गुरुवार, 24 जून 2021

व्यंग्य : ज़िंदगी का कोका कोला


    फे बहुत देर से उदास बैठा हुआ था। जिले से नफे की उदासी बर्दाश्त नहीं हुई और उस उदासी का कारण जानने के लिए उसने नफे से पूछताछ शुरू की।

जिले : भाई नफे!

नफे : हाँ बोल भाई जिले!

जिले : आज इतना उदास क्यों है?

नफे : उदास होने का कारण जिंदगी का कोका कोला होना है।

जिले : ज़िंदगी का कोका कोला? भाई मैं कुछ समझा नहीं।

नफे : मतलब कि ज़िंदगी की ऐसी-तैसी हो रखी है।

जिले : अब ये ज़िंदगी की ऐसी-तैसी की जगह ज़िंदगी का कोका-कोला होना कहावत कब ईजाद हो गयी?

नफे : इस कहावत का जन्म कुछ दिन पहले ही हुआ है।

जिले : किसने जन्म दिया इस कहावत को?

नफे : दरअसल बात ये है कि पुर्तगाली सुपरस्टार फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो के यूरोपीय चैम्पियनिशप में प्रेस कांफ्रेस के दौरान अपने सामने से कोका-कोला की बोतलों को एक तरफ खिसका कर पानी की बोतल को उठाया और पुर्तगाली भाषा में कहा 'अगुआ' मतलब पानी। ऐसा लग रहा था कि वह कोल्ड ड्रिंक्स के बजाय पानी को अपनाने की सलाह दे रहे थे।

जिले : रोनाल्डो ने सलाह तो अच्छी दी थी।

नफे : पर उस अच्छी सलाह का भुगतान कोका कोला कंपनी को भुगतना पड़ा।

जिले : वो कैसे?

नफे : वो ऐसे कि इस घटना कोका कोला कंपनी के शेयर इतनी तेजी से नीचे गिरे कि चार अरब डॉलरों का राम नाम सत्य हो गया।

जिले : एक ओर रोनाल्डो है जो कोका कोला के बजाय पानी पीने की सलाह देता है, दूसरी ओर हमारे देश के खिलाड़ी और एक्टर हैं जो कभी टीवी पर पान मसाला बेचते मिलेंगे तो कभी कोल्ड ड्रिंक या शराब के ब्रांड की वकालत करते मिलेंगे।

नफे : वो बेचारे भी करें तो क्या करें, उनकी ज़िंदगी का भी इन दिनों कोका कोला हो रखा है। इसलिए वे सब पान मसाले, कोल्ड ड्रिंक और शराब इत्यादि के विज्ञापनों के सहारे गुजर-बसर करने की कोशिश कर रहे हैं।

जिले - अरे, उन्हें कम से कम रोनाल्डो को देखकर कुछ सीख लेनी चाहिए। उसने पैसे का मोह न देखकर लोगों के स्वास्थ्य की परवाह कर कोका कोला के बजाय पानी पीने की सलाह दी। इसे उसकी महानता ही कहेंगे।

नफे : हम भारतीयों में ये ही तो कमी है कि हम किसी को भी एकदम से भगवान बना देते हैं।

जिले : भाई, आखिर तू कहना क्या चाहता है?

नफे : यही कि तू जिस रोनाल्डो की शान में कसीदे पढ़ रहा है, वही रोनाल्डो कभी कोका कोला का ब्रांड एम्बेसडर रह चुका है।

जिले : क्या बात कर रहा है?

नफे : हाँ भाई, बाद में कोका कोला की प्रतिस्पर्धी कंपनी पेप्सी के स्वामित्व वाली केएफसी का प्रचार भी किया और ब्राज़ील की एक बीयर कंपनी का भी ब्रांड एंबेसडर रहा है। इसके अलावा उसने एनर्जी ड्रिंक्स और हेल्थ ड्रिंक्स के नाम से बिकने वाले कई और उत्पादों के भी विज्ञापन किए हैं।

जिले : भाई, फिर ऐसी क्या वजह थी जो रोनाल्डो ने कोका कोला का ही कोका कोला कर डाला?

