शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

चौखट पर खड़े पवन चन्दन


प्यारे दोस्तो 

सादर ब्लॉगस्ते!

चलिए आज मेरे यानि कि आपके दोस्त सुमित प्रताप सिंह के साथ मिलते हैं एक और ब्लॉगर बन्धु श्री पवन चन्दन से  इन्होंने 17 दिसंबर 1953 को तत्‍कालीन जिला मेरठ अब बागपत के गांव मीतली में जन्‍म लेकर तथा स्‍नातक तक की शिक्षा लेकर नौकरी की  तलाश में राजधानी में पदार्पण किया। ये इस समय भारतीय रेल में इंजीनियर के पद पर हजरत निजामुददीन में कार्यरत हैं। बड़ा ही विरोधाभासी वातावरण रहता है । आफिस में सर्किट और घर में आकर शब्‍दों की उलट-पलट करना। फिर भी ऐसे या वैसे, कैसे न कैसे अपने लेखन धर्म का पालन कर्मठता से करते रहते हैं 

सुमित प्रताप सिंह- पवन चन्दन जी नमस्ते! कुछ प्रश्नों को मन में संजोये आपकी चौखट तक आया हूँ 

पवन चन्दन- नमस्ते सुमित प्रताप सिंह जी! आपके मन में जो भी प्रश्न हैं उन्हें बेखटक पूछ डालिए क्योंकि इस चौखट से कोई निराश होकर नहीं लौटता 

सुमित प्रताप सिंह- जी शुक्रिया पवन चन्दन जी। आपको ये ब्लॉग लेखन का चस्का कब, कैसे और क्यों लगा?

पवन चन्दन-  ब्‍लाग लेखन का चस्‍का कब से लगा ये तो याद नहीं है पर हाँ इतना याद है कि ये चस्‍का लगाया श्री अविनाश वाचस्पति उर्फ़ अन्नाभाई ने, जो कि मेरे परम मित्र और एक मशहूर ब्‍लागर हैं। 

सुमित प्रताप सिंह- आपने अपने ब्लॉग का नाम चौखट ही क्यों रखा? दीवार, छज्जा, छत अथवा आँगन
 आदि नाम भी तो अच्छे थे

पवन चन्दन-  किसी भी पाठक को मेरे लेखन भंडार में प्रवेश के लिए एक अदद चौखट कीआवश्‍यकता तो थी ही। रही बात दीवारों, छज्‍जों, छत और आंगन की तो भाई दीवारों के तो कान होते हैं। छज्‍जे के गिरने का डर रहता है। छत, बरसात में चूने लगती है। आंगन,  आंगन  अब रहे ही कहां ? इसलिए इन सब नामों पर विचार नहीं किया गया । घर में प्रवेश के लिए चौखट ही प्रथमांग है, बस - चौखट - हो गया हमारे ब्लॉग का नाम।  

सुमित प्रताप सिंह-   आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

पवन चन्दन-  मेरी पहली रचना राजनीतिक व्‍यंग्‍य थी। यह रचना तत्‍कालीन नेता स्‍व. इंदिरा जी के पीछे लगे शाह आयोग तथा तत्‍कालीन होम मिनिस्‍टर स्‍व. चरण सिंह के बीमार होकर अस्‍पताल में भर्ती होने की वजह से बनी थी। जो इस प्रकार है। हुआ यूं था कि इंदिरा के नेतृत्व मैं कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गई थे। जनता पार्टी की सरकार इंदिरा जी को किसी न किसी केस में फंसाकर  जेल भेजना चाहती थी। यह काम उस वक्‍त ऐसा  था जैसे आज लोकपाल या कहें जोकपाल । बस उन्‍हीं परिस्थितियों के अनुरूप ये कविता लिखी गयी और उस समय नवभारत टाइम्‍स के कॉलम "नजर अपनी अपनी" में प्रकाशित भी हुई । इस प्रकाशन से मुझे और मेरे लेखन को जैसे आक्‍सीजन की सी आपूर्ति हो् गयी हो... फिर क्‍या था। फिर तो मेरी रचनाएं देश के प्रतिष्ठित अखबारों में प्रकाशित होती रहीं। वैसे लेखन में निरंतरता जो होनी चाहिए थी वो नहीं हो पायी। कारण रहा भारतीय रेल की नौकरी जिससे मेरा जीवन यापन होता है उसके कार्य भी पूरे मनोयोग से पूरे किये जो कि सर्वोपरि थे। लेखन उसके बाद स्‍थान पाता था।  

मेरी पहली रचना कुछ यूं थी:-

तबियत मचली मंत्री जी की हालत डांवाडोल

दिल का दर्द उठा था उनको नहीं सके वे बोल

नहीं सके वे बोल के कैसा दर्द है उनका

डाक्‍टर ने दिया फैसला झट से ले लो एक्‍स रे इनका

लिया एक्‍स रे समझे चंदन कैसा दर्द है मंत्री जी का

हडडी पसली कुछ नहीं आयी फोटो आया इंदिरा जी का

सुमित प्रताप सिंह- हा हा हा बहुत खूब लिखा अच्छा पवन जी एक बात तो बताइये?

पवन चन्दन- एक बात क्यों दो पूछिए

सुमित प्रताप सिंह- पवन जी आप लिखते क्यों हैं?

