रविवार, 8 जनवरी 2012

पंत की बेटी सरस्वती प्रसाद




प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!

      प सभी ने  सुमित्रानंदन पंत जी का नाम तो सुना ही होगा. सुमित्रानंदन पंत (२० मई, १९००-२८ सितम्बर, १९७७) हिंदी साहित्य में छायावादी युग  के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध छायावादी कवियों का उत्थान काल था। सुमित्रानंदन पंत उस नये युग के प्रवर्तक के रूप में हिन्दी साहित्य में उदित हुए। आज उन्हीं महान कवि की मुँह बोली पुत्री श्रीमति सरस्वती प्रसाद से मिलते हैं.

        आरा इनके सपनों का शहर है . उसी शहर में २८ अगस्त को इनका जन्म हुआ ... इनकी  सोच बचपन से ही  चीजों से जुड़ी  रही. जैसे नानी की पराती, मुँह अँधेरे गलियों में फेरा लगानेवाले फकीर की आवाज़ - जिसकी भारी भरकम मधुर ध्वनि के पीछे इनकी सोच दूर तक निकल जाती थी . ऊँची हवेली में रहनेवाली इकलौती संतान यह  सोचती थी - सूरज का रथ इनकी छत पे उतरता है . गयी रात चाँद इनके आँगन सँवरता है . ऊँचे कमरों की गूँज में यह जाने क्या खोजती रहीं और प्रतिध्वनि से इनकी  अंतरंगता हो गई . सूर्य की प्रथम रश्मियाँ इनके  खेल में शामिल हुईं , जो घर के रोशनदान से उतरकर कमरे में फ़ैल जाती थीं . इनकी  सबसे प्रिय दोस्त इनकी माँ थी. इनके इर्द-गिर्द संगीत के स्वर थे, पड़ोस की गायों के गले के घुंघरू , जो अपनी टुनुनटुन्न की आवाज़ से इन्हें  किसी कल्पना लोक में ले जाते थे . इनके  साथ खेलनेवाले साथी हर तबके के थे , जहाँ कोई भेदभाव नहीं था . घर के दालान में झुला झूलते ये मोरमायिल यानि मॉरिशस की यात्रा पर निकल जाते थे .

      जबसे होश संभाला इन्हें  शब्दों और अर्थों से लगाव रहा , शायद इसी से यह अपनी भावनाएं व्यक्त करने लगीं. सहपाठियों के बीच मैं ' पंत की बेटी' कहलाई और इनका अहोभाग्य कि कवि पंत ने इन्हें  पिता का प्यार दिया . वह इनकी पुस्तक की भूमिका लिखनेवाले थे, पर बीमारी के कारण नहीं कर सके . हाँ , अपनी पुस्तक लोकायतन की पहली प्रति उन्होंने इन्हें  भेंट की. इनके लिए कविता लिखी , जो इनके पास सुरक्षित है -
 " चन्द्रकिरण किरीटिनी तुम कौन आती मौन स्वप्नों के चरण  धर ...."
इनका प्रथम काव्य-संग्रह हुआ - नदी पुकारे सागर , इसके अतिरिक्त पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुईं .... अनमोल संचयन और अनुगूँज में इनकी  रचनाएँ भी हैं . 

सुमित प्रताप सिंह- सरस्वती प्रसाद जी नमस्कार. सुमित प्रताप सिंह आपके स्नेह का प्रसाद लेने आया है.

सरस्वती प्रसाद- नमस्कार बेटा सुमित प्रताप सिंह. तुम पर मेरा स्नेह सदैव रहेगा कहो कैसे पधारे?

सुमित प्रताप सिंह- जी सुमित्रानंदन पंत जी का बड़ा नाम सुना था तो सोचा उनकी मुँह बोली बेटी के दर्शन ही करने का सौभाग्य उठाया जाए. 

सरस्वती प्रसाद- इन दिनों तुम्हारे भी बड़े चर्चे सुनने को मिल रहे हैं. सुना है कि आजकल हिंदी ब्लॉगरों का शिकार करने में लगे हुए हो.

सुमित प्रताप सिंह- हा हा हा शिकार नहीं मैं तो ब्लॉग जगत में आपसी प्यार फैला रहा हूँ. आपके लिए कुछ प्रश्न लाया हूँ.

सरस्वती प्रसाद- ब्लॉग जगत में प्यार यूँ ही फैलाते रहो ऐसा आशीष देती हूँ तुम्हें. जो भी प्रश्न लाये हो अब पूछ ही डालो.