नफे : होगा कोई कारण जिनके कारण रोनाल्डो और कोका कोला कंपनी के आपसी संबंधों का कोका कोला हो गया हो।

जिले : हूँ, अच्छा अब तू ये बता कि तेरी ज़िंदगी का कैसे कोका कोला हो रखा है?

नफे : पिछले एक साल से सरकार ने इंक्रीमेंट दिया नहीं, बल्कि कोरोना रिलीफ के नाम पर कुछ न कुछ काट और लेती है। ऊपर से फ्रंटलाइन वर्कर बना रखा है वो अलग से। इसे ज़िंदगी का कोका कोला होना नहीं तो भला और क्या कहेंगे।

जिले : भाई, इस कोरोना काल में सिर्फ तेरा ही नहीं बल्कि पूरे संसार का कोका कोला हो रखा है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चीनी ड्रैगन के नाजायज बेटे ने बिलकुल चौपट कर दिया है।

नफे : सही कहा।

जिले : भाई, अब तू ये सब बातें छोड़ और पीने के लिए कोई ठंडी चीज मँगवा ले, क्योंकि ये भेजा बहुत गरम हो चुका है। 

नफे : कोका कोला मँगवाना है क्या?

नफे : अरे नहीं भाई, उसे पीकर अपनी आंतों का कोका कोला नहीं करवाना। 

नफे : हा हा हा तो फिर ठंडी लस्सी तो चलेगी न?

जिले : चलेगी नहीं भाई दौड़ेगी।

गुरुवार, 17 जून 2021

व्यंग्य : लहर चालू आहे


    नफे को विचारों में खोया हुआ देख कर जिले ने उससे पूछा।

जिले - भाई नफे!

नफे - हाँ बोल भाई जिले!

जिले - और आजकल क्या चल रहा है?

नफे - आजकल लहर चल रही है।

जिले - अब तक तो मैंने फॉग, स्वैग वगैरह के चलने के बारे में ही सुना था, पर तूने तो नई बात बता दी। वैसे इस लहर के चलने के बारे में कुछ बता।

नफे - भाई, लहर तो अपने देश में कई सालों से चल रही है। अब तूने देखी नहीं तो इसमें भला लहर का क्या दोष है।

जिले - भाई, भूल हो गयी जो देख नहीं पाया। अब तू अपनी आँखों से दिखा दे न।

नफे - आजादी से पहले अपने देश में देशभक्ति की लहर चलनी शुरू हुई थी। इस लहर में अंग्रेजी सत्ता उखड़कर उड़ते-उड़ते अपने मूल स्थान पर जा पहुँची और इस देश को लूट कर ले जाए गए माल के ब्याज पर अंग्रेजों की अय्याशी अब तक जारी है।

जिले - अंग्रेजी सत्ता के जाने के बाद अपने देश में कौन सी लहर चली थी?

नफे - उसके बाद देश को कथित स्वतंत्रता दिलवाने वालों के सत्ता सुख भोगने की लहर चली, जिसमें आजादी की खातिर मर-मिटने वालों और उनके परिवारों को विवशता के आँसू बहाते हुए देशवासियों ने देखा।

जिले - मतलब कि जिन्होंने देश के लिए अपना सबकुछ लुटा दिया, वे और उनका परिवार आजादी के बाद लुटी-पिटी हालत में ही रहे। अच्छा उसके बाद कौन सी लहर आयी?

नफे - उसके बाद भारत के बहादुर लाल की कुछ दिनों के लिए लहर चली, जिसने पापी पड़ोसी देश को कुछ पलों के लिए काल के साक्षात दर्शन करवा दिए। 

जिले - पर देश के उस बहादुर लाल को सत्ता पिपासुओं ने साजिश के तहत काल के गाल के हवाले कर दिया गया। खैर, उसके बाद कौन सी लहर आयी?

नफे - उसके बाद इमरजेंसी की लहर आयी, जिसमें अच्छे-अच्छे सूरमा उड़ कर जेल की सलाखों के पीछे जाकर गिरे।

जिले - बाद में उनमें से कई सूरमाओं ने सत्ता का सुरमा लगा कर देश को जमकर चूना लगाया। नेक्स्ट प्लीज!

