सोमवार, 9 जून 2014

साहित्यिक चोर कोश

     ए दिन देखा जाता है कि लेखक या लेखिका अपनी रचना किसी न किसी साहित्यिक चोर द्वारा चुराए जाने से व्यथित रहते हैं. ऐसा नहीं है कि पहले कभी साहित्यिक चोरियां नहीं होती थीं. पहले के समय और अब के वक्त में फर्क सिर्फ इतना सा है कि पहले ऐसी चोरी इतनी जल्दी व आसानी से पकड़ी नहीं जा सकती थी, लेकिन आजकल ऐसी चोरियाँ पकड़ना आसान हो गया है. वर्चुअल संसार पर लेखकों के आगमन से हालाँकि पहले से अधिक ऐसी चोरियाँ बढ़ीं भी हैं और इसके साथ ही साथ चोरी पकड़े जाने की प्रतिशतता में भी इजाफा हुआ है. आजकल सोशल मीडिया पर डेरा जमाये कुछ तथाकथित माननीय महोदय इधर-उधर से माल उड़ाते-उड़ाते न जाने कब लेखक बन जाते हैं कि पता ही नहीं चल पाता है. ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ लेखन विधा से अनभिज्ञ मानव ही ऐसा कुकर्म करते हों. ऐसी चोरियाँ साहित्य के क्षेत्र में बरगद बनकर बैठे हुये वे महानुभाव भी करते हैं जो अपने साहित्यिक सफर को येन-केन-प्रकारेण अनवरत चालू बनाये रखना चाहते हैं. जैसे यह जीवन चलता रहेगा वैसे ही ये साहित्यिक चोरी का सिलसिला भी जारी रहेगा. वैसे आप सब भी ऐसी घटनाओं को देख-देखकर व सुन-सुनकर पक चुके होंगे. इसलिए आपको और पकाने का विचार त्यागते हुये एक सुझाव आप सभी के समक्ष रखने की गुस्ताखी करूँगा.
      जैसे समाज में आम चोरों की पहचान के लिए उनका विभिन्न थानों में जीवन परिचय सहेज कर रखा जाता है, वैसे ही ऐसे साहित्यिक चोरों का पूर्ण परिचय भी वर्चुअल संसार पर एक कोश बनाकर डाला जा सकता है और उसका नाम “साहित्यिक चोर कोश” रखा जा सकता है. इस कोश में साहित्यिक चोर का कुटिलतापूर्वक मुस्कुराता हुआ चित्र, उसका धरती पर बोझ बनने का निश्चित समय, तिथि व स्थान डालने के साथ-साथ इस बात का भी उल्लेख किया जाये कि वह किस विधा में चोरी करने में पारंगत है एवं अब तक चोरी कर-करके उसने कितना साहित्यिक माल इकठ्ठा कर लिया है. चोर के बगल में ही उस बेचारे रचनाकार का रोता हुआ चित्र, उसका जीवन परिचय तथा उसकी उस रचना का उल्लेख हो जिसको चोरी करके चोर महाराज ने अपना लेखकीय पोषण किया हो. इसके साथ-साथ चोर महाराज के उन अंध समर्थकों के चित्र व परिचय भी प्रदर्शित किए जायें, जो चोर की चोरी को समर्थन देकर महान बनने के लिए तत्पर रहे.
      जैसे विभिन्न सोशल साइटों पर लाइक व शेयर के ऑप्शन होते हैं वैसे ही इस साहित्यिक चोर कोश पर भी ऑप्शन की सुविधा होनी चाहिए. पहला ऑप्शन ऐसा हो जिसपर क्लिक करते ही साहित्यिक चोर का मुँह काला हो जाये. इस ऑप्शन पर डबल क्लिक करने पर चोर के अंध समर्थकों के मुँह भी काले हो जायें. दूसरे ऑप्शन पर क्लिक करते ही चोर के एक जोरदार झापड़ पड़े. तीसरे ऑप्शन पर क्लिक करने पर दो हाथ प्रकट हों और चोर के दोनों कानों को जाकर ढंग से पकड़कर जोर से उमेठें. चौथे ऑप्शन में यह सुविधा हो कि उस पर क्लिक करते ही चोर महाराज मुर्गासन की स्थिति में कुछ पल के लिए आ जायें. अंतिम ऑप्शन पर क्लिक करते ही एक रूमाल प्रदर्शित हो और चोर महाराज के शिकार हुये रचनाकार की आँखों से बहते हुये आँसुओं को जाकर पोंछ डाले परिणामस्वरूप दुखी रचनाकार का चेहरा खुशी से खिलखिलाने लगे.
      साहित्यिक चोर कोश से चाहे अधिक लाभ न हो लेकिन रचनाकारों को उन चोरों से सावधान होने का अवसर तो मिल ही जायेगा जो सदैव पकी-पकाई रचना को उड़ाकर उसे अपना बनाकर वाहवाही लूटने की जुगत में रहते हैं. चोरों को भी अपनी ऑनलाइन बेइज्जती होने पर कुछ लाज-शरम तो आएगी ही और आइंदा चोरी-चकारी करने से बाज आयेंगे. बाकी जो बेशर्म चोर हैं उनसे हम रचनाकारों को बचानेवाला तो एकमात्र परम पिता परमेश्वर ही है.   
सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत 
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