शनिवार, 28 अप्रैल 2018

साहब की चिंता


साहब ने चिंतित हो पूछा -
ए मैन तुम अक्सर 
किन ख्यालों में 
जा डूबता?
मैंने उन्हें समझाया -
जनाब! 
मैं ख्यालों नहीं डूबता
बल्कि सदैव 
खोजता रहता हूँ 
समाज में व्याप्त
मूल्यहीनता
भ्रष्टाचार
पाखंड
मिथ्याचार
मूर्खता
दोष 
समस्या
विसंगति
और विद्रूपता।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

सुमित प्रताप सिंह की पुस्तक ये दिल सेल्फ़ियाना का हुआ लोकार्पण


नई दिल्ली : युवा व्यंग्यकार सुमित प्रताप सिंह की पुस्तक ये दिल सेल्फ़ियाना का लोकार्पण शोभना सम्मान-2017 समारोह के दौरान भव्य तरीके से किया गया इस दौरान शोभना वेलफेयर सोसाइटी द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करनेवालों को शोभना सम्मान-2017 से विभूषित किया। इस समारोह का आयोजन दिनांक 14 अप्रैल, 2018 को पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, नेहरु नगर, नई दिल्ली के सभागार में दोपहर 2 बजे से सायं 5 बजे के बीच किया गया। इस सम्मान समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डॉ. नरेन्द्र कोहली ने की तथा मुख्य अतिथि श्री देवेंद्र कुमार जैन (सेवानिवृत ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश एवं पूर्व मुख्य विधि सलाहकार म. प्र. गृह निर्माण मण्डल) रहे। समारोह के विशिष्ट अतिथि की भूमिका सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री मलय जैन (ए.आई.जी., मध्य प्रदेश पुलिस), श्री विवेक त्रिपाठी (एडिशनल डायरेक्टर, टेक्निकल एजुकेशन, जी.एन.सी.टी., दिल्ली) एवं डॉ. रवीन्द्र कुमार गुप्ता (प्रधानाचार्य, पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज-सांध्य) ने निभाई। इसका संयोजन समाजसेवक श्री सुरेश सिंह तोमर ने किया तथा सानिध्य रहा शोभना वेलफेयर सोसाइटी की अध्यक्षा श्रीमती शोभना तोमर का। कार्यक्रम का संचालन सुमित प्रताप सिंह ने किया। 

कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती को पुष्प माला अर्पण व दीप प्रज्वलन करके किया गया। इसके पश्चात् देश भर की चुनी हुईं विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाओं को शोभना सम्मान-2017 से अलंकृत किया गया। तदुपरान्त सुमित प्रताप सिंह की पुस्तक ये दिल सेल्फ़ियानाको लोकार्पित किया गया। 

सुमित की पुस्तक पर चर्चा करते हुए डॉ. हरीश अरोड़ा ने कहा कि पद या कोई उपाधि अपने नाम के आगे लगा लेने से लेखन अच्छा नहीं हो जाता। उसके लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। सुमित ने अपनी पुस्तक में जो मुद्दे उठाये हैं वो आम जीवन से जुड़े हुए हैं। वे अपनी संस्था के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का कार्य कर रहे हैं। 

श्री शैलेन्द्र कुमार भाटिया ने कहा कि लेखन को बिना जिए व्यंग्य नहीं लिखा जा सकता और ये दिल सेल्फ़ियानामें संकलित 37 व्यंग्य सुमित के निजी अनुभव हैं। 

पूर्व राज्य मंत्री, उ.प्र. श्री अशोक यादव ने सुमित को उनकी छठी पुस्तक के लिए बधाई दी और अपनी ग़ज़लें सुनाकर राजनीति पर कटाक्ष किया। 

हल्द्वानी के युवा व्यंग्यकार श्री गौरव त्रिपाठी ने सुमित के व्यंग्य लेखन पर अपने विचार प्रकट किए। 

विशिष्ट अतिथि श्री विवेक त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान समय में संवेदना हीन होते जा रहे हैं और सुमित जैसे साहित्यकारों ने अभी तक अपने लेखन के माध्यम से संवेदना बचाकर रखी है। 

