सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

कविता : सच्ची दिवाली


इस दिवाली दिये जलाना
देश की सौंधी माटी के 
भूल के भी तुम मत लाना
लड़ियाँ-बल्ब चीन घाती के

अपना पैसा अपने घर में
हमें छिपा के रखना है
लघु उद्योगों की सांसों को 
हमें बचा के रखना है

लड़ी-बल्बों से कीट-पतंगे
घर के भीतर बढ़ते हैं
दिये जलाना घी के तुम 
बीमारी को ये हरते हैं

चीनी बल्बों से भारत की 
अर्थव्यवस्था टिमटिम करती है
देशी दिये अपना के देखो
कैसे ये सरपट भगती है

मँहगे मॉलों में जा-जाकर
पैसा न व्यर्थ लुटाना तुम
देसी बनिये से कर खरीदारी 
उसका आस्तित्व बचाना तुम

तब ही मनेगी देश में अपने
अच्छी और सच्ची दिवाली
अर्थव्यवस्था झूमेगी खुश हो
और फैलेगी देश में खुशहाली।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

चित्र गूगल से साभार 

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

कविता : बिहार डूब रहा है


माचार हृदय विदारक है
बिहार डूब रहा है
जो था कभी संस्कृति का वाहक
वो बिहार डूब रहा है

प्रलय ने उत्पात मचाया
या लगा किसी प्रेत का साया
प्रकृति का प्रतिशोध है  
या फिर किसकी है ये माया
चन्द्रगुप्त सम्राट का हृदय
पीड़ा से भर पूछ रहा है  
जो था कभी आर्यावर्त का नायक  
वो बिहार डूब रहा है

राजनीति कुलटा देखो
कैसे करती हँसी-ठिठोली
मतिभ्रष्ट होकर विकास  
बोल रहा विनाश की बोली  
गुरु चाणक्य के मन-मस्तिष्क को
सूझे से भी न कुछ सूझ रहा है
जो था कभी विकास का परिचायक
वो बिहार डूब रहा है

बुद्ध के ज्ञान को जिसने
पूरे जग में फैलाया
शांति-अहिंसा का जिसने
विश्व को पाठ पढ़ाया
उस अशोक का कर्म स्थल
अव्यवस्था से जूझ रहा है
जो था कभी संस्कृति का ध्वजावाहक
वो बिहार डूब रहा है

मिल-जुल कर करें जतन
और उठायें हम सब ये बीड़ा
ये पीड़ा है नहीं बिहार की
ये हम सबकी भी है पीड़ा
तकता राह हमारी वो कबसे
आओगे कब ये बूझ रहा है
जो था कभी प्रगति का महानायक  
वो बिहार डूब रहा है 

लेखक : सुमित प्रताप सिंह  

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