शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

विश्व पुस्तक मेले में हुआ सुमित की 'नो कमेंट' का लोकार्पण



   शोभना वेलफेयर सोसाइटी के तत्वाधान में दिनाँक 19.02.2015 को विश्व पुस्तक मेले में लेखक मंच पर दिल्ली व इटावा गान के रचयिता सुमित प्रताप सिंह की तीसरी पुस्तक 'नो कमेंटका लोकार्पण किया गया। इसके साथ ही पुलिस काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गयाजिसमें दिल्ली पुलिस के कवियों ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ व्यंग्यकार एवं ग़ज़लकार डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल ने की। युवा गीतकार डॉ. हरीश अरोड़ा एवं नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक डॉ. लालित्य ललित विशिष्ट अतिथि की भूमिका में मंच पर मौजूद थे। संचालन का भार सुमित प्रताप सिंह ने उठाया तथा कार्यक्रम का संयोजन किया शोभना वेलफेयर सोसाइटी के प्रतिनिधि सुरेश सिंह तोमर ने। कार्यक्रम का शुभारम्भ 'नो कमेंटके लोकार्पण से हुआ। इसके उपरांत पुलिस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की शुरुआत दिल्ली पुलिस के युवा कवि मनीष 'मधुकरकी रचनाओं से हुई। उन्होंने अपने मुक्तकों से श्रोताओं का मनोरंजन किया। इसके बाद दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर हरबोला रमेश ने कविता पाठ किया। उनकी कविता को उनके साथी इंस्पेक्टर पद्मेंद्र रावत ने गाकर सुनायाजिसे वहाँ उपस्थित जनसमूह ने बहुत सराहा। दिल्ली पुलिस के चर्चित ग़ज़लकार प्रमोद शर्मा 'असरने सुमित को उनकी पुस्तक 'नो कमेंटके लिए बधाई दी और अपनी ग़ज़लों से सबको वाह-वाह करने को मज़बूर कर दिया। सुमित प्रताप सिंह ने अपनी चिर-परिचित शैली में अपनी कविता 'अच्छा है बकरापनसुनाकर साम्प्रदायिकता पर कटाक्ष करते हुए वहाँ मौजूद श्रोताओं के दिलों को झकझोर दिया।
विशिष्ट अतिथि डॉ. हरीश अरोड़ा ने कहा कि सुमित व्यंग्य के क्षेत्र में तेजी से उभरते हुए व्यंग्यकार हैं और आशा है कि वो यूँ ही सार्थक व्यंग्य लिखना जारी रखेंगे। विशिष्ट अतिथि डॉ. लालित्य ललित ने कहा कि पुलिस और कविता विरोधाभासी हैं लेकिन सुमित की 'नो कमेंटऔर पुलिस के कवियों की लेखक मंच पर उपस्थिति पुलिस का उजला पक्ष दिखाती है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं शोध दिशा के संपादक डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल ने 'नो कमेंटके लिए अपनी शुभकामनायें अर्पित कीं और कहा कि सुमित प्रताप की नई पुस्तक भी शीघ्र आनी चाहिए ताकि पाठक सुमित प्रताप की व्यंग्य कला का पूरा लाभ उठा सकें। मुख्य अतिथि डॉ. प्रेम जनमेजय ने अपनी व्यंग्य शैली में पुलिस और साहित्य के रिश्ते को परिभाषित किया और कहा कि आज की गोष्ठी पुलिस कर्मियों के भावनात्मक रूप का दिग्दर्शन कराती है। इस अवसर पर प्रदीप महाजनअमित मिश्रामुस्ताक अंसारीआशीष राघवविजय गुरदासपुरी, बी.के. सिंहरशीद अहमदप्रवल यादवमोहन कुमारजयदेव जोनवाल इत्यादि सुधीजन उपस्थित थे। 