पवन चन्दन-  लिखने के बाद मुझे आनंद की अनुभूति होती है। ब्‍लाग लेखन से प्रकाशन की समस्‍याओं का अंत हो गया है। वरना अधिकतर लेखकों की बेहतर रचनाएं भी धन्‍यवाद सहित लौट कर आती थीं। प्रतिष्ठितों की कैसी भी रचना छपी दिखती थी। मैं अपनी रचनाओं का भरपूर मजा लेता हूं। पाठक भी मेरी चौखट से मेरे साहित्‍य व मेरे विचारों से लाभांवित हो सकते हैं और होते हैं।  मेरी रचनाएं चोरी भी हुई हैं । पंजाब केसरी में तो चोरी से प्रकाशित  मेरी रचना पर संपादक महोदय ने सहयोगात्‍मक व्‍यवहार से मेरा दिल जीत लिया था। हां इतना जरूर है कि मैंने इसके बाद पंजाब केसरी को कोई रचना प्रकाशनार्थ भेजी ही नहीं। 

सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

पवन चन्दन- मेरी प्रिय विधा व्‍यंग्‍य और हास्‍य है। मुझे हंसना और हंसाने  वाले
सभी अच्‍छे लगते हैं। मैं बच्‍चों के लिए भी बाल-कविता लिखता हूं। इनका प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित बाल वाणी तथा नोएडा से प्रकाशित राष्ट्रीय सहारा में लगातार हुआ था। 

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?

पवन चन्दन-समाज की विसंगतियों पर कटाक्ष करूं और समाज इन विसंगतियों से बाहर आ जाए। समाज में सुधार की गुंजाइश ढूढ़ने का प्रयास करता रहता हूं। मैंने हमेशा कुछ सार्थक लिखने का प्रयास किया है, चाहे कम लिखा जाए। मेरा एक फैसला है कि कभी भी लेखन का स्‍तर गिरना नहीं चाहिए। लेखन में निरंतर सुधार की संभावनाओं की तलाश में रहता हूं। 

सुमित प्रताप सिंह- पवन चन्दन जी हम कामना करेंगे कि आप यूं निरंतर ब्लॉग लेखन करते रहें और हिंदी की सेवा में लगे रहें। मैं फिर आता हूँ आपसे मिलने चौखट पर

पवन चन्दन- जी अवश्य सुमित प्रताप सिंह जी। मैं चौखट पर आपकी राह देखूँगा।  

पवन चन्दन जी को पढने के लिए पधारें  http://chokhat.blogspot.com/  पर


16 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

मशहूर ब्‍लॉगर
चढ़ा दिया न
चने के झाड़ पर
जब गिरूंगा
और
गिरूंगा जरूर
क्‍योंकि
चना चाहे ताकतवर होता है
पर उसका तना
बेतना ही होता है
होता है लचीला
फिर हंसेंगे सब
हंसाने वाले भी
हंसाने वाले भी
रोते रोते हंसने वाले भी
हंसते हंसते रोने का
वैसे भी जमाना
रहा नहीं है
तो हंसो हंसो जल्‍दी हंसो।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

पवन जब से चली हंसने हंसाने की
रुत आ गयी जैसे खिलखिलाने की

हास्य व्यंग्य के सरताज पवन चंदन जी नमन

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत खूब ..
बढिया प्रस्‍तुति ..
चौखट से ही लौट जाती हूं मैं ..
एक दिन फुर्सत से खजाने पर सेंध लगेगी !!

vandana gupta ने कहा…

पवन जी से मुलाकात बहुत रोचक रही।

Jay dev ने कहा…

वाह क्या बात है ....

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

अरे पवन अंकल आप चौखट पर खड़े क्यों है? आराम से कुर्सी पर बैठिये, हम तो आयेगे, पढ़ कर कमेन्ट देंगे और मुस्कुराते हुए चले जायेंगे लेकिन कुछ लोग चुपके से आयेंगे और बिना कमेन्ट दिए ही चुपचाप खिसक जायेंगे. क्यों सही कहा न?

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

संगीता बिटिया, पवन जी की निगाह भी उन पर ही है जो मुस्‍कराते हुए खिसकने वाले हैं। अगर बैठ गए तो वे नजर नहीं आयेंगे, फिर चाहे पवन (हवा) ही क्‍यों न हों, कैसे पहचान पायेंगे।

Deepak Shukla ने कहा…

इतनी नहीं थी हिम्मत....

चौखट को लांघ पाते...

दर पे ही हम हैं आकर...

सर को झुका के जाते..


रोचक मुलाकात...पवन जी को मेरा नमन...


दीपक शुक्ल...

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

अविनाश अंकल बात तो पते की कही आपने.....

MOHAN KUMAR ने कहा…

glad to know about pawan chandan.

keerti Singh ने कहा…

NICE POST.

Jay dev ने कहा…

aap apni nayi post ke saath jaldi aaye ...bahut sundar ji

Udan Tashtari ने कहा…

रोचक बातचीत रही आपकी पवन जी से...आनन्द आया.

विनोद पाराशर ने कहा…

पवन जी की चॊखट पर,एक चंदन का टीका मेरी ओर से भी.उनकी हास्य-व्यंग्य की फुलवारी यूं ही महकती रहे.

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

कलम घिसते-२ मेरे भैया सुमित प्रताप सिंह ("सुमित के तडके" वाले) बन गए हैं कलम घिस्सू और मैं उनकी छुटकी बहन उनसे प्रेरणा लेकर बनने चल दी हूँ कलम घिस्सी..... आशा है कि आप सभी का स्नेह और आशीष मेरे लेखन को मिलता रहेगा.....

राजीव तनेजा ने कहा…

पवन जी की चौखट पर बिना खटके विचारों का आना-जाना लगा रहे...

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