नफे - उसके बात सत्ता बदलाव की लहर चली। फिर सत्ता वापसी की लहर चली। फिर बड़े पेड़ के गिरने के बाद विध्वंसक प्रतिक्रिया की लहर चली। उसके बाद छोटी-मोटी लहरों के चलने का सिलसिला चलता रहा। फिर एक लहर ऐसी आयी जिससे देश और दुनिया हिल गयी।

जिले - भाई, बोलते जा, इन लहरों के इतिहास को सुनकर मन लहरा रहा है।

नफे - इस मजबूत लहर ने जाने कितनों की राजनीति की दुकानों को उड़ा कर समुद्र में ले जाकर डुबो दिया और उन दुकानदारों को छाती पीटकर रोते रहने को छोड़ दिया।

जिले - अब उनके बाकी दिन यूँ ही छाती पीटते हुए ही बीतेंगे। अब तू आगे की बता।

नफे - इस मजबूत लहर के बाद चीनी ड्रैगन की अवैध संतान की विध्वंसक लहरों का आगमन हुआ।

जिले - चीनी ड्रैगन की अवैध संतान की लहरें? भाई, मैं कुछ समझा नहीं।

नफे - चीनी ड्रैगन की अवैध संतान यानि कि कोरोना। इसकी अब तक दो लहरें दुनिया में मौत का तांडव मचा चुकी हैं।

जिले - सही कहा भाई, चीनी ड्रैगन की इस अवैध संतान ने दुनिया की ऐसी-तैसी कर डाली। सुन रहे हैं कि कुल मिलाकर इस मुएँ कोरोना की पाँच लहरें आयेंगीं। अब न जाने ये तीसरी लहर कब आएगी।

नफे - संभावना तो ये है कि अपने देश में इसकी तीसरी लहर जल्द ही आएगी।

जिले - तू इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकता है?

नफे - तुझे हो न हो पर मुझे अपने देश के कुछ महान लोगों पर पूरा विश्वास है, कि वे सब मिलकर इस तीसरी लहर को जल्द ही ले आयेंगे।

जिले - वो भला कैसे?

नफे - इसके लिए उन्होंने तैयारी शुरु कर दी है। वे सब बिना मास्क के बिना बात के घर से बाहर घुमक्कड़ी का आनंद ले रहे हैं और सोशल डिस्टेन्सिंग की हत्या तो उन्होंने पहले ही उसका गला दबा कर दी है। 

जिले - भाई, मैं तो चला।

नफे - कहाँ को चला?

जिले - अगर ये महान लोग तीसरी लहर लाने की तैयारी शुरू कर चुके हैं, तो मैं भी जाकर इनसे बचने तैयारी आरंभ करता हूँ।

नफे - ईश्वर तेरी कोरोना से रक्षा करे।

जिले - भाई, ईश्वर सिर्फ मेरी ही नहीं बल्कि तेरी और सारी दुनिया की इस कोरोना से रक्षा करे।

नफे - एवमस्तु!