सुमित प्रताप सिंह- आपको ब्लॉग लेखन का चस्का भला  कैसे और किसके माध्यम से लगा?

सरस्वती प्रसाद- मुझे ब्लॉग लेखन का चस्का क्या लगेगा ... बच्चों ने २००७ में ब्लॉग बनाया और रचनाएँ डाल दीं. ब्लॉग पढकर मेरी बेटी (रश्मि ) ही सुनाती है .

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

सरस्वती प्रसाद- मेरी पहली रचना एक प्यारी सी लड़की के निधन पर लिखी गई ... जो अक्सर मेरे घर आती थी . उसके गुजर जाने के बाद 
मैंने लिखा था - ' दो दिन के लिए एक फूल खिला , पलभर हंसकर मुरझा भी गया 
                      यह जीवन एक तमाशा है , जाते जाते समझा भी गया '...

सुमित प्रताप सिंह- आप लिखती क्यों हैं?

सरस्वती प्रसाद- आत्मसुख के लिए . 

सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

सरस्वती प्रसाद- कहानी , कविता दोनों लिखती हूँ , पर संस्मरण लिखना मुझे बेहद पसंद है , क्योंकि वह सच से भरा होता है 
और सच से रूबरू होना मुझे अच्छा लगता है ...
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहती हैं?
सरस्वती प्रसाद- अपनी रचनाओं के माध्यम से मैं बताना चाहती हूँ कि जीवन एक संगीत है , संगीत की लय कभी ख़त्म न हो 
- हमेशा जारी रहे !

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन द्वारा हिंदी भाषा का आखिर कितना भला हो पायेगा?"

सरस्वती प्रसाद- हिंदी एक ऐसी भाषा है जो बरबस लोगों को आकर्षित करती है , और ब्लॉग के माध्यम से लोगों के मध्य यह आसानी से पहुँच रही है 
और .... भला होगा क्या ? की क्या बात ... भला हो रहा है . कई लोग ब्लॉग से जुड़कर इस हिंदी का वर्चस्व फिर से कायम कर रहे हैं ...

मैं ब्लॉगर हूँ , पर नियमित नहीं - उम्र का तकाजा है ... पर प्रत्येक ब्लौगर को मेरी शुभकामनायें हैं कि कल की खोयी हुई साहित्यिक गरिमा को वे 
लौटा लायें .... आगे के कदम उनके निशां की चर्चा करें !

जाने से पूर्व मेरे काव्य-संग्रह की एक रचना आपके लिए -

तुम अभी कुछ और बैठो
पास मेरे पास
तुम अभी कुछ और बैठो......
भोर की पहली किरण के
गीत पावन खो गये
चाँद सिहरा सहम कर
सारे सितारे सो गये
स्वप्न के वीरान घर से
उठ रहा निः श्वास
तुम अभी कुछ और बैठो
पास मेरे पास......
साध के बिखरे सुमन
पूजा विखंडित हो गयी
हाथ फैले रह गये
प्रतिमा विसर्जित हो गयी
धूम बन कर उड़ गया
मन का मधुर विश्वास
तुम अभी कुछ और बैठो...
जिस नए अंकुर को पा कर
बैठ कल्पित छाँव में
मैंने बाँधे आस के
नूपुर विहस कर पाँव में
दे वही अश्रु की थाती चल दिया चुपचाप
तुम अभी कुछ और बैठो...
एक लम्बी सी कहानी
भूमिका बन रह गयी
धूप छाँही रंग का
हर ढंग दुनिया कह गयी
मौन धरती रह गयी
गुमसुम रहा आकाश
तुम अभी कुछ और बैठो...
दो घडी भर के लिए
तुमसे यही अनुरोध हैं
कल की बातों का भला
किसको हुआ कब बोध हैं
पुण्य सारा लूट कर
जग ने दिया अभिशाप
तुम अभी कुछ और बैठो
पास मेरे पास........
(नदी पुकारे सागर)

(उनकी कविता को गुनगुनाते मैं अपनी अगली मंजिल की ओर चल पड़ा,  किन्तु जाने क्यों उनसे बिछुड़ते हुए आँखें नम होने लगीं. आज से करीब बीस साल पहले मेरी दादी मुझे छोड़कर परम पिता परमात्मा में लीन हो गईं थी. उनका इस तरह छोड़कर जाना मेरे  बाल मन से  सहा न गया था और उनके स्वर्ग सिधारने की खबर सुनकर मैं अर्धमूर्छित हो गया था. आज इतने सालों बाद सरस्वती प्रसाद जी को देखकर ऐसा लगा कि जैसे मेरी दादी फिर से वापस आ गई हों, मुझसे मिलने, मुझे प्यार करने. ऐसा मन कर रहा है कि लौटकर जाऊँ  और उनकी गोद में अपना सिर रखकर उनसे कहूँ,  "दादी मुझे फिर से छोड़कर मत जाना.")

