रविवार, 18 दिसंबर 2011

हँसते-हँसाते राजीव तनेजा

प्यारे मित्रो

 सादर ब्लॉगस्ते!

 आज मैं बोले तो आपका मित्र सुमित प्रताप सिंह आप सबसे मिलवाने लाया हूँ  हँसने और हँसाने में यकीन रखने वाले ब्लॉगर बन्धु राजीव तनेजा से| राजीव तनेजा जी दिल्ली में पैदा हुए...यहीं पले-बढे...इस नाते शुद्ध और खालिस रूप से दिल्ली के ही बाशिंदे हैं...इनकी हास्य-व्यंग्य लिखने तथा पढ़ने में रूचि है...कुछ रचनाएँ ऑनलाइन अखबारों तथा पत्रिकाओं एवं प्रिंट मीडिया में छप चुकी है| अंतर्जाल पर ज्यादा सक्रिय हैं और 'हँसते रहो' के नाम से इनका एक लोकप्रिय ब्लॉग है| रोजी-रोटी का जुगाड़ करने के लिए दिल्ली में ही ये रेडीमेड दरवाजों का एक छोटा सा बिजनैस चलाते हैं|

 सुमित प्रताप सिंह- राजीव तनेजा जी नमस्ते! कैसे हैं आप?

 राजीव तनेजा- जी सुमित जी नमस्ते! अपनी जिंदगी कट रही है हँसते-हँसाते | आप अपनी कहें|

 सुमित प्रताप सिंह- जी मैं भी बिलकुल खैरियत से हूँ| कुछ प्रश्न मन में खलबली मचाये हुए हैं|

 राजीव तनेजा- उन प्रश्नों को अब खलबली मचाने की इजाजत दिए बगैर पूछ ही डालिए|

 सुमित प्रताप सिंह- आपको ये हँसने और हँसाने का शौक कैसे पढ़ा? कभी रोने और रुलाने का मन नहीं करता?

 राजीव तनेजा- शौक तो पैदायशी मिलते हैं ऊपरवाले की कृपा से एज ए गिफ्ट...बाकी बचपन से यही कोशिश रही कि मेरी वजह से किसी को कोई दुःख ना पहुंचे...जैसे हो सके...जितना हो सके दूसरों को खुश रख सकूँ इसलिए अपनी लेखनी के जरिये दूसरों को हँसाने का प्रयास करता रहता हूँ|कभी काम-धंधे की वजह से तो कभी किसी और कारण से रुलाया तो किस्मत ने बहुत है लेकिन इसी दुःख को अपना संबल...अपनी लेखनी की ताकत बना मैं सबको हँसाता चला गया| नहीं!...दूसरों को रुलाने के बजाय मैं खुद रो लेना ज्यादा बेहतर समझता हूँ|

 सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

 राजीव तनेजा- कभी सोचा भी ना था कि बचपन में एकटक आँख गढा कर पढ़े गए कामिक्स तथा नावेल इस तरह अचानक अब...इस उम्र में मेरे अंदर की रचनात्मकता को लेखन के जरिये बाहर निकालेंगे...पहली रचना मैंने ऐसे ही मजाक-मजाक में सन 2005 में किसी याहू ग्रुप के जरिये लोगो तक अपनी बात पहुंचाने के लिए लिखी थी| उसे सबने पसंद किया और इसी से उत्साहित हो मैं लिखता चला गया(तब मुझे हिंदी में लिखना नहीं आता था ...इसलिए रोमन फॉण्टस में लिखी थी)

 सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?

 राजीव तनेजा- स्वभाव से अंतर्मुखी होने के कारण मैं आसानी से लोगों के साथ खुलकर बात नहीं कर पाता...उनमें घुलमिल नहीं पाता लेकिन मन-मस्तिष्क में उलटे-सीधे...आड़े-तिरछे विचारों का जमघट तो हमेशा लगा ही रहता है| उन्हीं विचारों के सम्प्रेषण के जरिये लोगों को हँसाने के लिए मैंने लेखनी को अपना हथियार...अपना औज़ार बनाया|

 सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

 राजीव तनेजा- लेखन में मेरी प्रिय विधा संवाद शैली है....मैं ज़्यादातर संवादों के जरिये ही अपनी बात कहता हूँ| 

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?

 राजीव तनेजा- अपनी हास्य-व्यंग्य मिश्रित रचनाओं के जरिये मैं समाज में पनप रही बुराइयों की तरफ आम जनता तथा सरकार का ध्यान आकर्षित कर इन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहता हूँ|

 सुमित प्रताप सिंह- हमारी ईश्वर से कामना है कि आप यूं ही हँसते और हँसाते रहें और हम सभी का मन लुभाते रहें| इस तुच्छ मानव को आपने अपना समय दिया इसके लिए बहुत-२ धन्यवाद|

 राजीव तनेजा- ये तो सच्ची…कसम से…टू मच हो गया| एक तो कहते हो आपका अपना हूँ ऊपर से अपने धन्यवाद से हमला बोलते हो| चलिए आपके बहुत-२ धन्यवाद के बदले में मेरा भी आपको बहुत-२ शुक्रिया| ओ.के. जी|

 राजीव तनेजा जी को पढने के लिए http://www.hansteraho.com/ पर पधारें...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...