गुरुवार, 10 जून 2021

हास्य व्यंग्य : कोरोना काल की बहुएं

    पुलिस कर्मी जिले-नफे पुलिस पिकेट पर तैनात हो जनता को कोविड गाइडलाइन्स का पालन करवाने की ड्यूटी में व्यस्त हो रखे हैं।
जिले - भाई नफे!
नफे - हाँ बोल भाई जिले! 
जिले - आज सड़क पर ऐसा क्या देख लिया जो तेरी बाछें इतनी ज्यादा खिली हुई हैं?
नफे - भाई, कोरोना काल की बहुओं को देख कर ये बाछें खिली हुई हैं।
जिले - कोरोना काल की बहुएं? पर भाई मुझे तो कहीं कोई बहू-वहू दिखाई नहीं दे रही है।
नफे - ध्यान से देखेगा तो वो बहुएं तुझे दिख जायेंगीं।
जिले - भाई, तू पहेली मत बुझा। साफ-साफ बता कि कहाँ हैं कोरोना काल की बहुएं?
नफे - सामने देख, वो आ रहीं हैं कोरोना काल की बहुएं।
जिले - भाई, लगता है तुझ पर पुलिस की नौकरी की थकान का कुछ ज्यादा ही असर हो गया है, तभी तू सामने आ रहे आदमियों की जगह औरतों को देख रहा है।
नफे - जो मैं तुझे दिखाना चाह रहा हूँ, उसे तू देख कर भी नहीं देखना चाह रहा है। 
जिले - भाई, अब तू दिमाग का दही मत कर और जल्दी से कोरोना काल की बहुओं को दिखा।
नफे - सामने से आ रहे लोगों को और उनके घूँघट को ध्यान से देख।
जिले - हे भगवान, लगता है कि तू मुझे पागल करके ही छोड़ेगा। सामने से आदमी आ रहे हैं और उन्होंने कोई घूँघट-वूंघट नहीं ओढ़ रखा है। उन्होंने मुँह पर मास्क लगा रखा....लगा भी नहीं रखा बल्कि अपने-अपने गले में लटका रखा है।
नफे - वो ही तो कोरोना काल की बहुएं हैं और उन्होंने जो मास्क गले में लटका रखा है वो है उनका घूँघट।
जिले - मैं कुछ समझा नहीं।
नफे - भाई, ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। तू बस तैयार रह क्योंकि कोरोना काल की बहुएं अपने जेठ और ससुर को देख कर झट से घूँघट ओढ़ लेंगीं। इससे पहले कि बहुएं घूँघट ओढ़ें, हमें उनसे उनकी मुँह दिखाई का नेग ले लेना है।
जिले - एक मिनट, कोरोना काल की बहुओं के जेठ और ससुर हम हैं क्या? 
नफे - ठीक समझा!
जिले - देख भाई, बेशक तेरी और मेरी जन्मतिथि कागजों में समान हो पर मेरे बापू ने मेरे जन्म प्रमाणपत्र में मेरी उम्र ज्यादा लिखवा रखी है। सो कोरोना काल की बहुओं का तू ससुर है और मैं हूँ जेठ।
नफे - ठीक है बहुओं के जेठ जी!
जिले - और एक बात और सुन, बहुओं से मुँह दिखाई का नेग लिया नहीं जाता बल्कि दिया जाता है।
नफे - जेठ महाराज, कोरोना काल की बहुओं से मुँह दिखाई का नेग लिया ही जाता है, ताकि  वो यूँ सरेआम घूँघट उठाने से बाज आयें।
जिले - हूँ, वैसे इन बहुओं को घूँघट गिराने का इतना चाव क्यों रहता है?
नफे - दरअसल इनके दिलों में कोरोना सनम से गलबहियां करने की कुछ ज्यादा ही चाहत रहती है। पर इन्हें ये नहीं पता होता, कि इनकी चाहत के चक्कर में इनका कोरोना सनम इनके अगल-बगल के लोगों से भी गलबहियां कर डालेगा।
जिले - फिर तो इन्हें कोरोना सनम से दूर रखने के लिए दिलबर लट्ठ से मिलवाना पड़ेगा।
नफे - दिलबर लट्ठ से मिलवाने का कार्यक्रम इनसे नेग वसूलने के बाद ही रखेंगे। अगर सही मात्रा में नेग न मिला तो इनकी दादी सास बुरा मान जाएगी।
जिले - अब ये इनकी दादी सास कौन है?
नफे - दादी सास बोले तो सरकार।
जिले - भाई, दादी सास को बिलकुल भी बुरा नहीं मानने देंगे। तू बस नेग वसूलने की तैयारी रख मैं कुछ देर में ही इन कोरोना काल की बहुओं को पकड़ कर तेरे पास लाता हूँ।
इतना कह कर जिले ने दिलबर लट्ठ को उठाया और कोरोना काल की बहुओं की ओर तेजी से चल पड़ा।
चित्र गूगल से साभार

