शनिवार, 1 सितंबर 2018

पुस्तक समीक्षा 
पाठकों के लिए नायाब तोहफा है ये दिल सेल्फ़ियाना 
व्यंग्य का सामर्थ्य असीमित होता है। व्यंग्य के माध्यम से विद्रूपताविसंगतिविडंबनानकारात्मकतारुग्णता पर किया प्रहार एक तिलमिलाहट की रचना करता है।  वस्तुतः विकार के विरुद्ध आवाज उठाना पर एक विशिष्ट शैली व सीधे  बल्कि घुमा-फिराकर वही व्यंग्य के नाम से जानी जाती है। या यूँ कहें कि जूते को मखमल में लपेटकर मारने की कला का नाम है व्यंग्य। पर व्यंग का सृजन कोई सरल प्रक्रिया नहीं है। गहन चिंतन सामाजिक सर्वेक्षण विसंगति व अस्वस्थता  की खोजफिर विषय वस्तु की तीक्ष्णता को यथावत रखते हुए उसे चाशनी में पागकर  प्रवाहमयता व संप्रेषणीयता के साथ पाठक के समक्ष परोसना कोई सुगम व आसान कार्य नहीं है। वस्तुतः व्यंग्य की रचना  श्रमसाध्यताबुद्धिसाध्यता व धैर्यसाध्यता के उपरांत ही संभव होती है। इसीलिए व्यंग्यकार बन पाना कठिन ही होता है।

 इस समय जो युवा व्यंगकार समग्र ऊर्जस्विता व ओजस्विता के साथ व्यंग्य सृजन करके तीव्रता के साथ सफलता के सोपानों को नाप रहा है वह है सुमित प्रताप सिंह। जो कि 'ये दिल सेल्फ़ियानाकृति के माध्यम से अपना चौथा (कुल छह पुस्तकें) व्यंग्य संग्रह लेकर पाठकों के समक्ष रूबरू हुए हैं।  एक से बढ़कर एक व्यंग्यअनूठी मौलिकताविषय वस्तु की उत्कृष्टताशब्दों का शानदार मायाजालप्रस्तुतीकरण की विशेषताअन्वेषणात्मक शैलीगुदगुदाते वाक्य,  कथ्य का बखूबी प्राकव्य समस्त असाधारण व अनुपम गुणधर्म हमें इस कृति के समस्त व्यंग्यों में दृष्टिगोचर होते हैं। 

गुटखे की पीक के माध्यम से यत्र-तत्र-सर्वत्र कलाकृतियों के निर्माता पिकासो को ढूंढकर पाठकों के समक्ष अत्यंत निपुणता से प्रस्तुत करके सुमित हम और हमारे 'स्वच्छता अभियानकी दशा/दुर्दशा का सहज ही मूल्यांकन करने में समर्थ दिखाई देते हैं। वे व्यंग बाण चलाकर लक्ष्य भेदने में सफल होते हैं। वे लिखते हैं - "देशी विदेशी पर्यटक तो इन कलाकृतियों को देखकर इन्हें निर्मित करनेवाले गुटखेबाज कलासेवियों की कलाकारी के आगे नतमस्तक हो उठते हैं।"  चाहे 'ढीले लंगोट वाले बाबाकी बात हो या फिर 'मुल्लाजी और शुभचिंतक लल्लाजीका वृतांत व्यंग्यकार हर पिच पर सेंचुरी बनाते हुए दृष्टिगत होता है। 

 बेवफा सोनम गुप्ता के नाम पत्र लिखते समय तो व्यंग्यकार भाषा विज्ञानी ही नहीं, बल्कि भाषा अन्वेषक व शब्द विशेषज्ञ प्रतीत होता है जब वह इस पत्र का आरंभ ‘सादर दिल जलस्ते’ से संबोधित करते हुए करता है। 'अब तेरा क्या होगा कालिया' व ‘'नौटंकी उत्सवमें सुमित एक अलग ही प्रकार का प्रताप दिखाते हुए सुशोभित होते हैं।  चाहे कथ्य की बात होशिल्प की या फिर प्रस्तुति की वे नायाब हैंबहुत खूब हैंविशिष्ट हैं और उत्कृष्ट हैं। हँसने-हँसाने के मध्य अपना संदेश देने में जो व्यंग्यकार कदापि ना चूके वह चोखा है और वही अनोखा है। वे लिखते हैं -  "जिन संतानों में अपने माँ-बाप को सूखी रोटी देने में भी प्राण निकलते थेवो ही श्राद्धों में कौओं को  पूर्वजों के नाम पर खीर- पूरी गर्वित होकर खिलाते हुए मिल जाते हैं।"
 'अल्लाह हू अकबरमें तो शुरु से ही उन्होंने छक्का जड़ दिया है। वे लिखते हैं - "अल्लाहू अकबर! कोई चीखा। इस चीख के साथ ही धड़ाधड़ बम फूटने आरंभ हो गए। बम धमाकों के बाद सुनाई दी जानेवाली चीत्कारों से हृदय द्रवित होने लगा।" यह पढ़कर बाकी व्यंग्य पढ़ने की जरूरत ही नहीं रह जाती है। फर्कमच्छर तंत्र व मेरी खर्राटों भरी रेलयात्रा में भी रचनाकार प्रांजल भाषालयप्रवाहअनुशासन, तीखेपन व गतिशीलता के साथ आगे बढ़ता हुआ नज़र आता है। पाठकों को अपने से जोड़ लेने व वशीभूत कर लेने की क्षमता व्यंग्यकार सुमित प्रताप सिंह में निसंदेह विद्यमान है। 

