गुरुवार, 26 जनवरी 2012

मैनपुरी मैन पवन कुमार



प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

     15 अगस्त1947 में भारत स्वतंत्र हुआ. हाँ यदि  नेहरु जी को अपने सुप्रसिद्ध भाषण ''ट्राइस्ट विद डेस्टिनी'' देने की लालसा न होती तो भारत 14 अगस्त, 1947 को ही स्वतंत्र हो जाता अन्य देशों की भांति भारत ने भी लोकतंत्र की परम्परा को अपनाया 2 वर्ष11 माह व 18 दिनों के कड़े परिश्रम के पश्चात विश्व के विशालतम भारतीय संविधान का निर्माण किया गया तथा 26 जनवरी1950 को इसे लागू किया गया और इस प्रकार भारत एक गणतंत्र देश बना तो साथियो आप सभी को इस गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आज के इस विशेष दिवस पर हम आपको मिलवाने जा रहे हैं एक विशेष व्यक्ति से जो प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ-साथ हिंदी ब्लॉगर भी हैं और हिंदी माँ सेवा हेतु सदैव तत्पर रहते हैं आइये मिलते हैं पवन कुमार जी से पवन कुमार जी 8 अगस्त 1975 को मैनपुरी (उ. प्र.) में प्रकट हुए (हम जैसे नासमझों के लिए पैदा हुए )। सेन्ट जोंस कालेज आगरा में अध्ययन किया और 1998 में सरकारी नौकरी  झपट ली (जो न समझ पाएँ वे सरकारी नौकरी प्राप्त की पढ़ें) । सम्प्रति भारतीय प्रशासनिक सेवा में, फिलहाल नोएडा में धूनी जमाए हैं (नासमझ समझ गए होंगे कि नोएडा में कार्यरत हैं)। इनकी गृहमंत्री (नासमझ इनकी धर्मपत्नी और हमारी भाभी जी समझें) भी प्रशासनिक सेवा में है...... नज़रिया ब्लॉग  के माध्यम से  ब्लॉग लेखन जारी है जिस पर 100 से भी ज्यादा पोस्टें आ चुकी हैं आज कल ग़ज़ल लेखन में ज्यादा रूचि (नासमझ इसे भाभी जी द्वारा दिया आदेश न समझें)। सिंगापुर और वियतनाम में सैर-सपाटा (नासमझ घुमक्कड़पन नहीं भ्रमण समझें) कर चुकें हैं  । फोटोग्राफी व पर्यटन में भी विशेष रूचि है। पवन कुमार जी मैनपुरी से हैं तो क्या मैनपुरी में केवल मैन (नर) ही रहते हैं, कोई वूमैन (नारी) नहीं रहती, जो इसका नाम मैनपुरी रखा चलिए ये सब प्रश्न मैनपुरी मैन पवन कुमार जी से ही चलकर पूछ लेते हैं...

सुमित प्रताप सिंह- पवन कुमार जी सुमित प्रताप सिंह 'नासमझ' का नमस्कार! कैसे हैं आप?

पवन कुमार- नमस्कार सुमित प्रताप सिंह 'समझदार' जी! भैया दुनिया को पट्टी पढ़ा रहे हो और अपने-आपको नासमझ कहते हो बहुत अच्छे

सुमित प्रताप सिंह- हा हा हा पवन जी खूब फ़रमाया आपने लेकिन आपके सामने तो रहेंगे हम बच्चे....आपके लिए कुछ प्रश्न लाया हूँ अच्छे

पवन कुमार- अब छोड़ो देना गच्चे और पूछ डालो अपने सभी प्रश्न अच्छे। (यदि बुरे भी पूछ लें तो?)

सुमित प्रताप सिंह- पवन जी एक बात तो बताएँ आपके जन्मस्थान मैनपुरी का नाम मैनपुरी ही क्यों है? क्या वहाँ कोई वूमैन नहीं रहती?

पवन कुमार- देखिए सुमित बन्धु मैन तो वूमैन (वू+मैन) का  अभिन्न अंग है तो यदि नाम मैनपुरी हुआ तो भी  वूमैनपुरी कहें या मैनपुरी बात तो एक ही हुई

(नासमझ इस बात को ढंग से समझ गए और देखिए कितना मुसकरा रहें हैं) 

सुमित प्रताप सिंह- ब्लॉग लेखन का विचार आपके मस्तिष्क में कब कौंधा?