सोमवार, 7 जून 2021

दोषी नहीं थे सम्राट पृथ्वीराज चौहान


     तिहास में चर्चित क्षत्रिय वंशों में एक चौहान वंश के शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय, जिनकी उपाधि रायपिथौरा थी तथा जिनका शासनकाल सन 1178 ईसवी से 1192 ईसवी था, हिंदुओं के सर्वाधिक चर्चित शासकों में से एक हैं। सम्राट पृथ्वीराज के पिता राजा सोमेश्वर चौहान थे। अपने पिता की मृत्यु के समय वह लगभग 11 वर्ष के थे तथा नाबालिग होने के कारण अपनी माँ के साथ राजगद्दी पर आसीन हुए थे। उन्होंने वर्तमान उत्तर-पश्चिमी भारत पर शासन किया। उनका वर्तमान राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों पर भी नियंत्रण था। उनके राज्य की राजधानी अजयमेरु, जिसे आधुनिक समय में अजमेर कहा जाता है, में स्थित थी। हालाँकि मध्ययुगीन लोक किंवदंतियों ने उन्हें भारत के राजनीतिक केंद्र दिल्ली के राजा के रूप में वर्णित किया है, जो उन्हें पूर्व-इस्लामी भारतीय शक्ति के प्रतिनिधि के रूप में चित्रित करते हैं।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान को उनके पराक्रम एवं वीरता के लिए स्मरण किए जाने के साथ-साथ इस बात की भी चर्चा की जाती है, कि यदि उन्होंने अपने चिर-परिचित शत्रु शहाब-उद-दीन मुहम्मद गौरी को युद्ध में पराजित करने के पश्चात् क्षमादान नहीं दिया होता, तो आज भारत का इतिहास कुछ और ही होता। रायपिथौरा के राजपूत समाज में भी उनके द्वारा मुहम्मद गौरी को दिए गए क्षमादान के लिए उनकी दबे मुँह आलोचना की जाती है। बेशक उनकी कितनी भी आलोचना की जाए अथवा उन्हें भारत में मुस्लिम साम्राज्य की  स्थापना का दोषी माना जाएलेकिन इसमें उनका कोई दोष नहीं था।

इस बात को समझने के लिए हमें मध्यकाल की वैश्विक परिस्थितयों का गंभीरता से अध्ययन करना पड़ेगा अरब की भूमि पर इस्लाम धर्म के उदय होने के पश्चात् पूरे विश्व में इस्लाम की पताका फहराने के लिए क्रूर अरबी-तुर्की मुस्लिम हमलावरों की रक्त की प्यासी तलवार विश्व के किसी न किसी राज्य पर आक्रमण कर वहाँ रक्तपात, लूटमार व बलात्कार जैसे कुकर्म करके अपना नाम इतिहास के काले अक्षरों में लिखवा रही थी विधर्मियों से युद्ध में जीतने के लिए विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी हर उल्टे से उल्टा व गलत से गलत तरीका अपनाने में कोई संकोच नहीं करते थे उनका उद्देश्य किसी भी तरह से युद्ध जीतकर विधर्मियों का नाश करना अथवा उन्हें उनके धर्म को तिलांजलि दिलवा कर इस्लाम धर्म में धर्मान्तरित करना होता था जिस समय भारत की पश्चिमोत्तर सीमा इस्लामी आक्रमण को झेल रही थी, उस समय भारत में राजपूत युग चल रहा था भारत के इतिहास में सन 648 ईसवी से सन 1206 ईसवी  तक के समय को 'राजपूत युगकी संज्ञा दी गयी है। इस युग का आरंभ 648 ईसवी में सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु से हुआ तथा इसकी समाप्ति 1206 ईसवी में भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना से हुई। राजपूत शासक मुस्लिम आक्रान्ताओं से चारित्रिक रूप में अतिश्रेष्ठ थे। राजपूत शासकों में कुछ ऐसे विशिष्ट गुण थेजिनके कारण उनकी प्रजा उन्हें आदर की दृष्टि से देखा करती थी। एक राजपूत योद्धा अपने वचन का पक्का होता था और वह किसी के साथ विश्वाघात नहीं करता था। वह युद्ध क्षेत्र में अपने शत्रु को पीठ नहीं दिखाता था। वह रणभूमि में वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त करना पसंद करता था। राजपूत योद्धा निशस्त्र शत्रु पर प्रहार करना महापाप और शरणागत की रक्षा करना परम धर्म समझता था।

