रविवार, 1 जनवरी 2012

ब्लॉग जगत के मंगल पांडे पद्म सिंह




प्रिय मित्रो 

सादर ब्लॉगस्ते!

      अंग्रेजी नव वर्ष का आगमन हो चुका है इसलिए अंग्रेजी में ही शुभकामनाएं  स्वीकारें "हैप्पी न्यू इयर टु यू" वैसे हम हिन्दुस्तानियों का नव वर्ष 22 मार्च, 2012 से आरम्भ होगा शक संवत, जो कि 78 ईसवी से आरंभ माना जाता है, को कुषाण सम्राट कनिष्क ने आरम्भ किया था किन्तु शक शासकों द्वारा अधिक प्रयोग किये जाने के कारण इसे शक संवत के नाम से जाना जाने लगा  इसमें चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ, आसाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ व फाल्गुन नामक बारह मास होते हैं इसलिए आनेवाले शक संवत, 1934 की शुभकामनाएं भी आपको स्वीकार करनी पड़ जायेंगी 

     बहरहाल इस बार आपको मिलवाता हूँ ब्लॉग जगत के मंगल पांडे अर्थात ठाकुर पद्म सिंह जी से ।  इनके बारे में क्या कहें जब से होश सम्हाला है यह अपनी ही तलाश मे हैं। इनका जन्म 1972 मे जनपद  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश मे हुआ था किन्तु प्रारम्भिक पढ़ाई के बाद की स्नातक तक की शिक्षा इलाहाबाद मे ही हुई। कुछ वर्षों तक कानपुर मे व्यापार करने के बाद सरकारी विभाग मे कार्यरत हैं। बचपन से ही इन्हें संगीत, नाटक, और अन्य कलात्मक विषयों मे रुचि थी, दूसरी तरफ इन्हें तकनीक और तकनीकी विषय भी काफी रुचिकर लगते हैं। माँ और पिताजी दोनों सरकारी विभागों मे थे, माँ के अध्यापिका होने के कारण बचपन से ही लिखने और पढ़ने की आदत पड़ी, बचपन से ही धर्मयुग, कादंबिनी, और हंस जैसी
पत्रिकाओं को पढ़ने का अवसर मिलता रहा। घर मे साहित्यिक किताबों की छोटी सी लाइब्रेरी आज भी है। प्रेमचंद के साहित्य के प्रति इनका विशेष लगाव रहा है। उनकी सरलता इन्हें  बहुत प्रभावित करती है। किन्तु इनके  जीवन और विचारों के शुद्धिकरण और आमूल परिवर्तन के लिए आचार्य रजनीश (ओशो) के साहित्य विशेष रूप से जिम्मेदार हैं।

सुमित प्रताप सिंह- पद्म सिंह जी नमस्ते! कैसे हैं आप?

ठाकुर पद्म सिंह- राम-राम सुमित भाई! मैं बिलकुल ठीक हूँ. आप सुनायें

सुमित प्रताप सिंह-  जी मैं भी बिलकुल ठीक हूँ। पद्म जी कुछ प्रश्न लेकर आया हूँ

ठाकुर पद्म सिंह- लाये हो तो दे दो ।  अरे जनाब जो पूछना है पूछना आरंभ करिए

सुमित प्रताप सिंह- आपको ये ब्लॉग लेखन का चस्का कब, कैसे और क्यों लगा?

ठाकुर पद्म सिंहमेरी समझ मे मेरा इन्टरनेट से साक्षात ही देर से हुआ था। पहली बार अमिताभ बच्चन के ब्लॉग बिग अड्डा के बारे मे सुना था और उसी को देख कर पहला ब्लॉग बनाया था। यद्यपि पहली दो पोस्टों के लिए मैंने दो ब्लॉग बनाए बाद धीरे धीरे स्वयंप्रयोग से और बहुत कुछ सीख पाया। 2009 से मै नियमित ब्लागिंग करने लगा।

सुमित प्रताप सिंह- आपने ब्लॉग जगत और फेसबुक पर बहुत धमा चौकड़ी मचा रखी है. हल्ला बोल क्लब बना कर किसी न किसी के खिलाफ हल्ला बोलने में लगे हुए हैं. अपने आपको ब्लॉग की दुनिया के मंगल पांडे समझने लगे हैं क्या?

