रविवार, 29 मई 2016

लघुकथा : कोई फायदा नहीं


     ज सिपाही बत्तीलाल बहुत गुस्से में है गुस्से में हो भी क्यों न? जबसे एस.एच.ओ. ने सिपाही पान सिंह को चिट्ठा मुंशी बनाया है, तबसे ही उसने बत्तीलाल का जीना हराम कर रखा है। हालाँकि दोनों ने एक साथ ही पुलिस ट्रेनिंग की थी और दोनों एक ही प्लाटून में थे फिर भी पान सिंह जाने क्यों बत्तीलाल को परेशान करता रहता है। बत्तीलाल ही क्या थाने का पूरा स्टाफ ही उसके गंदे व्यवहार से दुखी हो रखा है। चिटठा मुंशी बनने से पहले तक तो उसका व्यवहार ठीक-ठाक था, लेकिन चिटठा मुंशी बनने के बाद तो वह अपने आपको थाने का दूसरा एस.एच.ओ.  समझने लगा है। दो दिन पहले ही बत्तीलाल की साली की शादी थी लेकिन उसकी छुट्ठी न हो पायी। बेचारे को घरवाली व ससुराल से जाने कितने ताने सुनने पड़े। पता नही पान सिंह ने एस.एच.ओ. के कान में क्या कह दिया कि जैसे ही बत्तीलाल छुट्टी की दरख्वास्त लेकर एस.एच.ओ. के सामने पहुँचा, एस.एच.ओ. ने घुड़की देकर उसे भगा दिया। आज बत्तीलाल ने फैसला कर लिया था, कि वह पान सिंह के खिलाफ कंप्लेंट करके ही रहेगा। उसने एक कंप्लेंट लैटर लिखा और ए..सी.पी. ऑफिस की ओर चल दिया। ए..सी.पी. के सामने पेश होने की हिम्मत उसमें थी नहीं, सो उसने सोचा कि वह ए..सी.पी.  ऑफिस के आगे लगे कंप्लेंट बॉक्स में ही अपना कंप्लेंट लैटर डाल देगा। अचानक कुछ पल के लिए वह ठिठककर रुक जाता है। उसे अपने साथी पान सिंह पर दया आ जाती है कि यदि उसकी नौकरी को कुछ हो गया तो उसके बाल-बच्चों का क्या होगा? फिर वह सोचता है कि अगर उस दुष्ट को अपने किये की सजा नहीं मिली तो वह थाने के स्टाफ  के साथ बुरा बर्ताव करने से बाज नहीं आयेगा। उसे सबक सिखाने के लिए उसकी कंप्लेंट करनी जरुरी है। इतना सोचकर वह कंप्लेंट लैटर को कंप्लेंट बॉक्स में डालने को आगे बढ़ता है। अचानक उसकी नज़र कंप्लेंट बॉक्स पर लिखी एक लाइन पर चली जाती है। भद्दी सी लिखावट में किसी ने पेन से बहुत ही छोटे अक्षरों में कुछ लिख रखा था। शायद पुलिस के किसी जवान ने ही लिखा होगा। बत्तीलाल ध्यान से उस लाइन को पढ़ने की कोशिश करता है। वहाँ लिखा हुआ था कोई फायदा नही। बत्तीलाल ने उस लाइन को गौर से कई बार पढ़ा फिर कंप्लेंट लैटर को अपनी जेब में डाला और भारी क़दमों से वापस थाने की ओर चल दिया। 