सरस्वती प्रसाद जी के स्नेह का प्रसाद पाना हो तो पहुँचें http://kalpvriksha-amma.blogspot.com/ पर...

24 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सुमित प्रताप जी इस अप्रतिम यात्रा के हर पड़ाव का अपना महत्व है और इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ...

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

यह अप्रतिम स्‍नेह सुख तो सभी हिंदी प्रेमियों की तीव्र चाहना है।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत सुन्दर परिचय मिला
आदरणीया सरस्वती प्रसाद जी को सादर नमन... आभार सुमित जी.

vandana gupta ने कहा…

आदरणीया सरस्वती प्रसाद जी का परिचय पाकर आनन्द मिला ………स्नेह धार बहती रहे।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

OMG LoL could this be you? http://j.mp/A327Lm?=JyTjQr1

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

मृखुअपरा की " नानी " , रश्मि जी की "माँ " को मेरा चरण नमन.... बहुत वर्षों पहले मेरी मुलाक़ात उनसे हुई थी | अफसोस , तब मुझे कुछ पता नहीं था , मैं बहुत कुछ सीख सकती थी.... :( एक अच्छा मौका खो दी............... !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

नानी माँ को मेरा चरण नमन
सुन्दर परिचय
.....आभार सुमित जी

mridula pradhan ने कहा…

saraswatijee ka parichay pakar man aanandit ho gaya......unko mera sadar pranam.

Sadhana Vaid ने कहा…

आदरणीया सरस्वती प्रसाद जी का परिचय पाकर अपार सुख मिला ! उनकी अप्रतिम रचना ने मन मुग्ध कर दिया ! विरासत में काव्यधनी एवं प्रतिभा संपन्न इतने अनमोल सितारों के सृजन संस्कार रश्मि जी को मिले हैं तभी उनका रचना संसार भी इतना समृद्ध है ! दोनों को कोटिश: शुभकामनायें !

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आदरणीया सरस्वती आंटी से आपकी वार्ता बहुत अच्छी लगी।
उनको सादर चरण स्पर्श!

Patali-The-Village ने कहा…

आदरणीया सरस्वती प्रसाद जी को सादर नमन|

Rohit Singh ने कहा…

अच्छा साक्षात्कार ..... जरुरी है इस तरह के साक्षात्कार

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

आदरणीया सरस्वती प्रसाद जी का सुन्दर परिचय मिला ,साहित्य में उनकी स्नेह धार अविरल बहती रहे,यही कामना है !

वाणी गीत ने कहा…

आदरणीया सरस्वती प्रसाद जी का परिचय रश्मिजी से मिलता रहा है ...यहाँ उनके बारे में पढना और भी अच्छा लगा !
उनकी छत्रछाया हम सब पर बनी रहे ...
शुभकामनायें !

सदा ने कहा…

आपकी कलम से आदरणीया सरस्‍वती प्रसाद जी का परिचय और स्‍नेहिल छवि को जानने का अवसर मिला ..उनके लिए अनंत शुभकामनाएं आपका आभार ।

कविता रावत ने कहा…

Aadarniya Sarwaswati Prasad ji ka sahitiyik parichay aur rachna prastuti hetu aabhar..
hindi sahitya ke prachar-prasar aur uthan ke liye yah kadam sarahniya aur anukarniya hain..
..Maa ji ko charan sparsh aur aapko aabhar...

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

very nice.

MOHAN KUMAR ने कहा…

glad to know about saraswati prasad.

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

पन्त की बेटी कितनी प्यारी हैं.

सुंदर साक्षात्कार.

आपकी कलम घिस्सी.

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इस मुलाकात के लिए.

vidya ने कहा…

बहुत अच्छा लगा...
रश्मि जी का स्नेह तो मुझे प्राप्त है..माताजी के विषय में जान कर और उनका साक्षात्कार पढ़ मन प्रसन्न हुआ..
आपका ह्रदय से आभार.

अनुपमा पाठक ने कहा…

नमन...

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर !

Madan Mohan Saxena ने कहा…

सुन्दर व सार्थक रचना , मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

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