राजपूत योद्धाओं के गुणों की प्रशंसा करते हुए कर्नल टॉड ने लिखा है, "यह स्वीकार करना पड़ेगा, कि राजपूतों में साहसदेशभक्तिस्वामिभक्तिआत्म-सम्मानअतिथि संस्कार तथा सरलता के गुण विद्यमान थे।“ डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने राजपूतों के गुणों की प्रशंसा करते हुए लिखा है, "राजपूत में आत्म-सम्मान की भावना उच्च कोटि की होती थी। वह सत्य को बड़े आदर की दृष्टि से देखता था। वह  अपने शत्रुओं के प्रति भी उदार था और विजयी हो जाने पर उस प्रकार की बर्बरता नहीं करता थाजिसका किया जाना मुस्लिम विजय के फलस्वरूप अवश्यम्भावी था। वह युद्ध में कभी बेईमानी या विश्वाघात नहीं करता था और गरीब तथा निरपराध व्यक्तियों को कभी क्षति नहीं पहुंचाता था।“

इसके विपरीत विदेशी मुस्लिम आक्रांता बहुत ही क्रूर, बर्बर एवं अत्याचारी थे। वे युद्ध के दौरान व युद्ध के उपरांत निर्दयता व नीचता की सारी हदों को पार कर जाते थे। युद्ध के बाद पकड़े गए युद्धबंदियों को इस्लाम में धर्मांतरित होने के लिए विवश करना, इस्लाम को अपनाने से मना करने पर उनकी निर्दयतापूर्वक हत्या कर देना, उनके सिरों को काट कर उनकी मीनार बनवाना, स्त्रियों का सामूहिक बलात्कार करना, बच्चों व स्त्रियों को गुलाम बनाकर मुस्लिम सैनिकों को ईनाम स्वरुप बाँट देना अथवा विदेशी मंडियों में ले जाकर कौड़ी के भाव बेच देना उनके प्रिय कर्म थे। युद्ध के समय मुस्लिम शासक अपने सैनिकों में धार्मिक उत्साह भरते हुए युद्ध में उनके मारे जाने पर उन्हें इस्लाम के लिए शहीद होने का दर्जा दिए जाने व जन्नत मिलने तथा जन्नत में 72 हूरों के पाने का एवं युद्ध में जीते जाने पर ढेर सारा धन व अनेकों सुख-सुविधाओं के दिए जाने का लालच दिया करते थे, जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम सैनिक युद्ध में मर-मिटने के लिए तैयार हो जाते थे। एक प्रकार से हम कह सकते हैं, कि जिस समय अरबी-तुर्की मुस्लिम आक्रांता युद्ध जीतने के लिए हर प्रकार का निकृष्ट से निकृष्ट उपाय आजमा रहे थे, उस समय राजपूत शासक अपने आदर्शवादी नियमों के संग अपने शत्रुओं से युद्धभूमि में जूझ रहे थे।

अब सम्राट पृथ्वीराज चौहान के भारत में मुस्लिम सामाज्य की स्थापना के लिए दोषी मानने की बात की जाए,  तो इसमें उनका बिलकुल भी दोष नहीं था। अपनी शरण में आए शरणागत को शरण देना तथा युद्ध में हारे हुए शत्रु को क्षमा प्रदान करना राजपूतों की प्रवृत्ति में सम्मिलित है। सम्राट पृथ्वीराज ने तो केवल अपनी जातीय प्रवृत्ति के अनुसार कर्म करते हुए अपने पराजित शत्रु मुहम्मद गौरी को बार-बार क्षमा प्रदान की। इसी बात का लाभ उठाकर मुहम्मद गौरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ हुए युद्धों में कई बार असफलता मिलने के बावजूद बार-बार उनके राज्य पर आक्रमण किए और अंततः 1192 ईसवी में हुए तराइन के निर्णायक युद्ध में उन्हें पराजित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भारत देश की पावन भूमि को बर्बर विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने अपने खूनी शिकंजे में कस कर अपवित्र करना आरंभ कर दिया।

