साथ मनमोहक फोटो व सेल्फियां बड़े कार्यालयों की ओर सावधानी से मार्च करती हुईं पहुंच रहीं हैं। इस बार तिरंगा कुछ निश्चिंत सा है। उसका निश्चिंत होना स्वाभाविक भी है। अब परिस्थितियां जो उसके अनुकूल हैं। अब न तो उसे सरेआम जलाए जाने का डर है और न ही फाड़ कर अपमानित किए जाने का भय। इन दिनों निश्चिंतता उसका स्वभाव बन गई है। अब वह निर्भय और निश्चिंत हो हवा संग अठखेलियां खेलते हुए जमकर लहरा रहा है। देश में आयोजित किए जा रहे अमृत महोत्सव में तिरंगे को अमृत चखे जाने की अनुभूति हो रही है।

     अचानक कुछ कर्कश ध्वनियों को सुन तिरंगा विचलित हो उठता है। "मेरे दिल में देशभक्ति कूट - कूट कर भरी हुई है ये जरूरी तो नहीं कि मैं अपनी देशभक्ति का झूठा दिखावा करने के लिए अपने घर में तिरंगा फहराने का ड्रामा करूं।" "ये लोग घर-घर तिरंगा फहराने के षड्यंत्र के अनुसार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर रहे हैं।" "बाबू जी, हर गली शराब की दुकान योजना ने हमारी हालत पतली कर दी। शराब ने हमारा सबकुछ बिकवा दिया। हम तिरंगा घर पर फहराएंगे पर पहले हम बेघरों को घर तो दो, वरना हम नहीं फहराने वाले तिरंगा - विरंगा।" ये सब सुन कर तिरंगा सकुचाते हुए उदास हो धीमी गति से लहराने लगता है। तभी तिरंगे को जय हिंद और वंदे मातरम का घोष करती हुई भीड़ दिखाई देती है। उसे दिखाई देता है कि भीड़ के बीच में अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीर सैनिक का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ उसके अपनों को अपने अंतिम दर्शन देने के लिए चला आ रहा है। ये दृश्य देखकर तिरंगा द्रवित हो उठता है और अचानक वह तन कर ये सोच कर गर्व से पुलकित हो लहराने लगता है कि जब तक देश की खातिर अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर सपूत हैं तब तक तिरंगे के सम्मान को कोई आंच नहीं आ सकती।

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