पवन कुमार- वर्ष 2008 में जब मेरी तैनाती गाजियाबाद में थी तो मेरे एक मित्र ने ’ ब्लॉग’ के विषय में बताया। मैंने  ब्लॉग पर जब लिखने की प्रक्रिया शुरू की तो मेरे लिए यह नया अनुभव था। शुरूआत में तो हिन्दी टाइपिंग के विषय में ज्ञान नहीं था तो आरंभिक पोस्ट ’अंग्रेजी’ में लिखी जैसे ही इंडिक ट्रांसलिटरेशन के विषय में जानकारी मिली तो लेखन मातृभाषा में शुरू हो गया । तब से आज तक लेखन का सिलसिला जारी है.......... अब तो सौ से भी ज्यादा पोस्ट इस ब्लॉग  ’नजरिया’ पर आ चुकी है। 

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

पवन कुमार- जैसा कि मैने आपको बताया कि लेखन कर्म से मेरा रिश्ता विद्यार्थी जीवन से ही रहा। ग्रेजुएशन के दौरान ही मेरे लेख विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे थे। एक समाचार पत्र के लिए मैने अवैतनिक रूप से ’पत्रकार’ का भी कार्य किया था.......ऐसे में लेखन मेरे लिए कोई नवीन कार्य नहीं था, हाँ ब्लॉग-लेखन एक नया माध्यम अवश्य था। शुरूआती  ब्लॉग लेखन अहमद फ़राज़ और मेहदी हसन जैसे व्यक्तियों पर लिखे। बाद में  ब्लॉग लेखन में यात्रा संस्मरण, व्यक्तिगत अनुभव, महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों से अन्तरंग मुलाकातें, त्यौहार परक लेख, घटनाओं पर त्वरित टिप्पणी व गज़लें भी शामिल हो गई।

सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?

पवन कुमार- पानी बहता क्यों  है, फूल खशबू क्यों देते हैं, सूरज रोशनी क्यों देता है, चाँद तपती रातों में शीतलता क्यों प्रदान करता है.................. यह सब नियति ही है। यह सब सहज प्रक्रियाएं हैं, जो होनी ही हैं..................लेखन भी मेरे लिए सहज प्रक्रिया है। मेरे लिए विचारों को अभिव्यक्ति देने का सर्वाधिक सुलभ जरिया लेखन ही है। बचपन से लेकर अब तक जो भी जिंदगी में देखा-सुना -भोगा है उसे महसूस करके व्यक्त करने का काम ही लेखन है। अपने अहसासों को जिंदा रखने का जरिया-ऩजरिया ही लेखन है। यूं तो मेरा लेखन स्वान्तः सुखाय है किन्तु यदि उसमें किसी को जरा भी अपनापन महसूस होता है तो यह मेरे लिए और भी प्रसन्नता  देता है।

 सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

पवन कुमार- मुश्किल  सवाल है....... दरअसल मेरी लेखन यात्रा शुरू हुई थी लेख लिखने से । पत्रकारिता में आने के बाद लेखन का स्वरूप थोड़ा बदला,घटनापरक विश्लेषण वाला लेखन का सिलसिला चला । बाद में सरकारी सेवा में आने के बाद लेखन की शैली बदलनी पड़ी । फिलहाल यात्रा संस्मरण, मूर्धन्य साहित्य कर्मियों /कलाकारों पर व्यक्तित्वपरक लेख तथा ग़ज़लें  लिख रहा हूँ.  वैसे मुझे ग़ज़ल लिखना सर्वाधिक पसंद है। 

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

पवन कुमार- संदेश  देने की स्थिति में मैं स्वयं को अभी नहीं पाता........ अभी तो सीखने का दौर है फिर भी रचनाधर्मिता से जुड़े समस्त लोगों से यह अपेक्षा करता हूँ  कि वे सार्थक लिखें, ऐसा लिखें जिसमें आम आदमी की जिंदगी के सुख-दुख की आवाज हो।

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन और हिंदी भाषा का भविष्य"  इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

पवन कुमार- ब्लॉग पर हिंदी लेखन रफ़्तार पा चुका है और देश-विदेश में बसे हिंदी पुत्र इस रफ़्तार को और बढ़ाने में जुटे हुए हैं हिंदी भाषा का भविष्य बहुत उज्जवल है एक न एक दिन आप और हम इसे उच्चतम शिखर पर पहुँचा कर ही रहेंगे

(अब इस नासमझ समझदार के पास इतनी समझ बाकी नहीं बची थी कि पवन कुमार जी को और समझने की कोशिश करूँ सो समझदारी इसी में लगी कि चुपचाप अपनी प्रश्नों की पोटली उठाकर उनसे राम-राम कह निकल पडूँ अपने सफ़र पर)

पवन कुमार जी को समझना हो तो पधारें http://singhsdm.blogspot.com/ पर...