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

नो कमेंट का विमोचन एवं सम्मान समारोह


इटावा : शनि‍वार को नारायण कॉलेज ऑफ़ साइंस एण्ड आर्ट्स के टैगोर सभागार में दिल्ली एवं इटावा गान के रचयिता सुमित प्रताप सिंह की तीसरी पुस्तक ‘‘नो कमेंट‘‘ पुस्तक का विमोचन किया गया। साथ ही चार प्रबुद्ध जनों का शोभना वेलफेयर सोसायटी की ओर से सम्मान भी किया गया। समारोह में मुख्य अतिथि सरिता भदौरिया ने कहा कि सम्मान उसी को मिलता है जिसमें प्रतिभाएं होती हैं। उन्होंने प्रतिभाओं के सम्मान पर स्वामी विवेकानंद का एक संस्मरण भी सुनाया। उन्होंने कहा कि शेर का कोई राजतिलक करने नहीं जाता फिर भी वह जंगल का राजा होता है। व्यक्ति अपने व्यकित्त्व एवं संस्कारों से जाना जाता है। विशिष्ट अतिथि सी.एम.ओ. उदयवीर सिंह ने कहा कि जीवन में तपस्या की है तो जीवन जीने का आनन्द मिलता है। आज साहित्य के साथ स्वास्थ्य के बारे में भी जागरूकता जरूरी है। सेवन हिल्स स्कूल के प्रधानाचार्य कैलाश चन्द्र यादव ने कहा कि अधिकांशतः देखा जाता है कि पुलिसवालों की भाषा में बदलाव आ जाता है, लेकिन सुमित द्वारा पुलिस सेवा में रहते हुए भी व्यंग्य से जुड़ाव और पुस्तक को लिखना बड़े सौभाग्य की बात है। प्रो. शैलेन्द्र शर्मा ने कहा कि सत्य को कहना हो तो कहा नहीं जा सकता। सत्य कड़वा होता है और उसे कहने के बाद आदमी ‘‘नो कमेंट‘‘ की स्थिति में हो जाता है। उन्होंने कहा कि ‘‘न पूछो नाम हमें बेनाम रहने दो, न कुरेदो खाक अंगार दबे रहने दो, मकान की छत से तमाशा देखनेवालो, हम ईंट ही नींव हैं हमें छुपा रहने दो‘‘। कार्यक्रम अध्यक्षता कर रहे श्रीकालीबाड़ी मंदि‍र के महंत स्वामी शिवानंद महाराज ने कहा कि नो कमेंट के लेखक सुमित प्रताप सिंह को अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में जागरूकता लाने व समाज को नई दिशा देने का काम करना चाहिए। सुमित अभी युवा हैं और उन्हें काफी कार्य करना है। ‘नो कमेंट‘‘ पुस्तक के लेखक सुमित प्रताप ने अपनी कृति पर प्रकाश डालते हुये कहा कि इस पुस्तक में उनके व्यंग्य समाज में फैली हुईं विद्रूपता, कुरीतियाँ एवं भ्रष्टाचार पर प्रहार करते हैं और एक बेहतर समाज की स्थापना करने का स्वप्न देखते हैं। उन्होंने बताया यह उनकी तीसरी पुस्तक है। इससे पूर्व वो ‘पुलिस की ट्रेनिंग मुसीबतों की रेनिंग’ नामक कविता संग्रह एवं ‘व्यंग्स्ते’ नामक व्यंग्य संग्रह भी लिख चुके हैं और उनके पहले व्यंग्य संग्रह का कुछ विद्वानों द्वारा कई भाषाओँ में अनुवाद भी किया जा रहा है। इस दौरान शोभना वेलफेयर सोसाइटी द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कर्मचारी नेता इ. हरिकिशोर तिवारी, केके डिग्री कॉलेज के प्रो. शैलेन्द्र शर्मा एवं सेवन हिल्स के प्रधानाचार्य कैलाश चन्द्र यादव तथा समाज सेवा के क्षेत्र में निधि दीक्षित को अंगवस्त्र ओढ़ाकर एवं प्रतीक चिन्ह व प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना ने किया तथा आभार इटावा लाइव के संपादक गुलशन कुमार ने व्यक्त किया। इस दौरान आशीष वाजपेयी, विवेक रंजन गुप्ता, सोहम प्रकाश, नितिन जैन, प्रि‍या श्रीवास्‍तव, निर्मल सिंह, रामजन्म सिंह, अवनीन्द्र जादौन, दिलीप मिश्रा, अशोक द्विवेदी, अजय कुमार, अमन कुमार, संजीव शर्मा, श्रवण कुमार बाथम, जगमोहन सिंह एवं डॉ. राजेन्द्र सिंह सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।
रिपोर्ट : नितिन जैन, इटावा


शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

क्या दिल्ली की लड़कियाँ बिगड़ी हुई हैं


   कुछ साल पहले दिल्ली में रोजी-रोटी की खातिर बसने आये या फिर सालों से दिल्ली में निवास करने के बावजूद दिल्ली को अपना नहीं माननेवाले लोगों से अक्सर बिन माँगी राय मिलती जाती है कि दिल्ली की लड़कियों का चरित्र ठीक नहीं होता अर्थात वो बिगड़ी हुई होती हैं। इन तथाकथित रायवीरों को यह बताना जरूरी है कि दिलवालों के शहर दिल्ली की लड़कियाँ बिगड़ी हुई नहीं हैं। दिल्ली ही क्यों लड़कियाँ किसी भी शहर या कसबे या फिर गाँव की बिगड़ी हुई नहीं होतीं। अब चूँकि बात दिल्ली की लड़कियों की हो रही है तो दिल्ली शहर में हर देशहर प्रान्त एवं हर जाति और सम्प्रदाय के लोग पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो दिल्ली शहर में एक लघु भारत बसता है। इस लघु भारत में रहते-रहते यहाँ के निवासी खुले दिल के स्वामी हो जाते हैं तथा किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने में औरों से अधिक सिद्धहस्त भी होते हैं और उनके शब्दकोश से भेदभाव और असंभव शब्द धीमे-धीमे मिट जाते हैं। किसी के साथ दो पल हँसकर बात करने को बिगड़ा हुआ होना कहा जाए तो शायद दिल्ली का हर निवासी बिगड़ा हुआ है। अन्य शहरों की भाँति दिल्ली की लड़कियों का भी एक परिवार होता है जिसमें सभ्यता एवं संस्कृति वास करती हैं। यहाँ की लड़कियाँ भी अपने परिवार के सम्मान की परवाह करती हैं और मर्यादा का पालन करते हुए प्रगति के पथ पर अग्रसर होती हैं। जिन लड़कियों को देखकर दिल्ली की लड़कियों को बिगड़ेपन का तमगा प्रदान किया जाता है असल में वो उन लड़कियों का 10-12 प्रतिशत होता है जो विभिन्न शहरों या कसबों से दिल्ली में शिक्षा प्राप्त करने या नौकरी करने के उद्देश्य से आती हैं और अपने माँ-बाप के विश्वास का राम नाम सत्य करके यहाँ स्वच्छंदता की सारी हदें पार कर डालती हैं और उन्हीं लड़कियों को दिल्ली की लड़कियों का प्रतिनिधि मानकर दिल्ली की लड़कियों को बिगड़ा घोषित कर दिया जाता है। इसलिए यदि कभी कोई आपसे कहे कि दिल्ली की लड़कियाँ बिगड़ी होती हैं तो उससे कहिएगा कि दिल्ली की लड़कियाँ बिगड़ी हुई नहीं हैंबल्कि ऐसा सोचनेवाले उस व्यक्ति का मानसिक संतुलन ही बिगड़ा हुआ है।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
www.sumitpratapsingh.com

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