विशिष्ट अतिथि श्री मलय जैन ने कहा कि अधिकतर पुलिस वालों को नकारात्मक सोच के साथ ही देखा जाता है। सबसे ज्यादा पुलिस पर ही व्यंग्य कसे जाते हैं। जनता उम्मीद करती है कि पुलिस सुपरमैन की तरह उनकी सारी परेशानी दूर करे। ऐसे में सुमित का खुद पुलिस में होकर व्यंग्य को नई दिशा देना और पुस्तक के माध्यम पुलिस का भी पक्ष रखना काबिले तारीफ हैं। उन्हें इस पुस्तक में संकलित 100 नंबर पर जनता के फोन सुननेवाले पुलिसकर्मियों की परेशानी पर केंद्रित व्यंग्य भेड़िया आयानामक व्यंग्य काफी पसंद आया। 

विशिष्ट अतिथि डॉ. रवीन्द कुमार गुप्ता ने सुमित को पुस्तक हेतु बधाई देते हुए अपने कॉलेज में चल रही साहित्यिक एवं सामाजिक गतिविधियों को विस्तार से बताया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री देवेन्द्र जैन ने कहा, “सुमित ने इस व्यंग्य संग्रह में विभिन्न विषयों को अच्छी तरह उठाया। भवानी प्रसाद मिश्र कहते थे कि जिस तरह तू बोलता है उस तरह तू लिख। और सुमित प्रताप सिंह ने बोलचाल की आम भाषा और मुहावरों नवीन प्रयोग अपनी रचनाओं में किया हैं। इनके व्यंग्य एक पत्र बेवफा सोनम गुप्ता के नाममें मार-मार के आलू का परांठा बना देनामुहावरा ध्यान आकर्षित करता है। इनका नाटक शैली में लिखा गया हास्य व्यंग्य दुशासन का लुंगीहरणकाफी रोचक और मजेदार है तथा यदि इसे नाटक के रूप में मंचित किया जाए तो ये नाटक प्रेमियों को बहुत पसंद आएगा। सामाजिक सरोकार साहित्य में व्यंग्य विधा के माध्यम से नाविक के तीर जैसा काम करते हैं। भाषा का परिष्कार करके सार्थक व्यंग्य का भविष्य सुमित के हाथों में सुरक्षित है।“

कार्यक्रम के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. नरेन्द्र कोहली ने कहा, “लेखन से पहले आत्म मंथन करें कि रचना किस रूप में प्रस्तुत की जा सकती है। दूसरी विधाओं में टांग न अड़ा कर अपनी मौलिकता को तवज्जो दिया जाए तभी लेखन मजबूत होता है। युवा लिखने की जल्दी में रहता है, इसलिए लड़खड़ा कर गिर जाता है। उन्होंने सुमित के एक व्यंग्य लेख म्हारे गुटखेबाज किसी पिकासो से कम न हैंकी प्रशंसा करते हुए कहा कि आज तक उनका ध्यान ऐसे विषय पर नहीं गया। इस मतलब है कि सुमित व्यंग्य दृष्टि काफी पैनी है। सुमित की दृष्टि उन आकृतियों में कलात्मकता को खोज पाई जो गुटखा थूकने पर यहाँ-वहाँ दीवारों, सड़कों और मनोरम स्थलों पर स्वतः बन जाती हैं। उसे व्यंग्य में उतारने का कार्य नवीन और मौलिक है।“

ध्यातव्य हो कि ये दिल सेल्फ़ियाना सुमित प्रताप सिंह की छठी पुस्तक तथा चौथा व्यंग्य संग्रह है। इससे पहले सुमित की क्रमशः पाँच पुस्तकें, पुलिस की ट्रेनिंग मुसीबतों की रेनिंग (कविता संग्रह), व्यंग्यस्ते (व्यंग्य संग्रह), नो कमेंट (व्यंग्य संग्रह), सावधान! पुलिस मंच पर है (कविता संग्रह) तथा सहिष्णुता की खोज (व्यंग्य संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं। अतिशीघ्र ही इनकी सातवीं पुस्तक बिलकुल सच्चावाला, जो कि एक कहानी संग्रह है, प्रकाशित होनेवाली है।


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