रविवार, 25 फ़रवरी 2018

पाप भरी सेल्फ़ी


     सके पास स्मार्ट फोन नहीं था, वरना वह भी एक अदद सेल्फ़ी तो ले ही लेता। पर उसका सामर्थ्य स्मार्ट फोन लेने का होता तब न। वह तो भूखा था। शायद कई दिनों से भूखा होगा बेचारा। हो सकता है भूख उसके संग सेल्फ़ी ले-लेकर ऊब गई होगी। इसलिए भूख ने भी तंग होकर उसे दुत्कार दिया होगा, सो विवश होकर वह भोजन के कुछ टुकड़ों की आस में इधर-उधर बेचैन हो भटक रहा था। जब भटकाव को मंजिल हासिल नहीं हुई तो अपने भूख से तड़पते हुए पेट के लिए उसने कुछ चावल चुरा लिए और वह बिना तजुर्बे का चोर झट से पकड़ लिया गया। 
वैसे भी अपने देश की विशेषता है कि यहाँ चोर और उसके द्वारा किस स्तर पर चोरी की गई है ये देखकर उससे उसी के अनुसार बर्ताव  किया जाता है। सो उस भूखे-नंगे चोर ने कुछेक चावल चुराकर इतना बड़ा पाप किया था कि वो माफी के लायक ही नहीं था। अगर वह करोड़ों-अरबों घोटाला करता तो सालों-साल कोर्ट में उस पर घोटाला के आरोप को साबित करने में बीत जाते। उम्र के आखिरी पड़ाव में अगर उसके जेल जाने की नौबत आती भी तो वह जेल में निश्चिंत होकर चैन की बंशी यह सोचते हुए बजाता कि बेशक वह जेल में है लेकिन उसने अपने परिवार को इस योग्य बना डाला कि उसकी कई पीढ़ियाँ बैठे-बैठे हलवा-पूरी खायेंगीं। 
अगर वह किसी बैंक के करोड़ो-अरबों रुपयों का गबन करता तो सरकारी तंत्र उसके क़दमों में फूल बिछाकर उसकी अगवानी करते हुए विदेश भागने में निष्ठापूर्वक उसकी हर संभव सहायता करता। विदेश में अरबों-करोड़ों रुपयों से खेलते हुए ऐशो-आराम से उसकी बाकी जिंदगी कटती और वह कभी मुड़कर भी इस देश की ओर नहीं झाँकता। फिर उसके खिलाफ बेशक चाहे जितनी जाँच कमेटियाँ गठित कर दी जातीं या  फिर उसको धर-पकड़ने के लिए अभियान  चलाये जाते। वह विदेश में बैठे-बैठे ही ठेंगा दिखाता और सरकार बेचारी साँप के निकल जाने पर लकीर को पीटती रहती।
सोचिए कि अगर वह घोटाला करता या फिर बैंक का धन हड़पता तो रातों-रात खबरपिपासु मीडिया द्वारा स्टार बना दिया जाता। टी.आर.पी. सुंदरी उसकी सेवा-सुश्रुषा करते हुए उसे अपनी बाहों में भर लेती और दिन-रात उसके क़दमों में ही पड़ी रहती। पर वह ऐसा कुछ न कर सका। उस मैले-कुचैले और अधनंगे इंसान ने अपनी औकात के हिसाब से ही चोरी करने के बारे में सोचा। उसने धृष्टता की और जैसे चूहा रोटी लगाकर रखे हुए पिंजरे में अचानक फँसकर कैद कर लिया जाता है, वैसे ही उस भूखे चोर को भी इंसानों के वेश में धरती पर टहलते हुए शैतानों ने पकड़कर अपने शैतानी शिकंजे में जकड़ लिया। उसे उसके उस घोर पाप के लिए बन्धक बनाकर मारा-पीटा गया। उसे पीटते-पीटते उन शैतानों द्वारा अपने उस वीरतापूर्ण कार्य को यादगार बनाने के लिए पाप भरी सेल्फ़ी ली गई। 
पिटते-पिटते भूख से अधमरा वो पापी चोर बिलकुल ही मर गया। उसके मरने के बाद केवल बाकी बची शैतानों द्वारा खींची गई उसकी वो पाप भरी सेल्फ़ी, जिसे देखकर धरती माँ का दुःख और पीड़ा के मारे कलेजा फट गया और मानवता शर्मसार हो अपनी छाती पीट-पीटकर रोयी। पर उस चोर की आत्मा अपने भूख से कंकाल बन चुके निर्जीव शरीर को देखकर इस बात से प्रसन्न थी कि कम से कम अब तो उसे भूख से यूँ बार-बार नहीं मरना पड़ेगा। 
लेखक - सुमित प्रताप सिंह 


गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

ढाक के तीन पात में खोए हुए मलय जैन


लय जैन इस समय व्यंग्य जगत में जाना-पहचाना नाम है। पुलिसकर्मियों पर अक्सर संवेदनहीन, कड़क और खडूस स्वभाव का होने का आरोप लगता रहता है और लोग आए दिन बिना-बात के पुलिसकर्मियों पर निंदा शस्त्र छोड़ते हुए उन्हें विशेष आदरसूचक शब्दों से सुशोभित करते रहते हैं। इन हालातों के बीच अपने एक हाथ में पुलिसिया छड़ी, दूसरे हाथ में डायरी और कलम लिए मलय जैन साहित्य के क्षेत्र में प्रकट होते हैं तथा अपना फर्ज निभाने के साथ-साथ समाज की विसंगतियों से लड़ते हुए लिख डालते हैं एक व्यंग्य उपन्यास ‘ढाक के तीन पात’, जो चर्चित होता है और होता ही जाता है। चर्चित होकर ये व्यंग्य उपन्यास साल 2017 के आरंभ में शोभना सम्मान ग्रहण करता है और उसी साल के अंत में मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के बाल कृष्ण शर्मा ‘नवीन’ प्रादेशिक पुरस्कार से विभूषित होता है। इस प्रकार मलय जैन के प्रशंसकों की संख्या तेजी से बढ़ने लगती है और प्रशंसकों के प्रेम के कारण इनके एक हाथ में पुलिसिया छड़ी, दूसरे हाथ में कलम-डायरी के साथ-साथ कान पर मोबाइल फोन लग जाता है। अब मलय जैन अपने फर्ज को निभाते हुए, विसंगतियों पर कलम चलाते हुए मोबाइल फोन पर अपने प्रशंसकों से निपटने में व्यस्त रहते हैं। प्रशंसकों का अपने प्रिय लेखक से इतना लगाव हो गया है कि जब भी उन पर कोई छोटी या बड़ी मुसीबत आती है तो वो झट से अपने प्रिय लेखक को फोन मिलाकर उन्हें यह अहसास कराते हैं कि वो लेखक होने से पहले एक पुलिस अधिकारी हैं और उनका ये फर्ज है कि वो अपने प्रशंसकों को उस मुसीबत से निजात दिलवाने में उनकी सहायता करें। इस प्रकार मलय जैन कुछ अधिक ही व्यस्त हो जाते हैं और उस व्यस्तता से कुछ समय निकालकर अपनी साहित्यिक संतान ‘ढाक के तीन पात’ में खो जाते हैं तथा इसके साथ ही साथ अपनी अगली साहित्यिक संतान को उत्पन्न करने का जतन भी आरंभ करने लगते हैं। बहरहाल अब अपनी प्रश्नों की पोटली को खोला जाए और 'ढाक के तीन पात' के रचयिता के मन को टटोला जाए।