लेखक : सुमित प्रताप सिंह

रविवार, 22 मई 2016

लघुकथा : गधा कौन


भूरा जैसे ही जज के सामने पहुंचा, फफककर रोने लगा जज ने उससे पूछा "क्या बात हुई? क्यों रो रहे हो?"
भूरा बोला,"माई बाप हमने चोरी नही की है। इन पुलिस वालों ने हम पर झूठा इल्जाम लगाकर हमें फंसा दिया है
जज ने कहा, "अच्छा यदि तुमने चोरी नही की तो उस जगह पर देर रात क्या कर रहे थे"
भूरा ने सुबकते हुए बोला, "जज साहब हम दिल्ली में नए-नए आये थे इसलिए रात को रास्ता भटक गये थे। रास्ते में इन पुलिस वालों ने पकड़ कर चोरी के इल्जाम में बंद कर दिया
जज ने कुछ सोच विचार के बाद भूरा से कहा,"बेटा चिंता मत करो मैं तुम्हारे साथ न्याय करूँगा
इतना कहकर जज ने भूरा के वारंट में कुछ लिखा और हस्ताक्षर करके भूरा को पेश करने लाये सिपाही के हवाले करवा दिया। 
कोर्ट के कमरे से निकलकर थोड़ी दूर चलने के बाद भूरा अचानक खिल -खिलाकर हँसने लगा 
उसे पकड़े हुए चल रहे सिपाही ने हैरान होकर उसकी ओर देखा व बोला, "भूरा अभी तो तू इतना रो रहा था और अब अचानक यूँ हँसने लगा क्या बात हैं? कहीं तेरे दिमाग के पुर्जे तो ढीले नही हो गये?" 
भूरा हँसते हुए बोला, "अरे दीवान जी! यह सब करना पड़ता है अगर मैं जज के सामने ये सब ड्रामा नहीं करता तो आज वह मुझे पक्का सजा दे देता लेकिन मेरे इस ड्रामे के कारण शायद वह मुझे बरी कर दे देखा मैंने उस जज को गधा बना दिया"
सिपाही ने मुस्कुराते हुए कहा, "भूरे! तेरे जैसे छत्तीस अपराधियों से वह जज रोज़ निपटता है। तूने जज को नहीं बल्कि जज ने तुझे गधा बना दिया है यह देख अपना वारंट जज ने तुझे पूरे तीन महीने की जेल की सजा दी है

इससे पहले कि भूरा गश खाकर गिरता सिपाही ने उसे संभाल लिया

लेखक : सुमित प्रताप सिंह 

कार्टून गूगल से साभार 

मंगलवार, 17 मई 2016

लघुकथा : ठुल्ले


  पान की दुकान पर खड़े दो शिक्षकों की नज़र काफी देर से कड़ी धूप में ट्रैफिक चला रहे दो पुलिसवालों पर थी।
"यार इन ठुल्लों की जिंदगी भी क्या है? जहाँ दुनिया इस कड़ी दुपहरी में कहीं न कहीं छाँव में सुस्ता रही है, वहीं एक ये लोग हैं जो रोड पर अपनी ऐसी-तैसी करवा रहे हैं।" पहले शिक्षक ने पान की पीक थूकते हुए कहा।
दूसरे शिक्षक ने समर्थन किया, "तू ठीक कह रहा है। पर यार ये तो बता ये ठुल्ले का मतलब होता क्या है?" 
"ठुल्ला यानि कि ठलुआ मतलब कि बिना काम-धाम का खाली इन्सान।" पहला खींसे निपोरते हुए बोला।
तभी स्कूल का चपरासी भागते हुए आया और उनसे बोला, "सर जी यहाँ आप दोनों इतनी देर से गप्पबाजी में लगे हुए हैं और वहाँ आपकी क्लास के बच्चों ने धमा-चौकड़ी मचाकर आसमान सिर पर उठा रखा है। प्रिंसिपल साहब बहुत गुस्से में हैं।"
इतना सुनते ही वे दोनों स्कूल की ओर भाग लिए।
पानवाला पान पर चूना लगाते हुए एक पल को गर्मी का प्रकोप झेलते हुए ट्रैफिक चला रहे पुलिसवालों को देख रहा था और दूसरे पल पेड़ों की आड़ ले धूप से बचते-बचाते हुए स्कूल की ओर भाग रहे उन शिक्षकों को।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह


