मंगलवार, 27 जुलाई 2021

कहानी : राजपूत कन्या का त्याग

     एक ठाकुर साहब एक राजनीतिक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। उन्होंने अपनी इकलौती लड़की का झट मँगनी पट ब्याह कर डाला। उनकी जल्दबाजी का कारण इस बात का डर था, कि कहीं अच्छा लड़का उनके हाथ से न निकल जाए। लड़के की हाल ही में आबकारी विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नौकरी लगी थी। अगर इस बारे में उनके समाज के मित्रों को पता चल जाता, तो वे अपनी-अपनी लड़कियों के विवाह के लिए उस लड़के के घर पर मँडराने लगते। वैवाहिक कार्यक्रम में उनके राजपूत मित्रों और रिश्तेदारों ने जब लड़के के घर और परिवार के विषय में जानना चाहा, तो ठाकुर साहब ने सिर्फ इतना बताया कि लड़के वाले चौहान ठाकुर हैं और लड़का हाल ही में आबकारी विभाग में इंस्पेक्टर पद भर भर्ती हुआ है। ठाकुर साहब के मित्र और रिश्तेदार उनकी किस्मत की दाद देने लगे। बहरहाल ठाकुर साहब की बेटी विदा होकर ससुराल पहुँची। बेटी भी खुश थी कि उसके पिता ने उसके लिए इतना योग्य वर खोजा। कुछ दिन बीते। एक दिन लड़की के ससुराल वाले कुछ काम से बाहर गए हुए थे। घर में केवल लड़के की बूढ़ी दादी थी। दादी ने लड़की से कहा, "चल बहू, तुझे अपना पुराना घर दिखा लाऊं।" लड़की अपनी दादी सास के संग खुशी-खुशी पुराने घर को देखने चल पड़ी। वहाँ जाकर देखा तो घर के एक हिस्से में सुअर पले हुए थे। बहू ने दादी सास से पूछा, "दादी जी, ये सुअर यहाँ क्या कर रहे हैं?" दादी सास ने भोलेपन के साथ कहा, "बहू, ये तो हमारा पुश्तैनी धंधा है।" ये सुनते ही बहू के होश उड़ गए। वह चुपचाप घर वापस आयी और अगले दिन ही बहाना बना कर अपने मायके आ गयी।

ठाकुर साहब को जब उनकी बेटी ने घर सारी बात बताई तो मानो कि उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी हो। शाम को उनके सारे खास राजपूत साथी उनके घर पर एकत्र हुए। ठाकुर साहब का गुस्से के मारे खून खौल रहा था। उनके राजपूत साथियों ने समझाया तो वो अपना माथा पीटते हुए बोले, "क्या पता था कि मेरे साथ इतना बड़ा धोखा होगा। मुझे तो लड़के वालों ने खुद को सम्राट पृथ्वीराज के वंशज बताया था।" 

उनके एक साथी ने उन्हें समझाया, "ठाकुर साहब, अब पछतान से का होत, जब चिड़िया चुग गयी खेत। अब आप बताइए कि आगे करना क्या है?"

ठाकुर साहब ने अपनी बंदूक उठायी और गुस्से में बोले, "मैं उस लड़के के पूरे परिवार को जान से खत्म कर दूँगा।"

उनकी बेटी ने उन्हें रोकते हुए कहा, "पापा, उन्हें मारने से मेरी ज़िंदगी तो नहीं सुधरेगी, बल्कि उन्हें मारने के इल्जाम में आप जेल और चले जायेंगे। फिर मेरे छोटे भाई का जीवन भी बर्बाद हो जाएगा।"

ठाकुर साहब बेबसी से बोले, "बेटी, फिर तुम ही बताओ कि मैं आखिर करूँ तो क्या करूँ?"

बेटी सुबकते हुए बोली, "आप कुछ मत कीजिए। मैं वापस अपने ससुराल जा रही हूँ। आज के बाद समझना कि आपकी कोई बेटी थी ही नहीं। मैं भी अब आपसे कोई संबंध नहीं रखूँगी।"

ठाकुर साहब हैरान हो बोले, "बेटी, ये तुम क्या कह रही हो?"

बेटी ने कहा, "मैंने जो कह रही हूँ ठीक कह रही हूँ। मैं नहीं चाहती कि आपकी बेवकूफी की सज़ा मेरा मायका भुगते। इसलिए मैं हमेशा के लिए यहाँ से जा रही हूँ। मुझसे कभी भी मिलने की कोशिश मत कीजिएगा।"

जहाँ ठाकुर साहब अपनी बेटी के कड़े फैसले को सुन कमरे के सोफे पर पसर गए, वहीं उनके राजपूत साथी उसके उस त्याग के प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए उसके आगे नतमस्तक हो गए।

नोट : ये कहानी मेरे पिताजी श्री सुरेश सिंह तोमर के मित्र के साथ घटी सत्य घटना पर आधारित है।

चित्र गूगल से साभार

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