बुधवार, 31 दिसंबर 2014

लघु कथा : बदला


रजत ने जैसे ही फ़िल्म की सी.डी. खरीदने के लिए उठाई तो नितिन को गुस्सा आ गया।
नितिन- "रजत तुझे शर्म-वर्म है कि नहीं?"
रजत- "क्यों दोस्त क्या बात हो गई?"
नितिन- "तू उस फ़िल्म की सी.डी. खरीद रहा है, जिसमें हमारे धर्म का मजाक उड़ाया गया है और हमारे देवी-देवताओं का अपमान किया गया है।"
रजत- "इसीलिए तो इस फ़िल्म की लोकल सी.डी. खरीद रहा हूँ, ताकि अपने धर्म और देवी-देवताओं के अपमान का बदला लिया जा सके"
नितिन- "मैं कुछ समझा नहीं।"
रजत- "इस फ़िल्म में हमारे धर्म और देवी-देवताओं का अनादर किया गया है। यह जानते हुए भी अपने धर्म के कुछ तथाकथित विद्वान लोग इस फ़िल्म को देखने की इच्छा करेंगे। मैं उन तथाकथित विद्वानों को इस फ़िल्म की लोकल सी.डी. को कॉपी करके मुफ़्त में बाटूँगा, जिससे कि वे सभी इस फ़िल्म को सिनेमाघर में जाकर देखने की बजाय अपने घर पर ही देखें। इस प्रकार मेरे और मेरे जैसे अनेक लोगों के इस छोटे से प्रयास से फ़िल्म निर्माता का आर्थिक रूप से नुकसान होगा और वह आइन्दा से किसी भी धर्म या जाति का अपमान करनेवाली फ़िल्में बनाने से बाज आएगा।
नितिन- "अच्छा ऐसा है क्या?" दुकानदार से "भैया इस फ़िल्म की एक लोकल सी.डी. मुझे भी देना।"


रविवार, 7 दिसंबर 2014

व्यंग्य : चूहा मौत जाँच आयोग


     कॉलोनीवाले काफी दिनों से परेशान थे। कॉलोनी में डेरा जमाये हुए चूहों ने उन सबका जीना हराम कर रखा था। आख़िरकार एक दिन ईश्वर ने उनकी सुन ली और उनकी जान आफत में डाले रखनेवाले चूहों का सरदार कॉलोनी के एक घर के स्टोर में धराशाही हुआ मिला। उस एक हाथ लंबे चूहे के शव को देखने के लिए सभी कॉलोनीवासी एकत्र हुए। उन सबके लिए यह बहुत ही सुखद दृश्य था। अब कॉलोनीवासियों के लिए यह शोध का विषय बन चुका था, कि उस बलशाली चूहे की मौत आखिर इतनी आसानी से कैसे हुई? वहाँ उपस्थित जनसमूह में एकत्र व्यक्ति इस विषय पर अपने-अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे थे। एक बात गौर करने लायक है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में हम भारतीयों को चाहे कुछ विशेष रूप से प्राप्त न हुआ हो, लेकिन अपने-अपने विचार प्रस्तुत करने और अपने-अपने तर्क देने का अधिकार अवश्य मिल गया है और इसी अधिकार का सदुपयोग करते हुये सभी ने अपने-अपने अनुमानों के घोड़े दौड़ने आरम्भ कर दिए। रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन  के एक कर्मठ सदस्य, जो अपनी नौकरी के दौरान कर्मठता नामक बुराई से दूर ही रहे, ने अपने विचार प्रस्तुत किये कि ये चूहा अभी हाल ही में पड़ोसी राज्य में एक तथाकथित संत के पुलिस द्वारा पकडे जाने के घोर दुःख में डूबकर चल बसा है।
उनके इस तर्क के पक्ष में कुछ नरमुंड हिले तथा नरमुंडों ने नहीं हिलकर अपनी समर्थित न होने की इच्छा प्रदर्शित कर दी।

कॉलोनी की एक चाची गंभीर होकर बोलीं, "ऐसा कुछ भी नहीं हुआ होगा। बल्कि इस चूहे ने जिस स्टोर में अपने प्राण त्यागे, उस स्टोर को इसने अपना अभेद्य किला समझ लिया होगा तथा खुद स्वघोषित संप्रदाय का प्रधान। इसके भ्रम को शेर के मौसा बिलौटे ने तोड़ डाला और अपने खतरनाक पंजों के वार से इसे यमलोक पहुँचा दिया।"
अब कॉलोनी के युवा दल की बारी थी। उनमें से एक युवा ने तर्क दिया, "इस चूहे की मौत हृदयघात से हुई है। कुछ दिन पहले इसके पुत्र को कॉलोनी के एक घर में पिंजरे में फँसा कर मार डाला गया था। अपने पुत्र के वियोग में ही इसके प्राण पखेरू उड़ गए हैं।"

बहरहाल जैसा कि प्रत्येक सभा में होता है वही इस सभा में भी हुआ। बहस आरम्भ हुई और बिना किसी परिणाम के बहस का समापन भी हो गया। अंत में एक बुजुर्ग उठे। कलियुग में वैसे तो बुजुर्गों को इतना सम्मान दिया जाता है कि उनके हाल पर छोड़ना ही हम कलियुगी जीव अपना परम कर्तव्य समझते हैं, लेकिन जब कोई उलझन या परेशानी  आती है तो इन्हीं बुजुर्गों के तजुर्बों के आगे दंडवत होने के लिए हम सभी तत्पर रहते हैं। बहरहाल बुजुर्ग ने राय दी कि इस चूहे की मौत की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जाए, जिसका नाम रखा जाए "चूहा मौत जाँच आयोग"। यह राय सुनते ही राजनीतिक रूप  से बेरोजगार हुए व्यक्तियों के चमचों की बाछें खिल गईं। उन चमचों के कठिन प्रयत्न आखिर रंग लाये और उस क्षेत्र के भूतपूर्व विधायक के नेतृत्व में पिछले चुनावों में अपनी जमानत जब्त करवा चुके निगम पार्षदों ने इस आयोग का जिम्मा संभाला। अब कॉलोनी वालों को प्रतीक्षा है कि "चूहा मौत जाँच आयोग" कब और क्या रिपोर्ट देता है? जबकि "चूहा मौत जाँच आयोग" के सम्मानित अध्यक्ष व सदस्य इस इंतज़ार में हैं कि कॉलोनी में किसी और बलशाली चूहे की मौत हो और इस चूहे की फ़ाइल बंद करके अगले चूहे की मौत पर व्यस्तता का बहाना मिल सके।


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