बुधवार, 7 मई 2014

दुखी इंसान


एक दुखी इंसान
पहने लुंगी-बनियान
कूड़ा फैंककर आ रहा है
शादी करके पछता रहा है

बीते दिन याद करता है
ठंडी आहें भरता है
हर लड़की पर मरता है
पर अपनी बीबी से डरता है
बीते दिन याद करके
दुखी गीत गा रहा है

सुबह जल्दी उठता है
रात को देर से सोता है
पूरा दिन जीवन उसका
भाग-दौड़ भरा होता है
प्याज काटते-काटते
असली आँसू बहा रहा है

सबको खाना खिलाता है
फिर बच्चों को पढ़ाता है
उनके सो जाने के बाद
बीबी के पैर दबाता है
जिसने शादी करवाई
उसे वह पंडित याद आ रहा है.
एक दुखी इंसान
शादी करके पछता रहा है

सुमित प्रताप सिंह 
इटावा, नई दिल्ली, भारत 

शनिवार, 3 मई 2014

नो कंट्रोल

फिस के बाहर उदास बैठे चपरासी धनिया को देखा तो उसकी उदासी का कारण जानने की इच्छा हुई.
“अरे धनिया कैसे उदास बैठे हो?”
“बस ऐसे ही मूड खराब हो रखा है.”
“कुछ न कुछ तो बात हुई होगी. बॉस ने फिर झाड़ मारी?”
“बॉस और कर भी क्या सकता है?”
“बॉस का काम है झाड़ मारना और तुम्हारा काम है उसे सुनना. इसे इतना सीरियसली मत लिया करो.”
“सीरियसली कैसे न लें बाबू जी आखिर हमारी भी ऑफिस में कोई इज्ज़त है.”
“वो तो ठीक है लेकिन असल में हुआ क्या था?”
“इतना कुछ भी नहीं हुआ था. बस बॉस ने फीकी चाय माँगी और हमने मीठी दे दी.”
“ऐसी भारी भूल आखिर तुमसे कैसे हो गई?”
“अब बाबू जी वो बात ये हुई कि टी.वी. चैनल पर समाचार आ रहे थे और हम उनमें ऐसे खो गये कि चाय में चीनी कब डाल दी पता ही नहीं चला.”
“मतलब तुमने इडियट बॉक्स के कारण गलती कि और बदले में झाड़ खाई.”
“हाँ साला यही शब्द बॉस ने हमसे गुस्से में कहा “यू इडियट” और हमने भी उसको जवाब दे डाला.”
“क्या जवाब दिया?”
“हमने उससे कहा हम इडियट तो आप इडियट के बॉस. इतना सुनते ही उसने हमें एक दिन के लिए सस्पेंड कर ऑफिस से बाहर भगा दिया.”
“धनिया जहाँ तक मुझे पता है कि तुम अपने बॉस को पलटकर कभी जवाब नहीं देते. ऑफिस में भी लोग तुम्हारी इस खूबी की चर्चा करते रहते हैं. फिर आज ऐसा क्यों किया?”
“अब बाबू जी आप से क्या छुपाना. जबसे से बीबी ने टी.वी. चैनल पर समाचार देखने की लत पड़वाई है तबसे ही जबान नो कंट्रोल हो गई है.”
“मतलब कि बीबी की वजह से आदत खराब हो गई है?”
“बाबू जी इसमें बीबी का क्या दोष? उसने तो सुझाव दिया था सुबह-शाम घर पर रहकर ऑफिस की बातों में ही टाइम खराब करने से अच्छा है देश-दुनिया की ख़बरें टी.वी. चैनलों पर देखो. कुछ न कुछ तो ज्ञान मिलेगा.”
“और इसी ज्ञान ने तुम्हारी ये हालत कर दी.”    
“अब आप तो हमें ही दोष दिये जा रहे हैं. कभी आप भी टी.वी. चैनलों पर ख़बरों का मुआइना किया कीजिये. जबसे चुनावी बिगुल बजा है तबसे ही सभी पार्टियों के नेताओं की जबान नो कंट्रोल हो रही है.”
“हाँ कुछ ज्यादा ही आउट ऑफ कंट्रोल हो रखी है.”
“तो फिर इसमें हमारा क्या दोष? जो इंसान जैसा देखता है वैसा ही तो व्यवहार करता है.”
“इसका एक उपाय है.”
“बताइए.”
“टी.वी. चैनलों पर तुमने एक इंसान ऐसा भी देखा होगा जो अपनी जबान ही नहीं खोलता. कुछ उससे भी सीखो और “नो कंट्रोल” की स्थिति से बाहर आओ.”
“बाबू जी हम इंसान हैं कोई पालतू नहीं जो किसी के कहने पर ही बोलें और और आज्ञा न मिले तो न बोलें. ऐसी जिंदगी जीना अपने वश की बात नहीं.”
“देखो धनिया जिन लोगों से प्रेरित होकर तुम्हारी जबान “नो कंट्रोल” की स्थिति में आई है असल में वे आपस में चाहे जितना अंट-शंट बोल लें अथवा लड़-झगड लें, लेकिन निजी तौर पर उनका व्यवहार बहुत ही मेल-जोल वाला होता है. इसलिए उनकी जबान के “नो कंट्रोल” से प्रेरित होना छोड़कर अपने बॉस से सॉरी बोलकर अपनी जीवन की गाड़ी को कंट्रोल में ले आओ.”
“हमारे मन में एक विचार आ रहा है.”
“कैसा विचार?”
“यही कि इतनी देर से आप हमें इतना लेक्चर दे रहे हैं. कही आप हमारे बॉस के पुराने चमचे तो नहीं हैं?”
धनिया की बात सुनकर गुस्सा भी आया और हँसी भी आई. उसके मुँह लगने की बजाय वहाँ से निकलना ही मुनासिब लगा. चलते-चलते मन सोचने लगा कि धनिया शायद टी.वी. चैनल पर समाचार देखने के साथ-साथ जासूसी व सास-बहू की साजिशों से भरे सीरियल भी अपनी बीबी के साथ गलबहियाँ करते हुये देखता है. इसलिए उसकी जबान के साथ-साथ उसका दिमाग भी “नो कंट्रोल” की अवस्था में आ चुका है.

 सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत 

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