मलय जैन की चर्चित कृति 'ढाक के तीन पात

सुमित प्रताप सिंह – मलयजी सादर व्यंग्यस्ते! कैसे हैं आप?
मलय जैन – सादर व्यंग्यस्ते सुमित! मैं सकुशल हूँ आप सुनाएँ।
सुमित प्रताप सिंह – विसंगितियों की कृपा से मैं भी ठीक हूँ। अपनी पोटली में आपके लिए कुछ प्रश्न लाया था। यदि आपकी आज्ञा हो तो पोटली खोलूँ?
मलय जैन – हाँ भाई खोल डालो अपनी पोटली और जो पूछना है पूछ डालो।
सुमित प्रताप सिंह - आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?
मलय जैन - हमारा पैतृक निवास राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त जी की जन्मभूमि चिरगांव का है। मेरे पिता स्वयं भी लेखक हैं सो लिखना मेरे खून में ही था । बचपन में हम जिन पर्यटन स्थलों की सैर को जाते, वापसी पर मेरे पिता यात्रा वृतांत लिखने को प्रेरित करते । अच्छा लगने पर पुरस्कृत भी करते सो लिखने की आदत बनी । सबसे पहले ग्यारहवीं क्लास में रहते 16 बरस की उमर में एक किशोर कथा लिखी , मेरे पिता को पहले विश्वास नहीं हुआ कि कहानी मैंने लिखी है । उसका शीर्षक भी उन्होंने ही दिया, आतंक के क्षण। पहली कहानी ही अखिल भारतीय स्तर की प्रसिद्ध पत्रिका सुमन सौरभ में स्वीकृत हुई तो मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। इसके बाद खूब कहानियां लिखीं जो सुमन सौरभ, पराग, बालभारती आदि में छपीं। कॉलेज में पढ़ते पढ़ते ही दो किशोर उपन्यास भी लिख डाले , दीवानगढ़ी का रहस्य तथा यक्षहरण। ये दोनों सुमन सौरभ में ही धारावाहिक छपे। मुक्ता में एक कहानी आई डीएसपी साहिबा। तब मैं कॉलेज में पढ़ रहा था और तब सपने में नहीं सोचा था कि कुछ ही साल बाद खुद डीएसपी बन जाऊंगा।
सुमित प्रताप सिंह -  लेखन में आपने व्यंग्य लेखन को ही क्यों चुना?
 मलय जैन - व्यंग्य लिखना कब व कैसे शुरू कर दिया , मुझे खुद याद नहीं । हाँ, 2007 के आसपास कार्टून्स बनाने का शौक चढ़ा था। बस , वहीं से व्यंग्य लिखने की शुरूआत हो गई। व्यंग्य लिखना बड़ा चुनौती पूर्ण भी है और अपार संतुष्टि देने वाला भी, सो व्यंग्य लिखना मुझे अधिक भाया ।
सुमित प्रताप सिंह - व्यंग्य लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा? 
मलय जैन - व्यंग्य से बुरा प्रभाव तो शायद ही कोई पड़ा हो । हाँ, आदत ख़राब ज़रूर हो जाती है और कभी घर में श्रीमती जी पर व्यंग्य कर दिया तो लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने का ख़तरा ज़रूर कभी कभी पैदा हुआ । मेरे लिये व्यंग्य पढ़ना और लिखना भी , दोनों ऊर्जा देने का काम करते हैं और मैं हमेशा पॉजिटिव रहता हूँ ।
सुमित प्रताप सिंह - क्या आपको लगता है कि व्यंग्य लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?
मलय जैन -  व्यंग्य से समाज बदल जायेगा , यह समझना तो समझदारी के साथ ज्यादती होगी। हाँ, इतना अवश्य है कि प्रव्रत्ति विशेष के लिये किया गया व्यंग्य कहीं न कहीं व्यक्ति को आइना तो दिखाता ही है और सावधान भी करता है । विसंगतियों पर किये व्यंग्य से खुद को जोड़ यदि समाज के कुछ लोग ही अपने आपको बदल लेते हैं तो बदलने का उद्देश्य तो पूरा करता ही है व्यंग्य ।
सुमित प्रताप सिंह - आपकी सबसे प्रिय व्यंग्य रचना कौन सी है और क्यों?
मलय जैन -  व्यंग्य में सबसे पसंदीदा कृतियों में राग दरबारी , नरक यात्रा और बारहमासी का नाम सबसे ऊपर है । इन कृतियों ने ही कहीं न कहीं मुझे व्यंग्य लिखने के लिए प्रेरित भी किया है ।
इतना कहकर मलय जैन फिर से अपनी साहित्यिक संतान ‘ढाक के तीन पात’ में खो जाते हैं। यह देख मैं अपनी प्रश्नों की पोटली बाँधता हूँ और चल देता हूँ अगली मंजिल की ओर पर जाने से पहले आप सभी पाठक बंधुओं के लिए छोड़ जाता हूँ मलय जैन की ये विशेष रचना : -

