शनिवार, 26 मई 2018

कविता - बोर्ड परीक्षा का खौफ


बोर्ड परीक्षा थी सर पर 
और हृदय काँपता रहता था 
अब क्या होगा 
तब क्या होगा 
यही जपता रहता था 
मन में भरकर हर्ष 
खेले पूरे वर्ष 
अब कुछ दिन में 
क्या कर पायेंगे 
यदि हुआ कुछ गड़बड़ घोटाला
हम तो लज्जा से नहायेंगे 
खौफनाक था बोर्ड का साया 
डरता था मन और कांपती काया 
कक्षा दस में हाल हुआ जो 
याद अचानक ही आया 
विज्ञान लेने की इच्छा थी 
पर कला विषय ही मिल पाया 
पुस्तक में रहतीं आँखें चिपकीं 
फ्यूचर लगने लगा था रिस्की 
विषयों को दिल से रटना था 
अच्छे काॅलेज का सपना था 
होना चाहते थे सफल 
सो सोते हुए भी करते थे प्रश्न हल 
मेहनत थी अपनी भरपूर 
बोर्ड परीक्षा अब नहीं थी दूर 
हर पेपर जाने लगा अच्छा 
मन में था संतोष सच्चा 
आया जब परिणाम 
छलका खुशी का जाम 
क्लास में किया था टाॅप 
भला हो बोर्ड परीक्षा का खौफ।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह
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