चित्र गूगल से साभार

गुरुवार, 3 जून 2021

व्यंग्य : आपदा के देव


      कोरोना संक्रमण से ठीक होकर जिले ड्यूटी जॉइन करने के बाद इमरजेंसी ड्यूटी पर नफे के साथ मोटरसाइकिल पर अपने थाना क्षेत्र में विचर रहा है। 
जिले - भाई नफे!
नफे - हाँ बोल भाई जिले!
जिले - आज सरकारी मोटरसाइकिल के पहिए किस मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं?
नफे - ये आज एक विशेष परिवार से मिलने जा रहे हैं।
जिले - ऐसा कौन सा विशेष परिवार है जो मोटरसाइकिल के पहिए पूरे जोश से भागे जा रहे हैं।।
नफे - वो विशेष परिवार पुलिस का खूनी परिवार है।
जिले - पुलिस का खूनी परिवार? भाई, यहाँ बड़ी मुश्किल से कोरोना से जान बचा के आया हूँ, अब तू पुलिस के खूनी परिवार के लफड़े में काहे को फँसा रहा है?
नफे - पुलिस के खूनी परिवार से डरने की जरूरत नहीं है।
जिले - भाई, एक तो वो पुलिस का खूनी परिवार है ऊपर से तू कह रहा है कि उससे डरने की जरूरत नहीं है।
नफे - हाँ, क्योंकि वो परिवार किसी का खून नहीं करता।
जिले - तो फिर क्या करता है? जरा खुल के बता।
नफे - पुलिस का खूनी परिवार अपनी धमनियों में दौड़ रहे रक्त को जरूरतमंदों को दान कर उनके जीवन की रक्षा करता है।
जिले - फिर तो भाई इस परिवार का नाम पुलिस का रक्तदाता परिवार होना चाहिए।
नफे - होना तो चाहिए पर आज के युग में लोग सकारात्मकता से एक कोस दूरी बनाकर रखना ही अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं। इसलिए रक्तदाता परिवार ने खूनी परिवार नाम ही अपनाना उचित समझा।
जिले - भाई, जहाँ दुनिया वाले पुलिस वालों का खून चूसने में कोई कसर नहीं छोड़ते, वहीं पुलिस का ये खूनी परिवार लोगों को खून दान कर रहा है। वैसे ऐसा करके इस परिवार को मिलता क्या है?
नफे - रक्तदान के बाद आत्मिक संतुष्टि और लोगों का आशीर्वाद व दुआएँ।
जिले - इस कलियुग में आत्मिक संतुष्टि, आशीर्वाद व दुआएं तो बहुत कीमती चीजें हैं।
नफे - हाँ भाई, इन कीमती चीजों के लिए पुलिस के इस खूनी परिवार के कई सदस्य तो रक्तदान करने में शतक लगा चुके हैं।
जिले - नमन है ऐसे शतकवीरों को! जिस समय कुछ लोग कुटिलता और स्वार्थ का नगाड़ा पीटने में मस्त हैं, उस समय ये रक्तदानी मानवता की शहनाई बजा रहे हैं। (कुछ सोचते हुए) भाई, मैं एक बात सोच रहा हूँ।
नफे - जो सोच रहा है बोल दे।
जिले - मैं सोच रहा हूँ कि मैं भी पुलिस के इस खूनी परिवार की सदस्यता ले लूँ। 
नफे - बिलकुल अच्छा सोचा है। जिले, उस दिन तू पूछ रहा था न कि देव कैसे होते हैं?
जिले - हाँ भाई, पूछा था पर तूने इसके बारे में बाद में बताने को कहा था।
नफे - अपने रक्त से मानव जीवन की रक्षा करने वाले देव नहीं तो और क्या हैं। इनके साथ-साथ वे सब मानव, देव की श्रेणी में रखे जा सकते हैं, जो ऐसे विकट काल में मानव जाति की सेवा और रक्षा में कर्मठता से जुटे हुए हैं।
जिले - सही कहा भाई, ऐसे मानव आपदा के देव ही हैं। इनके परिवार में सम्मिलित होकर मानवता की सेवा करना मेरा सौभाग्य ही होगा।
नफे - जिले, ये तेरा बहुत ही नेक विचार है।
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