व्यंग्य : ऐसे न मुझे तुम छेड़ो
न जाने क्या है कि शहर में या अढ़ाई सौ मील दूर के किसी क़स्बे में पुलिस चेकिंग शुरू करती है और इधर मित्रों रिश्तेदारों के फोन आने शुरू हो जाते हैं । हमने तो कई मर्तबे अपनी किस्मत को धन्य माना और खोपड़ी पर ज़ोर भी डाला कि वल्लाह , किसके दीदार किये थे अल्लसुबह आज कि ईद के चांद हुए मित्र या जिज्जी की जबलपुर वाली जिठानी के लड़ियाये लल्ला को भरी दुपहरिया में एकाएक इस ग़रीब की याद हो आई । उछल उछलकर एकदमै गिर ही न पड़ने से कलेजे को बचाते हुए हम फोन उठाकर जब हाल ओ चाल जानने की कवायद करते हैं कि उधर से मित्र धरमसंकट में डाल कहता है , " भाई , पुलिस ने पकड़ लिया ।" हम हैराने हो दरयाफ़्त करते हैं " मित्र , तुम तो एकदम सच्चरित्र और कायदे पसन्द हो , तुम्हारी कमीज़ पर चोरी , नकब्ज़नी , लूट - लठैती , डाका - डकैती तो छोड़ो , कुटैती - पिटैती और बकलोली- बकैती तक का दाग नहीं और ...और ताउम्र ताकाझांकी से तौबा वाली तुम्हारी तबीयत की तारीफ़ से तो हरकोई वाकिफ़ है फिर तुम्हें क्यों पकड़ा मेरे दोस्त ! तब शरमाते हुए मित्र का उत्तर हस्ब ए मामूल वही होता है जिसका खुटका आदतन हमें पहिले से होता है ," यार , हेलमेट नहीं न लगाये थे " या " सीट बेल्ट नहीं न लगाए थे ।" यकीन मानिये , रिश्तों के इजलास में हमारी कलपी हुई आत्मा यकायक ज़िरह को व्याकुल हो जाती है , " यार , मेरे आलिम , मेरे फ़ाज़िल , मेरे काबिल दोस्त , घर से खाने का डब्बा तो ले जाना नहीं न भूले थे ? पेट की चिन्ता , चिन्ता और जान की ?"  हेलमेट और सीट बेल्ट के लिये हम फ़ोन कर बोलें कि छोड़ दो भाई , ये सही होगा क्या ? भइया , कमसकम ऐसे तो न मुझे तुम छेड़ो । अब तुमको हम क्या बताएं , हमारी इन आँखों ने वो कलेजा फट जाने वाले दृश्य देखे हैं जिनमें किसी के कलेजे के टुकड़े ने सिर्फ़ हैलमेट न लगाकर चलने के कारण अकाल अपनी जान दे दी । हमारे इन हाथों ने हाइवे पर दुर्घटना में चोटिल उन तमाम लोगों को अस्पताल पंहुचाया है जो अपने हाथ पैरों से या तो महरूम हो गये या अकाल मौत के शिकार ही हो गये । पता है क्यों , सिर्फ़ हैलमेट या सीट बेल्ट नहीं लगाने की वजह से । अब भी कहियेगा कि हम फ़ोन करें , शर्मिंदगी के मारे धरती मईया से फट जाने की गुहार मारते हम हमारे दरोगा जी से आग्रह करें कि मत काटो चालान मेरे यार का ताकि यार मूंछों पर ताव देता निकल ले और कल को दोगुने ठाठ के साथ बिना हैलमेट लगाये इतराता निकले , बिना सीट बेल्ट बांधे हवा से बातें करे , ख़ुद की और औरत बच्चों की चिंता किये बग़ैर ! मित्रो , हमारे जवान घण्टों ड्यूटी करते , कड़ी धूप में भतेरे धुँए और धूल के बीच , चौतरफ़ा आते , भागते , खाने को दौड़ते इन वाहनों के भब्बड़ में अपनी जान भी जोखिम में डालते यदि आपका चालान काटने के लिये विवश हो रहे हैं तो कोशिश करें न , ऐसी नौबत आये ही क्यों ? पढ़ा लिखा होना तो हमारी शक्ल से ही टपकता है और समझदार होना ? बात कड़वी तो है दोस्त , मगर हम क्या करें ! कानून भी और हम भी , आख़िर आप ही की सलामती तो चाहते हैं । तो बताइयेगा , ऐसा करो , वैसा न करो के लिये खाली बाल बछौना को ही टोकते रहियेगा या ख़ुद की आत्मा के नट बोल्ट भी कसियेगा ?


बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

सुमित की व्यंग्यस्ते का मराठी अनुवाद लोकार्पित


वेंगुर्ला, महाराष्ट्र : युवा व्यंग्यकार सुमित प्रताप सिंह के पहले व्यंग्य संग्रह 'व्‍यंग्‍यस्‍ते' के मराठी अनुवाद का लोकार्पण वेंगुर्ला द्वारा आयोजित वेंगुर्ला तालुकास्‍तरीय त्रैवार्षिक मराठी साहित्‍य सम्‍मेलन में 17 फरवरी, 2018 को वेंगुर्ला में वरिष्‍ठ लेखक डॉ. सुनीलकुमार लवटे, वरिष्‍ठ लेखिका सौ वृंदा कांबली, वरिष्‍ठ कवि श्री वीरधवल परब और उपस्थित मान्‍यवरों के करकमलों से हुआ।  व्‍यंग्‍यस्‍ते का मराठी में अनुवाद डॉ.  संतोष पवार व श्री बुधाजी कांबली ने किया है तथा इसकी भूमिका मराठी की वरिष्‍ठ लेखिका सौ वृंदा कांबली ने लिखी है।
अपने अध्‍यक्षीय भाषण में डॉ. सुनीलकुमार लवटे  ने कहा कि मराठी भाषा में दूसरी भाषाओं की पुस्‍तकों का अनुवाद कार्य होना बहुत आवश्यक है। इससे एक नया साहित्‍य पढने को मिलता है। नए विचारों से प्रेरणा मिलती है। साथ ही साथ लेखक की शैली, विचार व भाषा  का पता चलता है। वहाँ के समाज का पता चलता है और हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है। अनुवाद से हमारी भाषा समृद्ध होने में भी सहायता मिलती है।
इस कार्यक्रम में त्रैवार्षिक मराठी साहित्‍य सम्‍मेलन  के प्रमुख अतिथि व अध्‍यक्ष वरिष्‍ठ लेखक डॉ. सुनीलकुमार लवटे, स्‍वागताध्‍यक्ष सौ सीमा नाईक, उद्घाटक श्री भाई मंत्री,  नगराध्‍यक्ष श्री दिलीप गिरप,  सभापती श्री यशवंत परब, सम्‍मेलन आयोजिका वरिष्‍ठ लेखिका सौ वृंदा कांबली, मराठी के प्रख्‍यात कवि वीरधवल परब, प्राचार्य डॉ. संतोष पवार, श्री बुधाजी कांबली, डॉ. संजीव लिंगवत, साहित्‍य प्रेमी, विद्यार्थी व ग्रामस्‍थ उपस्थित थे।
ज्ञात हो कि सुमित की रचनाओं का अनुवाद पंजाबी, उड़िया, कुमाऊँनी, गुजराती, नेपाली व अंग्रेजी इत्यादि भाषाओं में हो चुका है।

