शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

व्यंग्य : अब तेरा क्या होगा कालिया


   काले धन उर्फ़ कल्लूकल्लनकालिया इन दिनों अधिकांश देशवासी तुम्हें दे रहे हैं जी भरकर गालियाँ। सरकार ने तुम्हें बाहर निकलने को कहा था लेकिन तुम नहीं निकले। फलस्वरूप तुम्हें बाहर निकालने को सरकार को बड़ा कदम उठाना पड़ा और उसके एक कदम उठाने से ही तुम्हारी ढिमरी टाइट हो गई तथा तुम्हारे आकाओं की चूलें तक हिल गईं। अब ये और बात है कि तुम्हें बाहर निकालने के लिए सरकार के इस औचक हमले का परिणाम आम जनता को भी झेलना पड़ रहा है। नोट चेंज करवाना और नोट छुट्टे करवाना अब राष्ट्रीय चिंता और समस्या बन गई है। इन दिनों लोगों का समय ए.टी.एम.बैंकों व डाकघरों की चौखट पर लाइन लगाकर नए नोटों के दर्शन करने की इच्छा लिए हुए ही बीत रहा है। उनका सुबह का ब्रेकफास्ट, दोपहर का लंच और रात का डिनर वहीं लाइन में लगे हुए ही हो रहा है। जो लोग खुशनसीब हैं वे तो नए नोटों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर पाते हैं, लेकिन जो अभागे मानव हैं वे बेचारे नए नोटों के दर्शनों का स्वप्न देखते हुए ही लाइन में लगे रहते हैं। इन दिनों बैंककर्मी देवदूतों से कम प्रतीत नहीं हो रहे हैं और हर व्यक्ति लाइन में लगे हुए ये कामना कर रहा है कि उसपर इन देवदूतों की कृपा हो जाए और उसकी मुट्ठी नई करेंसी से गर्म हो जाए। अब ये और बात है कि ये देवदूत गुपचुप दानवपना दिखा रहे हैं और अपने परिचितों और सगे-सम्बन्धियों को नवनोट मिलन परियोजना का भरपूर लाभ प्रदान कर रहे हैं। लोग नोट दर्शन की आस लिए रात से ही बिस्तर डालकर ए.टी.एम.बैंकों व डाकघरों के आगे धरना सा दिए बैठे हुए हैं। एक बार को तो लगता है कि जितनी शिद्दत से लोग नवनोट मिलन की इच्छा कर रहे हैं, उतनी शिद्दत से अगर ऊपवाले को याद कर लिया जाए तो उसके दर्शन पाकर इस जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाए।
वैसे मजे की बात ये है कि जनता इतने कष्टों को झेलकर भी प्रसन्न है और सरकार के इस सार्थक कदम की प्रशंसा कर-करके विपक्षी दलों का कलेजा फूँककर कोयला बनाने की साजिश में लगी हुई है। गांधी जी हरे से गुलाबी हो मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं। अचानक नोटबंदी से अवैध खजानों में बंदी बन रखे नोट रद्दी का ढेर बन चुके हैंजिससे नक्सलियों और आतंकियों के पाक कामों में अचानक विराम लग गया है। कश्मीर में पत्थरबाजी नामक लघु उद्योग को करारा झटका लगा है। पड़ोसी देश के शांति मिशन में अवरोध उत्पन्न हुआ है और वो शांतिदूतों की सप्लाई में काफी दिक्कत महसूस कर रहा है। तुम्हारे आकाओं के ताऊ-ताईचाचा-चाचीमामा-मामी व अन्य सगे-संबंधी विरोध का झंडा उठाए हुए कभी मार्च कर रहे हैं तो कभी संसद का सदन जाम करने के लिए कमर कस रहे हैं। इन सबसे इतर अधिकतर देशवासी एक नए भारत के उदय होने की आहट सुन रहे हैं। इन दिनों देश भी मुस्कुराकर तुमसे गब्बरी अंदाज में पूछ रहा है "अब तेरा क्या होगा कालिया?"
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
*कार्टून गूगल से साभार 

