बुधवार, 4 जुलाई 2018

हास्य व्यंग्य - भैंसिया संग सेल्फ़ी



जिले : भाई नफे! 

नफे : हाँ बोल भाई जिले!

जिले : क्या बात है बड़ा तरोताजा सा दिख रहा है?

नफे : अरे भाई गाँव की सैर करके आ रहा हूँ इसलिए तरोताजा दिख रहा हूँ।

जिले : अच्छा, पर यूँ अचानक गाँव की सैर की भला कैसे सूझ गई?

नफे : बस भाई मन किया और गाँव की ओर चल पड़ा।

जिले : अच्छा तो फिर ये बता कि गाँव के भोले-भाले लोगों क्या हाल हैं? 

नफे : भाई, गाँव के लोग अब भोले-भाले से भाले बन चुके हैं।

जिले : मैं कुछ समझा नहीं जरा खुलके बता।

नफे : भाई, कभी गाँव के लोग भोले-भाले थे। एक दिन उन्होंने भोले शब्द को चबाकर गाँव की सीमा के बाहर थूक दिया। अब वे सिर्फ भाले हैं।

जिले : अच्छा ऐसी बात है क्या? 

नफे: हाँ भाई, बिल्कुल ऐसी ही बात है।

जिले : पर सारे गाँव वाले तो ऐसे नहीं होंगे। उनमें कुछ न कुछ तो अभी भी भोले-भाले ही होंगे।

नफे :  हाँ, पर उनकी संख्या बहुत ही कम रह गई है। 

जिले :  मतलब कि शहर की बीमारी वहाँ भी अपने पाँव पसार चुकी है।

नफे : हाँ भाई, शायद शहर ने अपनी बीमारी गाँव को भेंट कर दी है।

जिले : असल में मेरा मतलब ये था कि अब गाँव भी मतलबी हो गया है।

नफे : हाँ भाई और उसने मतलबी होने में शहर को भी कई कोस पीछे छोड़ दिया है।

जिले : मतलब कि गाँव को गाँव कहने लायक कुछ भी बचा नहीं।

नफे : क्यों नहीं बचा है। अभी भी गाँव में शुद्ध हवा है, हरियाली है और अभी तक वहाँ की फ़िज़ा मतवाली है। 

जिले : मतलब कि गाँववालों को छोड़कर वहाँ की हर चीज अभी भी भोली-भाली है।

नफे : हाँ भाई बिलकुल भोली-भाली है।

जिले : अच्छा तू ये बता कि तूने गाँव में बैलगाड़ी की सवारी की या नहीं?

नफे : भाई, अब गाँव-गाँव पक्की सड़कें बन गयीं हैं और वहाँ वाहन फर्राटे मारते हुए चलते हैं। और इस तेज रफ़्तार के समय में अब भला कौन बैलगाड़ी में चलना चाहता है। और वैसे भी अब बैल गाड़ियों की नहीं बल्कि लोगों की खाने की थालियों की शोभा बढ़ाने लगे हैं।

जिले : भाई, तूने बिलकुल सही कहा। अच्छा ये बता कि फिर तूने गाँव में क्या-क्या किया?

नफे : शहर की चिल्ल-पौं से दूर गाँव के शांत वातावरण में मैंने खुली हवा में खुलकर सांस ली। वहाँ के खेत-खलियानों और बाग-बगीचों में चहलकदमी की। ऐसा करने से मेरे अंग-अंग में उमंग भर गयी, मस्तिष्क तरोताजा हो गया, दिल मस्ती में झूमने लगा और फेफड़े शुद्ध हो मुस्कुराने लगे। और इसी मस्ती में झूमते हुए मेरा दिल सेल्फ़ियाना हो गया और मैंने एक गोल-मटोल, काली-कलूटी भैंसिया संग सेल्फ़ी ले डाली।

जिले : भैंसिया तो तेरे संग सेल्फ़ी में कैद होकर काफी खुश हो गयी होगी?

नफे : खुश नहीं बल्कि बहुत नाराज हो गयी।

जिले : भला नाराज क्यों हो गयी?

नफे :  गाँव में भैंसिया के पास जाकर जब मैंने गुजारिश की - भैंसिया रानी अगर तुम्हायी इजाजत होय तो तुम्हाये संग एक सेल्फ़ी ले लयी जायै?

जिले : तो फिर भैंसिया रानी का क्या जवाब मिला?

नफे :  भैंसिया रानी तुनक के बोली - हमें तुम शहर वालन संग कोई सेल्फ़ी-वेल्फ़ी नहीं खिंचवानी।

जिले : फिर तूने क्या किया?

नफे : मैंने उससे पूछा - सेल्फ़ी से ऐसी का नाराजगी है?

जिले : फिर वो क्या बोली?

नफे : भैंसिया रानी गुस्से में बोली -  तुम्हाये जैसे एक आये हते। एक क्रीम देकै बोले इधर क्रीम लगाओ और उधर गैया जित्ती भक्क गोरी निकर अइयौ। बा क्रीम शरीर पै घिस-घिसकै दम निकर गओ पर कछु परिणाम नहीं निकरो।

जिले : हा हा हा भैंसिया का गुस्सा जायज था। फिर तूने उसकी बात का क्या उत्तर दिया?

नफे : मैंने निरुत्तरावस्था में भैंसिया के गुस्से का आदर करते हुए उसके साथ इतनी दूर से सेल्फ़ी ली कि उसके सींग मेरा तिया-पाँचा न कर पायें और उसके बाद मैं उधर से जल्दी से खिसक लिया।

जिले : बिलकुल ठीक किया भाई। अब अगली बार गाँव जाना हो तो मुझे ले जाना मत भूलना। 

नफे : क्यों क्या वहाँ गाँव के भाले लोगों से घायल होना है?

जिले : अरे नहीं भाई ! मैं तो तेरी तरह शहर की चिल्ल-पौं से दूर गाँव के शांत वातावरण में खुली हवा में खुलकर साँस लेना चाहता हूँ। वहाँ के खेत-खलियानों और बाग-बगीचों में चहलकदमी करना चाहता हूँ ताकि मेरे भी अंग-अंग में उमंग भर उठे, मस्तिष्क तरोताजा हो जाए,  दिल मस्ती में झूमने लगे और फेफड़े शुद्ध हो मुस्कुराने लगें। और हाँ इन सबके साथ-साथ भैंसिया रानी के संग एक अदद सेल्फ़ी भी लेना चाहता हूँ।

नफे : और किसी के लिए न सही पर भैंसिया रानी संग सेल्फ़ी खिंचवाने के लिए तुझे गाँव जरूर ले जाना पड़ेगा।

जिले : तो वादा रहा?

नफे : हाँ भाई पक्का वादा।

लेखक - सुमित प्रताप सिंहनई दिल्ली

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