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

व्यंग्य : पकौड़ा टैक्स



     काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता। कई बार जो छोटा काम होता है वो देखने में तो छोटा होता है पर वो बड़े-बड़े कामों को फेल कर देता है। पर जिनके दिमाग में बड़ापन प्रचुर मात्रा में भरा हुआ हो वो काम का वर्गीकरण छोटे और बड़े के आधार पर ही करते हैं। इन दिनों पकौड़ा व्यवसाय पर चर्चा का बाज़ार गर्म है। पकौड़ों से याद आया कि दफ्तर में जिस दिन सबकी लार टपकने लगती तो ये एक इशारा होता कि सबका मन फलाँ जगह पर स्थित फलाँ मशहूर दुकान के चटपटे पकौड़े खाने का कर रहा है। सबकी लार से कहीं दफ्तर न भर जाए इस भय से अपन फटफटिया पर सवार हो अपने सहकर्मी को पीछे लादकर चल देते फलाँ जगह पर स्थित पकौड़ों के लिए फलाँ मशहूर दुकान पर। वहाँ पहुँचकर गज भर लंबी जीभ निकाले लंबी लाइन लगाए हुए भाँति-भाँति के पकौड़ों को देखकर लार टपकाते हुए भले मानव मिल जाते। उन्हें देखकर अनुभव होता कि उन पकौड़ों में कुछ न कुछ तो दिव्य शक्ति होती होगी जो लोगों में इतना दम-खम भर देती है कि जो लोग बैंक में नोटबंदी के दौरान रुपए बदलवाने की खातिर केवल कुछ घंटे लाइन में लगने से बेहोश तक हो जाते थे वो पकौड़े खरीदने की लाइन में बिना थके घंटों डटे रहते हैं।
     बहरहाल पकौड़ों की दुकान के मालिक फलाने सिंह के फलाने-ढिमकाने नौकर-चाकर पकौड़े बेचना शुरू करते तो इस सिलसिले का अंत देर रात तक ही होता। हर चीज को हाइजेनिक अंदाज में ग्रहण करनेवाले विकसित मस्तिष्क को धारण करनेवाले मानव अधधुले दोनों में अधपके पकौड़ों को चटनी में डुबो-डुबोकर स्वाद के मारे इतने वीभस्त तरीके से खाते कि ये देखकर एक पल के लिए तो बेचारे पकौड़े भी घबरा जाते। कोई-कोई तो स्वाद की कुछ ज्यादा ही इज्ज़त करते हुए पकौड़े खाने के बाद कटोरी भर चटनी से अपने गले को तर करते हुए चटनी को धन्य कर देते। मजे की बात ये है कि मँहगे पकौड़ों को खाते समय न तो मँहगाई रूपी सुरसा डायन अपना मुँह खोलती और न ही मँहगाई के लिए दिन-रात रोनेवाले भोले-भाले मानवों का इस ओर ध्यान देने का मन ही करता। 
     एक रात पकौड़ों की फलानी मशहूर दुकान के बंद होने के बाद उसके बाहर फलानी सरकारी नौकरी करनेवाले फलाने राम को जाने क्या सूझी कि उन्होंने उस दुकान के बाहर रखे ठूँस-ठूँसकर बुरी तरह भर चुके ड्रम को खाली करके पकौडों के दीवानों द्वारा पकौड़े हज़म करके फैकें गए जूठे दौनों को गिनना आरंभ कर दिया। जब उन्होंने सारे दौने गिन लिए तो अपना सिर पकड़कर नीचे बैठ गए। वो सोचने लगे कि फलानी सरकारी नौकरी करनेवाले उनके जैसे 10 अलाने, फलाने और ढिमकाने को उस फलानी मशहूर पकौड़ों की दुकान का मालिक फलाने सिंह वेतन पर रखने का सामर्थ्य रखता है। ये बात उस फलानी सरकारी नौकरी करनेवाले फलाने राम को कुछ ज्यादा ही चुभ गई और अगले सप्ताह ही फलानी मशहूर पकौड़ों की दुकान पर उसके मालिक फलाने सिंह के नाम आयकर विभाग का नोटिस आ गया। अब आयकर विभाग को पकौड़ों से होनेवाली आय पर नियमित रूप से आयकर प्राप्त हो रहा है लेकिन उस आयकर को फलानी मशहूर पकौड़ों की दुकान के मालिक फलाने सिंह नहीं, बल्कि गज भर लंबी जीभ निकाले दुकान के बाहर पकौड़ों पर झपटने को घात लगाए हुए ग्राहक पकौड़ा टैक्स के नाम पर ख़ुशी-ख़ुशी भर रहे हैं।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली
कार्टून गूगल से साभार 

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

भारतीय सेक्युलर (व्यंग्य)