बुधवार, 11 मई 2016

पुस्तक समीक्षा : सावधान रहें अब पुलिस मंच पर है


 सुमित मानव मूल्यों के सप्तरंगी कवि हैं। उनके मूल्यों के विषय लोक व्यवहार के हैं, मानवीय प्रवृत्तियों के हैं, लोकाचार के हैं, भारतीय परिवेश के है। उनका कविता संग्रह समाज में व्याप्त विसंगतियों, विषमताओं एवं विगलती होती परिस्थितियों पर प्रहार कर उन्हें रेखांकित करता है । कविता संग्रह भावनाओं और यथार्थ का समिश्रण है जिसकी कवितायें संवेदनाओं में बहकर प्रस्फुटित हो रही हैं। सुमित समय सचेत हैं। उन्होंने छोटी-छोटी बातों पर दृष्टि डालकर और उन्हें सहज संवेदनाओं में पिरोकर चिंतन के लिए कविता संग्रह में प्रस्तुत किया है ।
सुमित ने अपने इस काव्य संग्रह में आम आदमी की परेशानियों को समाज के साथ-साथ पुलिस विभाग से जोड़कर मुखरित किया प्रतीत होता है लेकिन हकीकत में बात यह है कि पुलिस भी इंसान होती है, पर लोग उसे पुलिस ही मानते हैं इंसान नहीं और समय आने पर उससे जनता दोयम दर्जे का व्यवहार करती है । एक सिपाही की कहानीपुराना सिपाहीमें ही देखिए । सुमित के अभिव्यक्त-कथन में यह पीड़ा उभरकर सामने आती है । सुमित के स्वर में जो उच्छवास प्रकट होता है वह सृजनशीलता की अकुलाहट-व्याकुलता है । वे एक स्वस्थ्य परिवेश को देखना चाहते हैं।
उनकी शीर्षक कविता सावधान! पुलिस मंच पर हैविशुद्ध व्यंग्य कविता है, जो मंचीय लोगों द्वारा किए जा रहे कारनामों पर खुलकर प्रहार कर उन्हें आईना दिखा रही है। विनती सुन लो भगवान’ ’तुम नागनाथ हम साँपनाथकविताओं में व्यंग्य की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि व्यंग्य के दर्शन भी कविता संग्रह में हो रहे हैं। एक बात और सुमित के लेखन हेतु कहना चाहूँगा कि वे सहजता से गंभीर बात कह जाते हैं और हमें चिंतन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है यह उनकी लेखनी की सार्थकता है। ऐसा ही ‘गुलाम’, ‘भेड़ों की चिंता, ‘थू’ आओ जलाएं रावणपन आदि कविताओं में परिलक्षित हो रहा है।
जहाँ मंच पर कवियों के गिरते स्तर को उन्होंने अपनी लेखनी में सम्मिलित किया है तो वहीं वय उमर के चलतू प्रेम तू लड़की है झकास, अपुन लड़का बिंदास’ ’तेरी चाहत में बना देवदासआदि समय के प्रभाव की रचना है, लेकिन बकरे का इंतजारऔर अच्छा है बकरापन‘धंधेवाली’ ’वो बच्ची‘खूनी दरवाजालेखक के चिन्तन की पूर्ण परिपक्व रचनायें कहीं जा सकती हैं, जिनके द्वारा वे समाज पर सटीक प्रहार करते हुए गंभीर चिन्तन के लिए प्रेरित करते हुए प्रतीत हो रहे हैं। इन कविताओं को राष्ट्रीय फलक पर रखा जा सकता है। लेखक वर्तमान परिस्थितियों से मनाएँ पन्द्रह अगस्त’ ‘बन जा भारत का किसानमें भी रूबरू होता है । आज लोगों ने गिरगिट को भी मात कर दिया है इसीलिए तो ऐसे छली और प्रपंची लोगों का जमावड़ा समाज में है जो अपने स्वार्थ के लिए समाज में भ्रम फैला रहे हैं। ऐसे लोगों एव ऐसी परिस्थितियों को केन्द्र कें रखकर सुमित का रचनाकर्म सार्थक उॅचाईयों को छू रहा है। भाषा भी स्थानीय, सहज और आम बोलचाल की है इसीलिए पाठक इस कविता संग्रह को सहजता से आत्मसात कर सकेंगे।

पुस्तक - सावधान ! पुलिस मंच पर है
लेखक - सुमित प्रताप सिंहनई दिल्ली
प्रकाशक- हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर, उ.प्र.
पृष्ठ - 104
मूल्य - 200 रुपए
समीक्षक - श्री रमाकान्त ताम्रकारजबलपुर, मध्य प्रदेश  
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