19 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

मैनपुरी के गौरव और हमारे बड़े भाई पवन कुमार जी से यूँ मिलना होगा सोचा ना था ... ;-)
जय हो सुमित भईया ... गजब रेंज दिखा रहो हो आजकल ... जय हो ... जय हो ...
गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

पवनजी से मिलवाने का आभार.......

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आपके प्रश्नों में पवन जी से मिलना अच्छा लगा ....

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

सुंदर साक्षात्कार बड़े भाई पवन कुमार जी ......गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.....

बेनामी ने कहा…

I really proud of Mr. Sumit Ji and Mr. Pawan. Jab tak Pawan ji Sumit ji, Hirdesh ji jaise log Mainpuri me hai... Mainpuri hamesha Etihas ke panno me chamakata rahegaa....

Jindigi ki asli udhan abhi baki hai, aapke erado ka emtihan abhi baki hai, abhi to mapi hai mutthi bhar jameen abhi to sara aasman baki hai.....

Unknown ने कहा…

Pawan bhaiya g ek achhe lekhak hone k sath ek jami se jude vayakti bhi..... Jo niji tor se sab k sath upasthit rehten hain, or kla or klakar ko prena dena koi bhaiya se sikh leni chaiye. Bhaiya ki bhasha selly unka vayaktitvy darshati hai. As a IAS unke kaam karne ka stlye hum sabko prena deta hai . desh k liye immandari , bafadari........ Or kaam ko turant karna or samay se phele karna unkhe vayaktive me 4chand lagata hai. Ye hum sab k liye gorav ki baat hai hamare role madel hamare apne pawan bhaiya hain......

संजय भास्‍कर ने कहा…

पवनजी से मिलवाने का आभार.....सुमित जी

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....!
जय हिंद...वंदे मातरम्।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

ज्‍यूं बहे पवन
वन वन ऐवन
वैसे बहें विचार
बदलें सरकार

करें साकार
आचार व्‍यवहार
उत्‍तम विचार
शिष्‍ट बनें
न रहें दुष्‍ट।

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

पवनजी से मिलवाने का आभार.......

सदा ने कहा…

आपकी कलम के साथ पवन जी का यह परिचय अच्‍छा लगा आभार ।

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

सुमित जी
बिलकुल ठीक फ़रमाया आपने
भइया (पवन जी )एक महान इन्सान है
वे हर क्षेत्र के महारथी है फिर चाहे वह प्रशासनिक सेवा हो
कविता और ग़ज़ल का मैदान |
वे सर्वोत्तम है|
ऐसे इन्सान धरती पर विरले पैदा होते है
अप से अगर उनकी मुलाकात हुई है तो सच मानिये
अप बहुत गौरवशाली व्यक्ति है |
गणतंत्र दिवस की .....और एक महान शख्शियत का साक्षात्कार
लेने के लिए बधाई...............|

Shobhana welfare society ने कहा…

मैनपुरी मैन से मिलना अच्छा लगा.

MOHAN KUMAR ने कहा…

glad to know about Pawan Kumar.

Dhairya Pratap Sikarwar ने कहा…

काफी सुन्दर साक्षात्कार...पड़कर बहुत अच्छा लगा.

Sumit Pratap Singh ने कहा…

शुक्रिया धैर्य जी...
पड़कर या फिर पढ़कर?
:) :) :)

Dhairya Pratap Sikarwar ने कहा…

लिखने में थोड़ी सी त्रुटी हो गयी. 'गलती' दर्शाने के लिए शुक्रिया. :-)

Sumit Pratap Singh ने कहा…

कोई बात नहीं धैर्य जी...
सब चलता है...
लेकिन त्रुटी हो गयी
या फिर त्रुटि हो गई?
:) :) :)

Dhairya Pratap Sikarwar ने कहा…

(मेरी आशा के अनुरूप) फिर से आपने एक 'त्रुटि' पकड़ ली...बहुत अच्छा :-)

Sumit Pratap Singh ने कहा…

शुक्रिया धैर्य जी...
यह देखकर अच्छा लगा कि आप मेरे इस साक्षात्कार के सिलसिले से आकार जुड़े...
वैसे आप दोनों कब कलम तोड़ रहे हैं?

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