ठाकुर पद्म सिंहदुनिया मे जीने के दो तरीके हैं... या तो परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढाल लिया जाये... या फिर परिस्थितियों के खिलाफ हल्ला बोल दो... सरकारी विभाग मे होने के कारण मुझे वहाँ होने वाले भ्रष्टाचार ने हमेशा व्यथित किया। बचपन से राष्ट्र प्रेम इस तरह से कूट कूट कर स्वभाव मे भरा गया है कि अनाचार किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं होता। इस लिए वैचारिक रूप से इस तरह के अनाचारों का विरोध करने का निश्चय मुझे ब्लागिंग मे ले आया। ब्लागिंग ने मुझे बहुत कुछ दिया है और दे रहा है... कुछ लोग तो मुझे ऐसे मिले जिनसे मिलने का पूरा श्रेय ब्लागिंग को ही जाता है।

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

ठाकुर पद्म सिंह- मेरी पहली रचना 1984 के आस पास भ्रष्टाचार के खिलाफ ही लिखी गयी थी। तब से काफी कुछ लिखा मेरी बहुत सी कवितायें अनजाने की कहीं गुम हो गईं। आज भी राष्ट्र और समाज हित मे तथा आध्यात्मिक विचारों पर कविता लेखन मेरा प्रिय विषय है। यद्यपि मै लीक पर  चलते रहने का आदी नहीं हूँ। 

सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?

ठाकुर पद्म सिंह- मन की व्यथा जब असह्य हो जाती है तो कलम से छलक जाती है। सप्रयास लेखन या प्रसिद्धि के लिए लेखन मेरे स्वभाव मे नहीं है। मनसा वाचा और कर्मणा तीनों प्रकार से राष्ट्र हित मे समर्पित रहने के कारण लेखन के अतिरिक्त भी बहुत सी गतिविधियों से जुड़ा रहता हूँ।

सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

ठाकुर पद्म सिंह- लेखन मे मेरी प्रिय विधा है छन्द बद्ध और मुक्तक  कवितायें लिखना। संस्मरण और व्यंग्य लिखना भी पसंद है।

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?

ठाकुर पद्म सिंह- एक कहावत है – ज़रूरी यह नहीं कि हमें विरासत मे क्या मिला है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि हम विरासत मे क्या दे कर जाएँगे। अगर आपकी रचनाओं का समाज, राष्ट्र और मानवता पर कोई सार्थक और सृजनात्मक प्रभाव नहीं पड़ता तो आपका लिखना व्यर्थ है। ऐसा मेरा मानना है। ये अलग बात है कि लेखन मे हर व्यक्ति की क्षमताएं अलग अलग होती हैं परंतु जज़्बे ऊंचे होने चाहिए।

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. आपका नाम आपके दृढ़  स्वभाव के बिलकुल विपरीत है. आपको नहीं लगता कि आपका नाम पद्म सिंह की बजाय चट्टान सिंह होना चाहिए था ।  

ठाकुर पद्म सिंहआपका प्रश्न काफी दिलचस्प है। वास्तव मे मेरा स्वभाव कुछ ऐसा ही है। एक तरफ जहां मोम जैसा करुणा से भरा हृदय है तो वहीं दृढ़ प्रतिज्ञ स्वभाव भी। बचपन से स्काउटिंग, रेड क्रास, सेंट जॉन एंबुलेंस, एनसीसी, एनएसएस और आरएसएस जैसी स्वयं सेवी संस्थाओं से जुड़ा रहा हूँ इस लिए सेवा भाव मेरा स्वभाव बन गया है वहीं दूसरी तरफ एक दृढ़ क्षत्रियत्व भी मेरे अंदर प्रबल है। किसी भी तरह से मुझे आत्म श्लाघा पसंद नहीं है... इस लिए इन प्रश्नों को सभी पाठक सविनय सूचना के तौर पर ही लेंगे ऐसी आशा के साथ... आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । 
(इतना कहकर ठाकुर पद्म सिंह अपने कंप्यूटरी हथियारों  में धार लगाने लगे और हमने वहाँ से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी)

ठाकुर पद्म सिंह के ठाट-बाट देखने हों तो पधारें  http://padmsingh.wordpress.com पर... 

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