गुरुवार, 23 नवंबर 2017

हास्य व्यंग्य : गोल्डन फीलिंगवाले सम्राट


    जबसे उन्होंने आलू से सोना बनाने की मशीन के बारे में घोषणा की है, तबसे आलू ने और अधिक भाव खाना शुरू कर दिया है। वैसे तो आलू पहले से ही सब्जियों का राजा था, लेकिन उसके भीतर हर सब्जी के साथ मिल-जुलकर पकने की भावना ने ही उसे सब्जियों का राजा बनाया था। एक तरह से वह खास होते हुये भी आम सब्जी की तरह व्यवहार करता था। पर जबसे आलू को सोने में परिवर्तित करनेवाली मशीन की खबर मीडिया में वायरल हुई है, तबसे ही आलू के मन में गोल्डन फीलिंग होने लगी है और वो खुद को सब्जियों के राजा से भी बढ़कर समझने लगा है। अपनी इस गोल्डन फीलिंग के कारण वो सब्जियों के साथ गठबंधन समाप्त कर एकांत प्रेमी हो गया है। आलू का जिगरी दोस्त समोसा भी आलू से जुदाई का दुःख झेल रहा है। समोसे में आलू की उपस्थिति तक खुद भी सत्ता से चिपके रहने का दावा करनेवाले भी आलू की ओर अपने जलते हुये नेत्रों से देख रहे हैं पर आलू इन सब बातों से बेपरवाह हो अपनी ही मस्ती में खोया हुआ है। अब वो भारतीय रसोई में मुख्य अतिथि और अध्यक्ष की दोहरी भूमिका का निर्वाह कर रहा है। जैसे किसी कार्यक्रम में वक्ता माइक पकड़कर सर्वप्रथम भीतरी मन से कोसते हुये और ऊपरी मन से मुख्य अतिथि और अध्यक्ष के सम्मान में कसीदे पढ़ने के बाद अपने वक्तव्य को आरंभ करता है, ठीक वैसे ही हरेक सब्जी पकने से पहले गोल्डन फीलिंगवाले सम्राट आलू को प्रणाम करती है।
इतना सब होने के बावजूद भी मैं आलू को आलू जितना ही महत्व देता हूँ। इस बात से आलू के मन को भारी ठेस पहुँचती है। उदास आलू को देखकर मैं मंद-मंद मुस्कुराता हूँ और अपनी प्राणों से प्यारी पत्नी से  बड़े ही प्यार से कहता हूँ, " प्रिये आज तुम्हें जो भी चाहिये उसे माँग लो।" पत्नी एक पल को शरमा जाती है और फिर दूसरे ही पल मुस्कुराकर अपनी डिमांड प्रस्तुत करती है, " मेरे लिये केवल एक बोरा आलू मँगवा दीजिये।" मैं हैरान होकर एक पल  को अपनी पत्नी को देखता और दूसरे ही पल में आलू पर निगाह डालता हूँ। अब मुझे देखकर आलू खिलखिलाता है और अपनी आँखें मींचकर आलू से सोना निर्मित करनेवाली मशीन का अविष्कार करनेवाले महान वैज्ञानिक को श्रद्धापूर्वक मन ही मन नमन करने लगता है।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह


कार्टून गूगल से साभार

सोमवार, 13 नवंबर 2017

कविता : दस रूपयों का आसरा


आज शाम को बाज़ार से 
मैं एक भुना मुर्गा लाया
उसमें स्वाद बढ़ाने को 
मैंने नमक-मिर्च लगाया
फिर छोटे-छोटे टुकड़ों में 
उसको मैंने तोड़ा
उसपर धीमे-धीमे 
नींबू एक निचोड़ा
फिर उसको फुरसत से
चबा-चबाके खाया
सच कहूँ तो मुर्गे का 
मैंने जमके लुत्फ़ उठाया
खाकर मुर्गा ली डकार
और होंठों पर जीभ को फेरा
तभी मेरे भीतर से
किसी ने मुझको टेरा
फिर उसने मुझको
जी भरके धिक्कारा
एक पल में पापी बन
घबराया मैं बेचारा
दूजे पल ही में
अंतर्मन मेरा जागा
और गली की दुकान में
गया मैं भागा-भागा
वहाँ से झट से खरीद लिया
दस रुपये का बाजरा
तीन सौ के मुक़ाबले
अब दस रुपयों का था आसरा
फिर मैं दौड़-भागके 
बगल के पार्क में आया
वहाँ बैठके नीचे मैंने
एक जगह बाजरा फैलाया
थोड़ी देर में उस जगह
गिलहरी-कबूतर आये
चुन-चुन खाया बाजरा उन्होंने
और खाकर वो हर्षाये
यूँ हुआ दूर अपराधबोध मेरा
जिसने अब तक था जकड़ा 
फिर मैं फुरसत में लगा सोचने
कल मुर्गा खाऊँ या बकरा?

लेखक : सुमित प्रताप सिंह 

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

पुलिसवाले का ड्यूटी रेस्ट


पुलिसवाले का ड्यूटी रेस्ट होता है
थाना-चौकी की चारदीवारी
बैरक की खटमल से भरी खाटों
चिट्ठा-रोजनामचे के बंधन और
केस फ़ाइलों के बोझ से दूर
सुकून भरा एक खास दिन

पुलिसवाले का ड्यूटी रेस्ट होता है
बीबी की नशीली नज़रों में खोने
बच्चों की प्रेमभरी आँखों में झाँकने और
माँ-बाप की उम्मीद भरी निगाहों पर
खरा उतरने एक और सुनहरा अवसर

पुलिसवाले का ड्यूटी रेस्ट होता है
घर की साफ-सफाई करने
बाज़ार से सब्जी-फल लाने
बूढ़े माँ-बाप की दवाई खरीदने और
अनेकों छोटे-बड़े कामों को
निपटाने की एक छोटी सी कोशिश

पुलिसवाले का ड्यूटी रेस्ट होता है
भूले-बिसरे दोस्तों को याद करने
उनके संग कुछ पल बिताते हुये
बीते हुये मस्ती भरे पुराने दिनों को
याद करने का एक हसीन मौका

पुलिसवाले का ड्यूटी रेस्ट होता है
अपनी अधूरी पड़ी योजनाओं को पूरा कर
भविष्य के लिये कुछ नई योजनाओं को बुनने
और उनको साकार करने के लिये
जी-जान से जुट जाने का दिवस

पुलिसवाले का ड्यूटी रेस्ट होता है
दिन भर की भागदौड़ के बाद
एक पूरी रात जी-भरके आराम कर
थकान मिटाने के बाद
फिर से अपने कर्तव्य पर
निकल पड़ने का जज्बा।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह

* चित्र गूगल से साभार 

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