शनिवार, 5 नवंबर 2016

व्यंग्य : देशी ड्रैगन


- भाई नफे!
- हाँ बोल भाई जिले!
- किन हसीन ख्यालों में खोया हुआ मुस्कुरा रहा है?
- भाई मैं तो चीनी ड्रैगन की हालत देखकर मुस्कुरा रहा था।
- क्यों क्या हुआ चीनी ड्रैगन को?
- होना क्या है बेचारा अधमरा हो रखा है।
- वो भला कैसे?
- भाई इस दिवाली देशवासियों ने देशभक्ति का दम दिखाया और चीनी माल का बहिष्कार कर चीनी ड्रैगन की हालत खस्ता कर दी।
- सुना है भाई कि इस बार व्यापारी वर्ग ने इस काम में बड़ी भूमिका निभाई।
- हाँ भाई इस बार व्यापारी भाइयों ने चीनी ड्रैगन की नैया डुबोने में पूरी भूमिका निभाई। इस बार दिवाली पर चीनी सामान की खपत में 60% की गिरावट दर्ज की गई, जिसके कारण  चीनी ड्रैगन अधमरा हो रखा है।
- मतलब कि अभी भी अपने देश में 40% ऐसे महान लोग मौजूद हैं, जो चीनी सामान को इस्तेमाल करने में गर्व करते हैं।
- हाँ भाई दुर्भाग्यवश ऐसे महान लोग भी इस देश में मौजूद हैं।
- वैसे कौन हैं ये महान लोग?
- ये महान लोग देशी ड्रैगन  हैं।
- देशी ड्रैगन?
- हाँ भाई देशी ड्रैगन।
- भाई अब तू कंफ्यूज मत कर, बल्कि इनके बारे में खुलके बता।
- भाई देशी ड्रैगन ऐसे महान लोग हैं जो इस देश में रहते और यहाँ का खाते बेशक हैं लेकिन इन्हें इस देश और इसके नफे-नुकसान से कोई मतलब नहीं है। ये लोग तो हमेशा इस चिंता में डूबे रहते हैं कि इन्हें किसी प्रकार की कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए बल्कि इनका स्वार्थ सिद्ध होते रहना चाहिए।
- भाई इन देशी ड्रैगनों की पहचान क्या है?
- भाई इन देशी ड्रैगनों को आसानी से पहचाना जा सकता हैं। हर गली-मोहल्ले और नुक्कड़ पर इनकी उपस्थिति मिल जाएगी। इनमें से कुछ लोग दिवाली से पहले और बाद में चीनी सामान खरीदने की वकालत करते हुए मिल जाते हैं और कुछ पड़ोसी देश के कलाकारों के लिए आँसू बहाते दिख जाते हैं। कुछ आतंकियों के जनाजों में छाती पीटते हुए देश विरोधी नारे लगाते हुए मिल जाते हैं तो कुछ किसी मुठभेड़ में अपराधियों के मारे जाते ही सेना अथवा पुलिस के विरुद्ध मोर्चा ले जाँच आयोग बिठाने की सिफारिश करते हुए दिख जाते हैं।
- आखिर कैसे लोग हैं ये?
- लोग नहीं भाई देशी ड्रैगन बोल।
- हाँ भाई ये लोग सही मायने में ड्रैगन ही हैं। भारत की पवित्र भूमि में पल रहे अपवित्र देशी ड्रैगन।
- अब तू ठीक से इन्हें समझा।
- हाँ भाई बिलकुल समझ गया। पर ये तो बता कि इन दिनों इन देशी ड्रैगनों के हाल क्या हैं?
- इन दिनों बेसुध होकर पड़े हुए हैं बेचारे।
- हालत ज्यादा नाजुक तो नहीं हो गई इनकी।
- भाई इस समय देश के हालात ही ऐसे हो रखे हैं कि इनकी हालत नाजुक होना लाजिमी है। मुझे तो इस बात का डर है कि कहीं आए दिन लगनेवाले सदमों से ये मर न जाएँ।
- हा हा हा भाई अगर ऐसा हुआ तो बढ़िया ही रहेगा। कम से कम इस देश की धरती से फालतू का कुछ बोझ तो कम हो जाएगा। 

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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