यथार्थ तो यह है कि सफल व्यंगकार वही होता है, जो समाज और उसके हालातों को गहनतासूक्ष्मतासंजीदगीपरिपक्वता व पैनेपन के साथ न केवल देखता है, बल्कि उन्हें समझ-बूझकर विश्लेषित भी करता है। जो व्यंग्यकार विसंगतियों की जाँच-पड़ताल जितनी सूक्ष्मता से कर लेता हैवह उतना ही अधिक समर्थ व्यंग्यकार माना जाता है।  सुमित में ऐसे ही लक्षण स्पष्टतः  नज़र आते हैं। उनके पास अभिधाव्यंजनालक्षणा शक्तियों का सामर्थ हैतो 'पिन पॉइंटकरने का मादा भी है। वे कहने के पूर्व स्वयं भी बहुत कुछ सोचते-समझते हैं और पाठकों को भी बहुत कुछ सोचने-समझने को विवश कर देते हैं। कहीं वे पुलिस को रगड़ते हैंतो कहीं दुपट्टे के सिसकने पर उसकी खबर लेते हैं। पिता दिवस की कलई खोलते हुए वे जो लिखते हैं वो सीधा कलेजे में बिंध जाता है। भले ही बिंधेघाव करे या पीड़ा दे पर यह तो वही है जो सुमित प्रताप सिंह 'माफ कीजिएगा पिताजीमें लिखते हैं।  वे लिखते हैं - "कोई वृद्धाश्रम में जाकर अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ अमूल्य क्षण निकालकर अपने पिता के साथ पितृ दिवस मनाकर अपने पुत्र होने के कर्तव्य को निभायेगातो कोई भला मानव आज घर के कोने में अपने जीवन के अंतिम दिन गुज़ार रहे पिता को एक दिन ताजा और स्वादिष्ट भोजन खिलाकर अपने अच्छे बेटे होने का सबूत देते हुए मिल जाएगा।"  

उनके जन्मदिवस परचाँद सीढ़ी का खेल,  बाबा के चरणभेड़िया आया व बलि जैसे व्यंजनों का  खरापन व चोखापन पाठक को तिलमिला देता है। पर है  तो सत्य व प्रमाणित यथार्थ। 'बलिव्यंग्य का समापन अत्यंत मर्मस्पर्शी है - "राम समूह अपने माथे का पसीना पोंछते हुए भर्राए हुए स्वर में बोले - गांधी की बलि चढ़ा कर आया हूँ। वो भी एक नहीं सैकड़ों कीताकि पेंशन का बाकी पैसा आराम से मिल जाए और हमारी बेटी दहेज की बलि न चढ़ सके।" साफगोई व सरलता के साथ हमारे समाज के नंगेपन को चित्रित करता है यह व्यंग्य अद्वितीय व असाधारण है। जहाँ 'साहित्यिक बगुलेमें वे व्यावसायिकता पर करारी चोट करते हैंतो वहीं 'दुशासन का लुंगीहरणमें वे एक अनूठा व उत्कृष्ट आयाम लिए हुए नज़र आते हैं।  श्रीकृष्ण दुशासन की पुकार सुनकर लुंगी की लंबाई बढ़ाने में लग जाते हैं। शायद नारी मुक्ति का यही परिणाम होगा, कि पुरुष को अपनी लुंगी को सुरक्षित रख पाना मुश्किल हो जाएगा। विषय वस्तु की असाधारणता व प्रस्तुति की कोमलतामाधुर्य व सरसता ने सभी व्यंग्यों को  रससिक्त बना दिया है।

 शीर्षक व्यंग्य 'ये दिल सेल्फ़ियानामें वे सेल्फी लेने की लत / जुनून पर चोट करते हैं। इसे वे 'सेल्फ़ीसाइडरोग का नाम देते हैं। सेल्फ़ी लेने में होने वाली दुर्घटनाओं की बात भी वे करते हैं।  इसकी तुलना वे सनक से करते हैं। 'लव फ़ॉर सेल्फ़ीकी खबर लेते व्यंग्यकार सुमित प्रताप सिंह वास्तव में छिद्रावलोकन करने का सामर्थ्य रखते हैं।  वे लिखते हैं - "जहाँ घराती और बाराती विभिन्न पकवानों का आनंद ले रहे होते हैं,  वहीं सेल्फ़िया सेल्फ़ी से अपनी भूख मिटा रहा होता है।"

यह यथार्थ है कि सुमित प्रताप सिंह का व्यंग्य लेखन धमाकेदार है।  वस्तुतः वे परिपक्व हैंसिद्ध हैंसमर्थ हैं और सक्षम भी। उनके पास एक मौलिक नज़रिया है और प्रस्तुतीकरण का असाधारण सामर्थ्य है। उनकी शैली में एक विशिष्टता है और ताज़गी भी है। वे आभासी दुनियाअसंवेदनशीलतानिष्ठुरताअसामाजिकता व मूल्य पतन पर बेहतरीन कलम चला रहे हैं। हर व्यंग्य को रोचक बनाने का उनमें सामर्थ्य है।  मैं उनके प्रति अनंत शुभकामनाएं अर्पित करते हुए उनके सारस्वत यश की मंगलकामना करता हूँ। 

'सुमितआजकल लिख रहेविभिन्न व्यंग्य अभिराम।
हो प्रताप हरदम 'शरद', आये नहीं विराम।।
पुस्तक : ये दिल सेल्फ़ियाना
लेखक : सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली
प्रकाशक : सी.पी. हाउस, दिल्ली - 110081
मूल्य : 160 रुपए     पृष्ठ : 127
समीक्षक : प्रो. शरद नारायण खरे, मंडला, (म.प्र.)

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