- भाई नफे!
- हाँ बोल भाई जिले!
- भाई ये सेक्युलर का मतलब क्या होता है?
- सेक्युलर अंग्रेजी का शब्द है और इसका हिन्दी में अर्थ होता है धर्मनिरपेक्ष। पर हमारे देशवासियों की जीभ हिन्दी शब्दों के अधिक प्रयोग से दुखने लगती है इसलिए हम धर्मनिरपेक्ष की बजाय सेक्युलर शब्द का ही ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। 
- भाई इस शब्द को जरा विस्तार से समझा।
- जो व्यक्ति सभी धर्मों को समान आदर व सम्मान और धर्म के आधार पर किसी व्यक्ति से कोई भेदभाव न करे उसे धर्मनिरपेक्ष अथवा सेक्युलर कहा जाता है। भारतीय संविधान में भी अपने देश भारत को सेक्युलर घोषित किया गया है। भारतीय संविधान की भूमिका में सेक्युलर शब्द 42वें संविधान संसोधन द्वारा सन 1976 ईसवी में जोड़ा गया।
- भाई लगता है तेरी भी जीभ दुखने लगी।
- भाई हिन्दी शब्दों से अन्य भारतीयों की भाँति कहीं तेरा मस्तिष्क न दुखने लगे सो मैंने धर्मनिरपेक्ष की बजाय सेक्युलर शब्द का प्रयोग किया।
- खैर छोड़ भाई वैसे भी अपना देश और भाषा इतने उदार हैं कि कोई भी घुसपैठिया आता है तो उसे प्रेमपूर्वक स्वीकार कर लेते हैं।
- हाँ ये बात तो है।
- अब तू ये बता कि अपने देश में सेक्युलर शब्द कितना कामयाब है।
- भाई अपने देश में सेक्युलर शब्द बड़े असमंजस में है।
- वो भला कैसे?
- जो खुद के सेक्युलर होने का दावा करते हैं वो असल में सेक्युलर हैं नहीं और जो सेक्युलर हैं उन्हें इन कथित सेक्युलरों द्वारा कट्टरपंथी करार दे दिया जाता है।
- भाई मैं कुछ समझा नहीं।
- भाई अपनी हिन्दू सनातन संस्कृति ऐसी रही है कि सबसे मिलजुल कर और प्रेमभाव से रहो और किसी से जाति, धर्म व समुदाय के आधार पर कोई भेदभाव मत करो।
- हाँ बिलकुल ऐसी ही है अपनी संस्कृति।
- पर भारत के इन कथित सेक्युलर जीवों के अनुसार सेक्युलर होना कुछ अलग ही होता है।
- वो कैसे?
- इनके अनुसार सच्चा सेक्युलर वही है जो किसी विशेष धर्म को संरक्षण देते हुए अपने देश की संस्कृति, परंपराओं व हिन्दू धर्म को अधिक से अधिक गरियाए, देशद्रोहियों के कृत्यों का पुरजोर समर्थन करे, संस्थानों में बीफ पार्टियों का नियमित आयोजन करे, सेना को अत्याचारी व बलात्कारी घोषित कर उनपर पत्थर मारनेवालों को मासूम घोषित करे और हर वो काम करे जिससे भारत व इसकी संस्कृति का मान मर्दन हो।
- अतिविशिष्ट प्रकार के सेक्युलर जीव हैं अपने देश के सेक्युलर।
- हाँ भाई यहाँ के सेक्युलर अतिविशिष्ट प्रकार के जीव ही हैं। इनके लिए दंगा करनेवाले लोग समुदाय विशेष के होते हैं और अपने मान-सम्मान की रक्षा के लिए संघर्षरत लोग गुण्डे। इनके अनुसार वन्दे मातरम् और राष्ट्रगान गान गाना व तिरंगा फहराना प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत विषय होता है और विदेशी देश का झण्डा फहराना व उस देश के जिन्दाबाद नारे लगाना भटके हुए नौजवानों की मासूम गलती।
- गजब हैं ये सेक्युलर जीव। अच्छा भाई एक बात तो बता।
- पूछ।
- अपने देश के इन सेक्युलरों का निर्माण कैसे हुआ?
- विदेशी कटोरे में अरब और वेटिकन की धार्मिक निष्ठा, मार्क्स का अधकचरा ज्ञान, लेनिन और माओ के उग्र वामपंथ और बेशर्मी व चरित्रहीनता को अच्छी तरह घोंटकर मिलाया गया तब कहीं जाकर इन सेक्युलरों का जन्म हुआ।
- हा हा हा वास्तव में अद्भुत मिश्रण से उत्पन्न हुए हैं ये सेक्युलर जीव।
- भाई इन सेक्युलर जीवों की प्रजाति और कहाँ-कहाँ पायी जाती है?
- दुर्भाग्य से ये प्रजाति सिर्फ और सिर्फ अपने देश में ही पायी जाती है। दूसरे शब्दों में कहें भारतीय सेक्युलर नामक ये प्रजाति अपने देश को दुनिया में एक अलग ही पहचान प्रदान करती है।
- हा हा हा बिलकुल ठीक भाई।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली

कार्टून गूगल से साभार

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