रविवार, 24 सितंबर 2023

व्यंग्य: भक्षक बनाम रक्षक पुलिस


     मार्केट में एक कथित जिम्मेदार माँ से जब अपने बच्चे की शरारतों का बोझ न संभाला गया, तो वह उस मार्केट में गश्त लगा रहे दो पुलिस वालों की ओर इशारा करते हुए अपने बच्चे से बोली। 

माँ – चुप हो जा शैतान वरना तुझे सज़ा दूँगी । उन पुलिस वालों से तुझे पकड़वा दूँगी । वे तुझको जेल में डाल कर खूब डंडे लगाएंगे। फिर तुझको अपनी माँ के ये बोल याद आएंगे। 

गश्त लगा रहे पुलिस वालों, जिनका नाम जिले और नफे था, ने जब ये सुना तो नफे बोला – ये महिला भी गजब ढाती है, बच्चे को हम जैसे सीधे-सादे पुलिस वालों से डराती है । 

जिले – चलो मिलकर लेते हैं इस नारी की क्लास, ताकि भूल जाए करना ऐसी बकवास ।  

दोनों पुलिस वाले उस महिला और उसके बच्चे के पास टहलते हुए पहुंचते हैं । बच्चा उन दोनों को देखकर डर के मारे काँपने लगता है। 

नफे – मैडम, देश को भविष्य को क्यों बिना बात में डराती हैं? हम रक्षक पुलिस वालों को भक्षक क्यों बताती हैं? 

जिले – आपको पता है कि कुछ दिनों पहले हुआ था एक प्रकरण, जिसमें एक बच्चे का कुछ शैतानों ने कर लिया था अपहरण।

माँ – अच्छा ऐसा कैसे हुआ था? अपहरण के बाद उस बच्चे का क्या हुआ था? 

नफे – उस बच्चे की माँ भी आप जैसी ही जिम्मेदार और भली थी । उसने भी अपने बच्चे को खिलाई पुलिस के डर की मोटी डली थी ।    

जिले – जब उस बच्चे का अपहरण करके कार में ले जाया जा रहा था, उस समय बगल  से पुलिस वालों को कहीं इंतज़ाम देने के लिए ले जाया जा रहा था।

माँ – फिर क्या हुआ?

 नफे – चूंकि उस बच्चे की माँ भी आप जैसी थी महान, इसलिए अपहरण करने वालों के काम में नहीं आया व्यवधान।

माँ – मतलब?

जिले – मतलब कि वह बच्चा पुलिस को देख कर बुरी तरह डर गया. और आपने शोले फिल्म में गब्बर सिंह वो का डायलॉग तो सुना ही होगा ‘जो डर गया सो....’

माँ – नहीं नहीं अब आगे कुछ मत बोलिए। मेरी बेवकूफी को बेवकूफी मान कर ही छोड़िए। आगे से न होगा ऐसा गलत काम। बेटा, पुलिस वाले अंकलों को बोल राम-राम!

बच्चा – दोनों अंकल जी को राम-राम! 


जिले और नफे – राम-राम! आगे से अपनी माँ की गलत बातों पर बिलकुल मत देना ध्यान।

ये सुन कर बच्चा मुस्कुरा दिया। बच्चे की मुस्कराहट में माँ ने भी पूरा साथ दिया।

और इस तरह जिले-नफे की समझदारी से एक बच्चे का भविष्य अंधकार में जाने से बाल-बाल बच गया।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

Photo credits - Pradeep Yadav 

शनिवार, 16 सितंबर 2023

व्यंग्य : उपयोगिता का दौर

 


     ज का दौर उपयोगिता का दौर है। जब तक आप उपयोगिता की कसौटी पर खरे उतरते हैं आप सिरमौर हैं वरना किसी और का शुरू हो जाता दौर है। यूनानी विचारक प्लेटो के अनुसार एक गोबर से भरी टोकरी भी सुन्दर कही जा सकती, यदि वह उपयोगिता रखती है। इसलिए इस संसार में जीने के लिए आपको अपनी उपयोगिता समाज के समक्ष सिद्ध करनी ही पड़ेगी। यदि आपमें उपयोगिता का अभाव है, तो फिर आपको समाज में नहीं मिलना भाव है। अब आपके मस्तिष्क में ये प्रश्न कौंधेगा, कि इस ससुरी उपयोगिता का मानक भला है क्या? इस प्रश्न का बड़ा सरल सा उत्तर है, कि जब तक आप दूसरों के काम आ सकते हैं या उनकी सुख-सुविधा को बनाए रखने में सहयोगी बने रहने की योग्यता रखते हैं तब तक आपका सम्मान है। जिस दिन आपकी उपयोगिता समाप्त हुई उसी दिन आपको समाज के उपयोगिता प्रेमी जीवों का अंतिम प्रणाम है। एक छात्र को ही ले लीजिए। वह बेचारा दिन-रात परिश्रम करते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करता है। उसे आरंभ में कई प्रतियोगी परीक्षाओं में असफलता का सामना करना पड़ता है। इन असफलताओं के दौर में वह समाज के लिए अनुपयोगी जीव होता है। उससे बात करना तो दूर उसे आजू-बाजू भी भटकने नहीं दिया जाता तथा साथ में उसे ताने मार-मार कर उसका जीवन दुष्कर कर दिया जाता है। जैसे ही उस छात्र का भाग्य करवट लेता है और वह किसी प्रतियोगी परीक्षा को उत्तीर्ण कर लेता है, तो उससे अनुपयोगी का पदक वापिस लेकर उसके सिर पर उपयोगिता का मुकुट सम्मान सहित धर दिया जाता है। अब अपनी हिन्दी भाषा की बात करें तो कुछ लोग हिन्दी के बल पर ही कमाएंगे और खाएंगे, किन्तु जब सम्मान देने का समय आएगा तो अंग्रेजी में बड़बड़ाते हुए अंग्रेजी के ही गुण जाएंगे। ऐसी दोहरी मानसिकता वाले जीवों के लिए जब तक हिंदी की उपयोगिता है, तभी तक वे उसके साथ रहते हैं। ऐसे जीवों के लिए हिंदी की उपयोगिता हिंदी पखवाड़े के बीच ही सर्वाधिक होती है। हिंदी पखवाड़े में ये जीव हिंदी के काँधे पर सवार हो हिंदी को समर्पित कार्यक्रमों में मंच पर विराजमान होने का सुख प्राप्त करेंगे, मानदेय राशि से भरे लिफाफे और हिंदी सेवी सम्मान व पुरस्कार बटोरेंगे, किंतु जैसे ही हिंदी पखवाड़ा समाप्त होगा ये जीव पखवाड़े के बीच मिली सुख-सुविधा को उपलब्ध करवाने वाले भले मानवों को थैंक यू वैरी मच का संदेश भेज कर पुनः अंग्रेजी के चरणों में लौटना आरंभ कर देंगे। वैसे इसमें इनका दोष नहीं है क्योंकि ये दौर ही उपयोगिता का है न कि अनुपयोगिता का। है कि नहीं?

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

रचना तिथि - १४ सितंबर, २०२३

चित्र गूगल से साभार 

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