शनिवार, 2 सितंबर 2017

लघुकथा : बाहरी


  रीबा समुद्र के किनारे बैठा देख रहा था, कि लोग बारी-बारी से गणेश जी की विभिन्न आकर की प्रतिमाएँ लाते और उन्हें समुद्र मैं विसर्जित करके नाचते-गाते हुए वहाँ से अपने-अपने घर की ओर चले जाते।

गरीबा बहुत देर तक यह सब देखता रहा।

फिर अचानक ही वह बुदबुदाया, "ये और हम लोग गणपति बप्पा को बरोबर पूजता है, लेकिन ये महाराष्ट्र का लोग हम उत्तर भारतीयों  को भैया बोलता है और हमसे बहुत बुरा व्यवहार करता है। हम लोग कई पीढ़ी से यहाँ रह रहा है, फिर भी ये लोग हमको बाहरी ही मानता है।"

गरीबा ने बीड़ी जलाकर एक लंबा सा कश खींचा और बड़बड़ाया, "गणपति बप्पा को ये लोग अपना सबसे बड़ा देवता मानता है, तो वो भी तो उत्तर भारत के हिमालय परबत पर जन्म लिया था। फिर तो अपना गणपति बप्पा भी बाहरी हुआ न?"

फिर अचानक गरीबा जोर से खिलखिलाया, "या फिर हो सकता है, कि इन लोगों का हिमालय परबत महाराष्ट्र में ही किसी जगह पर हो?"

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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